सूरज का सातवाँ घोड़ा उपन्यास में माणिक मुल्ला का चरित्र चित्रण उपन्यासकार ने माणिक मुल्ला के रूप में एक ऐसे पात्र का सृजन किया है जिसका व्यक्तित्व कई
सूरज का सातवाँ घोड़ा उपन्यास में माणिक मुल्ला का चरित्र चित्रण
सूरज का सातवाँ घोड़ा उपन्यास में माणिक मुल्ला का चरित्र एक जटिल और बहुआयामी चरित्र है। वे एक कहानीकार, दार्शनिक, समाज का आलोचक और जीवन का अनुभवी हैं। माणिक मुल्ला का चरित्र उपन्यास को गहराई और व्यापकता प्रदान करता है।
प्रस्तुत उपन्यास का नाम लेखक ने 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' क्यों रखा, इसका संकेत लेखक ने अन्त में किया है। माणिक कथाचक्र में दिनों की संख्या सात रखने का कारण भी शायद बहुत कुछ सूरज के सात घोड़ों पर आधारित था। इससे स्पष्ट है कि माणिक मुल्ला जो कहानियाँ सुनाते थे, उनका क्रम सात दिन तक चला था । अतः समूचे उपन्यास में वे ही एक ऐसे पुरुष पात्र हैं, जिनका व्यक्तित्व महत्त्वपूर्ण है।
लेखक धर्मवीर भारती ने माणिक मुल्ला के व्यक्तित्व को इस रूप में उभारा है - "एक ज़माना था जब वे हमारे मुहल्ले के मशहूर व्यक्ति थे। वहीं पैदा हुए, बड़े हुए वहीं शौहरत पायी और वहीं से लापता हो गए। मुल्ला उनका उपनाम नहीं, जाति थी । वे कश्मीरी थे। कई पुश्तों से उनका परिवार वहाँ बसा हुआ था, वे अपने भाई और भाभी के साथ रहते थे। जब भाई भाभी (तबादले के कारण) चले गये तो पूरा घर उनके कब्जे में आ गया। वे मोहल्ले के लोगों से स्नेह करते थे। उन्हें कहानी सुनाने का शौक था और उनके कमरे में कुछ विचित्र चीजें थीं, जो प्रायः अन्यत्र नहीं होती; जैसे-दीवार पर एक पुराने काले फ्रेम में एक फोटो जड़ा टँगा था- 'खाओ, बदन बनाओ'। एक ताख में एक काली बेंट का बड़ा-सा सुन्दर चाकू रखा था, एक कोने में एक घोड़े की पुरानी नाल पड़ी थी और इसी तरह की कुछ अन्य चीजें भी थीं।" माणिक मुल्ला के पास लोग बैठते थे क्योंकि वे बेफिक्र तथा फुरसत वाले व्यक्ति थे और दो ही विषयों पर चर्चा होती थी-राजनीति और प्रेम। मध्य वर्ग के पास इसके अतिरिक्त चर्चा का विषय और है ही क्या। वे प्रेम की कहानियाँ बड़े विचित्र ढंग से कहा करते थे। प्रस्तुत उपन्यास उनके द्वारा कही गयी सात प्रेम कहानियों का अद्भुत संकलन है।
उपन्यास में माणिक मुल्ला का व्यक्तित्व कई रूपों में उभरकर सामने आया है, पर यहाँ हम उनके व्यक्तित्व के मुख्य-मुख्य बिन्दुओं को ही उजागर करेंगे -
पर्याप्त ज्ञान और अध्ययन
यद्यपि लेखक ने उनका परिचय देते हुए यह कहा है कि उनके कमरे में किताबों का नाम-निशान भी नहीं था फिर भी उनका अध्ययन गहन और विस्तृत था। अपनी कथाओं के बीच में जिन विभिन्न ग्रन्थों के लेखकों और पात्रों के सन्दर्भ उन्होंने दिये हैं, वे इसके प्रमाण हैं कि उनका अध्ययन विशिष्ट था। वे टैगोर का उल्लेख करते हुए उनके कथन को भी प्रस्तुत करते हैं-"टैगोर का नाम तो सुना ही होगा। उन्होंने लिखा है-आमार माझारे जो आछे से गो कोनो विरहिणी नारी ! अर्थात मेरे मन के अन्दर जो बसा है, वह कोई विरहिणी नारी है। वही विरहिणी नारी अपनी कथा कहा करती है-बार-बार तरह-तरह से।" यहीं पर वे विरहिणी नारियों की किस्में भी गिनाते