विज्ञापन की भाषा और उसके गुण Language of Advertising विज्ञापन में जितना महत्त्व विज्ञापन-सामग्री का होता है, उतना ही महत्त्व भाषा का भी होता है।
विज्ञापन की भाषा Language of Advertising
विज्ञापन में जितना महत्त्व विज्ञापन-सामग्री का होता है, उतना ही महत्त्व भाषा का भी होता है। अँगरेजी विद्वान् जेफ्रे लीच ने अँगरेज़ी भाषा के विज्ञापन का अध्ययन एक विशेष शैली के रूप मैं स्वीकार करते हुए उसके लिए कुछ वांछित गुणों की चर्चा की है। विज्ञापन की भाषा एक ऐसी भाषा होती है जिसका उद्देश्य लोगों को किसी उत्पाद या सेवा के बारे में सूचित करना और उन्हें खरीदने के लिए प्रेरित करना होता है। यह भाषा अत्यंत प्रभावशाली होती है और इसका प्रयोग कई तरह से किया जाता है।ये गुण हैं-
- आकर्षण (Attraction)
- श्रव्य तथा सुपाठ्यता (Audibility and Reading)
- स्मरणीयता (Memorable)
- विक्रयशीलता (Salability)
ये गुण हिन्दी विज्ञापनों पर भी लागू किये जा सकते हैं।
आकर्षण तत्त्व (Attraction)
आकर्षण विज्ञापन की प्रमुख अनिवार्यता है। इसके लिए आवश्यक है कि विज्ञापन की विषयवस्तु संक्षिप्त, पूर्ण और सहज भाषा में हो। हिन्दी में इसे पैदा करने के लिए अनेक वाक्य-संरचनाओं का प्रयोग किया जाता है, जिनसे विज्ञापन की प्रभावशीलता में वृद्धि होती है। जैसे 1. सिर्फ़ सर्फ़ (सर्फ़ पाउडर) 2. अब आप समझे, मैंने यह टिकिया क्यों ली (रिन साबुन) !
श्रव्यता और सुपाठ्यता (Audibility and Reading)
इसके लिए हिन्दी विज्ञापनों में कविता तथा गीतों के रूप में भाषा का प्रयोग किया जाता है। संगीत का भी इसमें सम्मिश्रण होता है। मुद्रण-माध्यम द्वारा किये जाने वाले विज्ञापनों में सुपाठ्यता लाने के लिए सुंदर, सुडौल और विभिन्न आकृतियों के टाइप का प्रयोग किया जाता है। भाषा की सरलता और सुबोधता का इन विज्ञापनों में विशेष ध्यान रखा जाता है। उदाहरणार्थ-
वीको वज्रदंती
वीको वज्रदंती
टूथपाउडर टूथपेस्ट
दाँतों की करे हिफ़ाजत
मोती-सा चमकाए
स्मरणीयता (Memorable)
सभी आय, आयु वर्ग के लोग विज्ञापित वस्तु का स्मरण रखें, इस दृष्टि से विज्ञापन की भाषा को नारे के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। ये नारे छोटे-छोटे सरल वाक्यों में रोचक तथा वस्तु के नाम को याद रखाने वाले होते हैं; यथा-
(i) आई लव यू रसना (रसना)
(ii) ताज़ा माँगो, माज़ा माँगो (माज़ा)
(iii) ठण्डा मतलब (कोका कोला)
विक्रयशीलता (Salability)
विक्रयशीलता को बढ़ाने के लिए विज्ञापन में विषय को सर्जनात्मक ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। विक्रय की शक्ति मूलतः विज्ञापन की भाषा की संप्रेषणीयता में निहित होती है। विज्ञापन की भाषिक संरचना के अंतर्गत ध्वनियों या वर्त्तनी का विवरण आकर्षक ढंग से होता है, जैसे- शर्ट्स-ट्रा-उ-ज़-र्स। ब्ल्यू-चिप के विज्ञापन के लेखन में अक्षरों को अलग-अलग देकर चमत्कार पैदा किया गया है। इसके साथ ही विज्ञापन में विविध विषयों की आवश्यकता के अनुसार तत्सम, देशज, विदेशी शब्दावली का प्रयोग होता है। कहीं-कहीं मिश्रित शब्दावली भी पायी जाती है। जैसे-
1. जाँबाज़ कामयाब मर्दों के लिए (पामोलिव शेव और ब्रश)
2. लिव लाइफ़ किंग साइज़ (फ़ोर स्क्वेयर)
विज्ञापनों में भाषा को और अधिक आकर्षक और रोचक बनाने के लिए निश्चयात्मक, निषेधात्मक, आदेशात्मक और विवेचनात्मक वाक्य दिये जाते हैं, जो अर्थ-बोध और संप्रेषण करने में पूर्णतः सहायक होते हैं। उदाहरणार्थ-
1. 'मैंगो फ्रूटी, फ्रेश एन जूसी' (फ्रूटी)
2. "अब लीजिए ! शक्तिशाली टर्बो आवाज़" (वीडियोकॉन)
3. "कहा बहुत जा सकता है बिना एक भी शब्द कहे" (केयोकार्पिन)
इस प्रकार, विज्ञापन जनसंचार का एक अंग होते हुए भी औपचारिक, व्यावसायिक और सामाजिक सेवा में अपना विशेष महत्त्व बनाये हुए है। विज्ञापन की भाषा लिखित और मौखिक दोनों रूपों में होती है। इसमें निहित सम्प्रेषणीयता, प्रभावोत्पादकता, रोचकता और प्रेरक शक्ति व्यवसाय को समृद्ध और उन्नत बनाती है।
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