सहिष्णुता धैर्य का पर्यायवाची है विषय पर हिंदी निबंध मानव जीवन में सुख और दुःख दो ऐसे पहलू हैं जिनका क्रम लगातार बना रहता है. प्रथम है सुख-सम्पत्ति
सहिष्णुता धैर्य का पर्यायवाची है विषय पर हिंदी निबंध
मानव जीवन में सुख और दुःख दो ऐसे पहलू हैं जिनका क्रम लगातार बना रहता है. प्रथम है सुख-सम्पत्ति की अवस्था - "जिसमें मानव पार्थिव जीवों से पृथक् होना नहीं चाहता अर्थात् मानव भौतिकताओं में ही आत्मआहलाद का अनुभव करता है. दुनिया उसे भौतिकता के रंगीन चश्मे के अन्दर पूरी रंगीन दिखती है, जहाँ दुःख का कतई स्थान नहीं है, चारों ओर आनन्द का साम्राज्य दिखता है." दूसरा पक्ष है दुःख की अवस्था - "जिसमें मानव आत्म विदग्ध हो अपनी असफलताओं से निराश हो बैठता है, उसका आत्म सम्बल टूट जाता है, वह दिशाहीन नौका की भाँति इस जगत् में थपेड़े खाता रहता है और जहाँ चारों ओर गहन अंधकार ही नजर आता है उसे."
मानव जब इन दोनों अवस्थाओं में आत्म-नियंत्रण नहीं खोता है तब यह स्थिति धैर्य कहलाती है. दूसरी ओर "सहिष्णुता मानवीय अन्तरात्मा का वह सम्बल है जिससे मानव क्लेश, कष्ट आदि को धैर्यपूर्वक सह लेता है, अर्थात् सहिष्णुता धैर्य का पर्याय है. मानव का वह गुण, जिससे प्रतिकार की सामर्थ्य रखते हुए भी हिंसा का आश्रय नहीं लेता है, सहिष्णुता है, जिसमें धैर्य का होना अति आवश्यक है. "
धैर्य एवं सहिष्णुता का सम्बन्ध मनुष्य के अंतरआत्मा से है. इसमें मन की वृत्तियों को एकनिष्ठ बनाना पड़ता है. दृढ़ता और साहस अपने स्थान पर रहते हुए धैर्य की अपेक्षा रखते हैं. इन तीनों की मिली-जुली शक्ति ही सहिष्णुता कहलाती है.
धैर्य, सहिष्णुता, कर्मठता आदि ऐसे गुण हैं जो मानव को कठिन परिस्थितियों से उबारते हैं. जो लोग विवेकपूर्वक साहस और धैर्य से अपना कार्य करते हैं उन्हें ही जीवन- यापन में आने वाली कठिनाइयों एवं बाधाओं पर सफलता मिलती है. धैर्य एवं सहिष्णुता मानव की आत्म-प्रेरित शक्तियाँ हैं जो मनुष्य को कार्य में लगाता है और जीवन के लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक होता है ।
मानव-जीवन के दो लक्ष्य होते हैं-प्रथम है-सांसारिक जीवन को सुखी बनाने हेतु भौतिक साधनों को एकत्र करना, दूसरा है-पारलौकिक जीवन को कल्याणकारी बनाने का प्रयास करना.
इन दो लक्ष्यों की प्राप्ति धैर्य एवं सहिष्णुता से ही सम्भव है. हम अपने भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए जब कोई बड़ा कार्य करते हैं, तो उसके सामने अनेक कठिनाइयाँ आती हैं जिससे उसकी परेशानियाँ बढ़ती चली जाती हैं. इस स्थिति में मनुष्य को योजनाबद्ध तरीके से काफी धैर्यपूर्वक उन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है तभी उसे सफलता मिलती है. कहा भी जाता है कि "समय से पहले कोई काम नहीं होता है, से ज्यादा किसी को कुछ मिलता नहीं है." कवि रहीम कहते हैं- धीरे-धीरे रे मना, धीरज में सब होय। माली सींचे सौ घड़ा रितु आए फल होय ।
मनुष्य का जन्म उसके पूर्वजन्म से अनेक कर्मों का परिणाम है. मोक्ष उनका परम लक्ष्य है जिसके लिए उसे विभिन्न प्रकार के प्रयत्न करने पड़ते हैं. इसके लिए आवश्यक होता है-कर्मों का पूर्णतया क्षय. कर्मों के लिए मनुष्य को आसक्ति घटानी पड़ती है जो कि जन्मों के अनवरत् अभ्यास से सम्भव है. धीरे-धीरे आसक्ति घटने से मन के संस्कार मिटने लगते हैं और संस्कारों के अभाव में मन में शुद्धता आती है, मनुष्य का जीवन शुद्ध होता है. वही शुद्ध जीव परमात्मा की शक्ति में मिलने का अधिकारी होता है. कष्टों को सहकर तथा धैर्यपूर्वक फल की प्रतीक्षा करने के उपरान्त सफलता का दर्शन सम्भव होता है. इस प्रकार धैर्य और सहिष्णुता से ही मानव अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है.