हैं-अनूढा विरहिणी, उढा विरहिणी, मुग्धा विरहिणी, प्रौढ़ा विरहिणी आदि। वे दान्ते की 'डिवाइन कामेडिया' का भी उल्लेख करते हुए कहते हैं कि उसमें नायक को स्वर्ग में नायिका मिलती है और उसे ईश्वर के सिंहासन तक ले जाती है। इसी क्रम में वे 'स्कन्दगुप्त' की देवसेना के उदार प्रेम का दृष्टान्त देते हैं। वे अँग्रेजी की प्रसिद्ध कविता - "ए लिली गर्ल नॉट मेड फोर दिस वर्ड्स पेन" की चर्चा भी करते हैं। साथ ही फ्लावेयर, मोवासा, चेखब की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए चेखब के कथन का भी उल्लेख करते हैं- "कहानी कहना कठिन बात नहीं है। आप कोई चीज मेरे सामने रख दें, यही शीशे का गिलास, यह ऐश-ट्रे और कहें कि मैं इस पर कहानी कहूँ। थोड़ी देर में मेरी कल्पना जाग्रत हो जायेगी और उससे सम्बद्ध कितने लोगों के जीवन मुझे याद आ जायेंगे और वह चीज कहानी का सुन्दर विषय बन जाएगी।"
उपर्युक्त सन्दर्भ इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि मुल्ला जी का अध्ययन विशद था। जहाँ तक उनके ज्ञान का प्रश्न है तो कहानियों में बिखरे अनेक वाक्य इसकी घोषणा करते हैं कि वे ज्ञान-सम्पन्न भी थे। उनके कथन से एक उदाहरण देकर हम इसकी पुष्टि कर सकते हैं- "प्रेम नामक भावना कोई रहस्यमय, आध्यात्मिक या सर्वथा वैयक्तिक भावना न होकर वास्तव में एक सर्वथा मानवीय सामाजिक भावना है, अत: समाज-व्यवस्था से अनुशासित होती है और उसकी नींव आर्थिक-संगठन तथा वर्ग-सम्बन्ध पर स्थापित है।"
सिद्धान्तवादी
माणिक मुल्ला अपने जीवन में कुछ सिद्धान्त भी रखते थे, जिनकी झलक उनके अनेक कथनों से मिलती है, जो उनकी कहानियों में यत्र-तत्र समाहित है। लेखक ने उनके सिद्धान्तों की चर्चा करते हुए कहा है- "कहानी वही सम्पूर्ण है जिसमें आदि में आदि हो, मध्य में मध्य हो और अन्त में अन्त हो। इसकी व्याख्या वे यों करते थे-कहानी का आदि वह है जिसके पहले कुछ न हो, बाद में मध्य हो, पहले मध्य हो बाद में रद्दी की टोकरी हो। |"
माणिक मुल्ला का यह भी सिद्धान्त था कि उसमें कोई न कोई निष्कर्ष अवश्य निकलना चाहिए। इसी प्रकार के अनेक सिद्धान्तों की चर्चा वे जीवन और जगत के सन्दर्भ में भी करते हैं। वे प्रेम को अर्थ से जोड़ते हैं। वे चाहते हैं कि हमें वर्तमान व्यवस्था की नैतिक विकृतियों के विरुद्ध कायर होकर नहीं बैठना चाहिए बल्कि उनसे संघर्ष करना चाहिए।
अन्तर्द्वन्द्व से ग्रस्त
माणिक मुल्ला के व्यक्तित्व की अनेक विशेषताओं का यद्यपि खुलासा इस उपन्यास में हुआ है, फिर भी उनका व्यक्तित्व अन्तर्द्वन्द्व से ग्रस्त दिखायी देता है। एक-दो उदाहरणों से हमें यह तथ्य भली प्रकार समझ में आ सकेगा। जमुना ने उन पर आकर्षण का जाल फेंका था। वे उसमें फँस गये थे। पर एक मन उन्हें रोक रहा था, दूसरा बढ़ने को विवश कर रहा था। दूसरे दिन माणिक मुल्ला ने चलने की कोशिश की, क्योंकि उन्हें जाने में डर भी लगता था और वे जाना भी चाहते थे और न जाने कौन-सी चीज थी जो अन्दर उनसे कहती थी- "माणिक, यह बहुत बुरी बात है। जमुना ! अच्छी लड़की नहीं।" और उनके ही अन्दर कोई दूसरी चीज थी जो कहती थी, "चलो माणिक ! तुम्हारा क्या बिगड़ता है। चलो देखें तो क्या है?"
दोहरा व्यक्तित्व
आज का आदमी दोहरा व्यक्तित्व जी रहा है, वह कहता कुछ है करता कुछ है। यह कथनी और करनी का अन्तर ही उसके जीवन की विडम्बना है। माणिक का व्यक्तित्व भी इसी प्रकार का था। उपन्यासकार ने कहा है-"अगर कोई इनसे भावुकता की बात करे तो फौरन उसकी खिल्ली उड़ायेंगे, पर जब वह चुप हो जायेगा तो धीरे-धीरे खुद वैसी ही बात छेड़ देंगे।" इतना ही नहीं, उन्होंने सत्ती के साथ जो विश्वासघात किया था और उस स्थिति में किया था जब वे उसे पूर्ण आश्वासन दे चुके थे, वह भी उनके इस दोहरे व्यक्तित्व का ही परिचायक है। सत्ती जब उनके पास अपनी जमा की गई सारी पूँजी लेकर यह प्रस्ताव लेकर आयी कि वे उसे कहीं सुरक्षित स्थान पर ले चलें ताकि वह चमन ठाकुर और महेसर दलाल जैसे नीच लोगों से बच सके, तो वह किसी बहाने से अपने कमरे से बाहर गये और अपने भाई को सारी स्थिति समझा दी। इधर माणिक सत्ती को बातों में लगाये रहे, उधर उनके भाई उन दरिन्दों को बुला लाये। सत्ती की दुर्गति हुई, माणिक देखते रहे और सत्ती की मालमत्ता की पोटरी भी उनके कमरे में छूट गयी, जिसको उनकी भाभी ने आत्मसात कर लिया। सत्ती उस दिन इतनी पिटी कि बेहोश हो गयी थी। यह बात दूसरी है कि सत्ती ने भी उनसे कहा था- 'दगाबाज ! कमीने?' और चाकू खोलकर माणिक की ओर लपकी, पर भइया ने फौरन माणिक को खींच लिया। यह तथ्य उन्हें विश्वासघाती भी सिद्ध कर देता है।
पश्चाताप
माणिक मुल्ला में पश्चाताप का भी गुण दिखायी देता है। सत्ती उनके घर उन्हीं के विश्वासघात के कारण इतनी पिटी थी कि बेहोश हो गयी। वहाँ से उसे उसी अवस्था में उठाकर घर पहुँचाया गया था। सुबह चमन और सत्ती दोनों घर से गायब पाये गये। पता चला कि ताँगे में कपड़े से ढककर किसी बीमार को लेकर चमन सुबह ही चला गया। माणिक मुल्ला ने सोचा कि उसकी मृत्यु हो गयी। सत्ती की मृत्यु ने माणिक मुल्ला के कच्चे भावुक कवि-हृदय पर बहुत गहरी छाप छोड़ी थी और नतीजा यह हुआ कि उनकी कृतियों में मृत्यु की प्रतिध्वनि बार-बार सुनाई पड़ती थी । इधर माणिक ने यह निश्चय कर लिया था कि यदि उसकी वजह से सत्ती का जीवन नष्ट हुआ तो वे भी हर तरह से अपना जीवन नष्ट करके ही मानेंगे जैसे शरद के देवदास ने किया था और इसीलिए जीवन नष्ट करने के जितने साधन थे, उन्हें वे काम में लाते रहे थे। ये सारी स्थितियाँ उनकी पश्चाताप की भावना को ही व्यक्त करती हैं।
भावुक