सहिष्णुता से मनुष्य की आन्तरिक शक्ति का विकास होता है. मनुष्य में आत्मबल आता है, आत्मबल किसी भी सफलता के लिए निहायत अनिवार्य है. धैर्य से मानसिक वृत्तियाँ एकाग्र होती हैं. एकाग्रचित्त से कर्मरत होने के कारण मानव ऊबता नहीं वरन् अनवरत् अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु संघर्षरत रहता है. अंततोगत्वा वह विजयी होता है. इससे मनुष्य में विवेक की जागृति होती है. जिससे सत्-असत्, लाभ-हानि उचित-अनुचित का विचार रहता है. यही विवेक ऐसा मार्ग बताता है जिस पर चलकर वह अपने जीवन को सफल बनाता है. धैर्य से कार्य करने वाला व्यक्ति श्रांति और क्लान्ति का अनुभव नहीं करता है. उसकी कार्यविधि में स्थिरता रहती है जिससे वह अपेक्षित गति से अपने लक्ष्य तक पहुँचने का प्रयास करता है, परिणामतः वह सफल होता है.
"धैर्य सहिष्णुता आदि ऐसे गुण हैं जो मनुष्य की तामसी प्रवृत्तियों पर नियंत्रण रखने में समर्थ बनाती हैं और इससे उद्दंडता और अनुशासनहीनता से बचते हुए व्यक्ति सदा व्यवस्थित और संयमित रहता है. जिससे वह अनेक कठिनाइयों से बचा रहता है." यह एक ऐसा गुण है जिसके सहारे मानव का निर्माण होता रहता है. उसके चरित्र में दृढ़ता आती है, वह सम्मान का पात्र होता है. लोक-रीति यही है कि मनुष्य के कर्मकाल की कठिनाइयों को लोग कम देखते हैं। सभी लोग अन्तिम परिणाम ही देखते हैं एवं उसी के मुताबिक कर्ता को सम्मान या अपमान मिलता है. इसके लिए धैर्यपूर्वक समय को सहन करना होता है.
अतः यह स्पष्ट है कि मानव जीवन की सफलता का मूलाधार धैर्य मिश्रित सहिष्णुता ही है. इसके अभाव में जीवन अस्थिर रहता है. धैर्य विवेकशील मनुष्य की उत्तम अवस्था है. संस्कृत में इसे महापुरुषों के चरित्र का एक आवश्यक लक्षण बताया गया है. साहित्यशास्त्र में चार प्रकार के नायक बताए हैं. 'धीर' शब्द प्रत्येक के पहले जुड़ा हुआ है. जीवन में भला-बुरा कुछ भी करने के लिए 'धीर' होना आवश्यक है. आदर्श पात्र यदि धीरोद्धात्त हैं, तो खलनायक भी धीरोद्धात्त हैं.
"महापुरुषों के लक्षण हैं कि वे विपत्ति में धैर्य धारण करते हैं और उन्नति में उनकी वृत्ति क्षमाशील होती है, महापुरुषों का चित्त सम्पत्ति में कमल-पत्र के समान कोमल होता है तथा विपत्ति में पर्वत-शिला के समान कठोर हो जाता है." दुःख मनुष्य को मांजता है अतः मनुष्य को दुःख से नहीं घबराना चाहिए, बल्कि उनकी प्रवृत्ति सहनशील होनी चाहिए. तुलसीदास ने कहा है-मनुष्य के धैर्य की परीक्षा उसके दुःख रूपी अग्नि में जलकर ही होती है और ऐसी विपत्ति में ही धैर्य, धर्म, मित्र और नारी की परीक्षा भी होती है- "धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपत-काल परखिहहिं चारी।"
मानव जीवन की महानता इसी में है कि वह धैर्य (सहिष्णुता मिश्रित धैर्य) शक्ति द्वारा आत्मशक्ति का विकास करके सांसारिक बाधाओं को हटाए तथा अपनी उद्धात्त प्रवृत्ति को सन्तुष्ट करे. सहिष्णुता कोई अलग-चीज नहीं वरन् धैर्य का ही पूरक है जो मनुष्य धैर्यवान होगा वह सहिष्णु होगा ही. सहिष्णुता धैर्य का पर्याय है. यदि यह कहा जाए, तो कोई अतिश्योक्ति न होगी.
COMMENTS