माणिक मुल्ला उत्कृष्ट कोटि के भावुक भी थे। उनकी यह भावना उनके प्रेम-प्रसंगों में कई स्थलों पर उभरी है। एक प्रसंग का यहाँ उल्लेख करना उचित रहेगा लिली के प्रेम प्रसंग में। एक दिन लिली एकान्त में थी। खिड़की के पास खड़ी होकर लिली ने बाहर देखा। उसके ऊपर पानी की बौछार पड़ी। माणिक ने उससे कहा-“लिली, वहीं खड़ी रहो, खिड़की के पास, हाँ, बिलकुल ऐसे ही। बूँदे मत पोंछो और लिली, यह एक लट तुम्हारी भीगकर झूल आयी है, कितनी अच्छी लग रही है।"
माणिक की दूसरी भावुक स्थिति सत्ती की मृत्यु के बाद उभरी थी। उनका स्वास्थ्य बुरी तरह गिर गया था, उनका स्वभाव बहुत असामाजिक, उच्छृंखल और आत्मघाती हो गया था, पर उन्हें सन्तोष था क्योंकि वे सत्ती की मृत्यु का प्रायश्चित कर रहे थे। इसके अतिरिक्त भी वे कई स्थल पर भावुक बनते दिखायी देते हैं।
रूमानी प्रेम
माणिक मुल्ला का प्रेम-दर्शन भी उपन्यास में प्रकट हुआ है। उनकी मान्यता है - "प्रेम समाज-व्यवस्था से अनुशासित होता है और उसकी नींव आर्थिक संगठन और वर्ग-सम्बन्ध पर स्थापित है।" वे रूमानी प्रेम को महत्त्व देते थे। उनका कथन है-"इस रूमानी प्रेम का महत्त्व है, पर मुसीबत यह है कि वह कच्चे मन का प्यार होता है, उसमें सपने, इन्द्रधनुष और फूल तो काफी मिकदार में होते हैं, पर वह साहस और परिपक्वता नहीं होती जो इन सपनों और फूलों को स्वस्थ सामाजिक सम्बन्ध में बदल सके।" और उनके साथ हुआ भी ऐसा ही। वे न तो लिली को अपनी बना सके और न ही सत्ती को जबकि उनसे रूमानी प्रेम उन्होंने काफी निभाया, पर साहस न दिखा सके।
इस प्रकार उपन्यासकार ने माणिक मुल्ला के रूप में एक ऐसे पात्र का सृजन किया है जिसका व्यक्तित्व कई कोणों से तराशकर और बहुत कुछ जोड़कर बनाया गया है। इसमें लेखक ने अपना चिन्तन जोड़ा है, अपने व्यक्तित्व का कुछ अंश समाहित किया है। वर्तमान युग के रूमानी प्रेमी के व्यक्तित्व का कुछ अंश जोड़कर उसे सँवारा है। वे एक ओर आदर्शवादी तथा दूसरी ओर यथार्थवादी हैं। वे साहस की बात करते हैं पर डरपोक भी हैं। समाज की अनैतिकता को दूर करने की बात करते हैं पर सत्ती के जीवन को अनैतिक दरिन्दों के शिकंजे में ढकेलकर उसके जेवर की पोटली को पचा जाते हैं। जब सत्ती उन्हें भिखारी के रूप में मिलती है तो वे उसकी कोई सहायता नहीं करते, बल्कि इसी से सन्तुष्ट हो जाते हैं कि सत्ती अभी मरी नहीं है। इस प्रकार का व्यक्तित्व माणिक मुल्ला का जिसमें कई विरोधाभास हैं।
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