तमस उपन्यास की तात्विक समीक्षा | भीष्म साहनी

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तमस उपन्यास की तात्विक समीक्षा भीष्म साहनी तमस केवल एक साहित्यिक कृति ही नहीं है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक दस्तावेज भी है। यह उपन्या

तमस उपन्यास की तात्विक समीक्षा | भीष्म साहनी


भीष्म साहनी का उपन्यास तमस भारतीय साहित्य का एक महत्वपूर्ण रत्न है। यह उपन्यास भारत के विभाजन के दौरान हुए सांप्रदायिक दंगों का एक यथार्थवादी और मार्मिक चित्रण है। साहनी ने इस उपन्यास के माध्यम से विभाजन के दौरान हुई मानवीय त्रासदी, हिंसा और सांप्रदायिकता के जहर को बेबाकी से उजागर किया है।

तमस केवल एक साहित्यिक कृति ही नहीं है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक दस्तावेज भी है। यह उपन्यास हमें सांप्रदायिकता के खतरों के बारे में जागरूक करता है और हमें मानवीय मूल्यों को महत्व देने की प्रेरणा देता है। यह उपन्यास हमें यह भी याद दिलाता है कि हमें इतिहास से सीखना चाहिए और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए प्रयास करना चाहिए।

विद्वानों ने उपन्यास के छः तत्त्व निर्धारित किये हैं- 
  • कथावस्तु, 
  • कथोपकथन, 
  • पात्र तथा चरित्र-चित्रण, 
  • देशकाल तथा वातावरण, 
  • भाषा-शैली तथा 
  • उद्देश्य ।

अब हम इन्हीं तत्त्वों के आधार पर 'तमस' उपन्यास की समीक्षा प्रस्तुत करेंगे- 

कथावस्तु

'तमस' उपन्यास में भीष्म साहनी ने भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन और भारत-पाकिस्तान के विभाजन को पृष्ठभूमि बनाकर हिन्दू-मुसलमानों की साम्प्रदायिक प्रवृत्ति एवं अँग्रेज सरकारों की 'फूट डालो और राज करो' की नीति को ही आधार बनाया है। हिन्दू और मुसलमानों मैं फूट डलवाकर ही वे लगभग दो सौ वर्ष आसानी से शासन करते रहे। अँग्रेज शासक मुराद अली जैसे पतित लोगों को अपने लक्ष्य-पूर्ति का साधनं बनाया करते थे। मुराद अली ही अँग्रेजों के बहकावे में आकर नत्थू चमार से एक देशी पिगरी सुअर मरवाकर मस्जिद के सामने फेंक देता है' फिर क्या था ! दकियानूसी एवं घोर सम्प्रदायवादी लोगों ने इसे हिन्दुओं की करतूत समझा और जेहाद के नाम पर हिन्दुओं से बदला लेने के लिये तत्पर हो उठे। एक धर्मशाला के सामने गाय को काटकर फेंक दिया गया। स्थान-स्थान पर 'अल्ला हो अकबर', 'पाकिस्तान जिन्दाबाद' आदि के नारे लगाये जाने लगे। मुसलमान-बहुल शहर में हिन्दुओं के साथ अधिक अत्याचार किये गये । उनके मकानों को लूटा गया, उनमें आग लगा दी तथा कुछ को मौत कें घाट उतार दिया। हिन्दुओं की स्त्रियों को बेइज्जत किया गया, कइयों को बलात् धर्म-परिवर्तन को बाध्य किया गया।
 
हिन्दुओं के मुहल्लों से मुसलमान लोंग और मुसलमानों के मुहल्लों से हिन्दू लोगों का आना- जाना रुक गया । बलवाइयों ने खूब नंगा नाच नाचा और इस नंगे नाच में अनाज मण्डी, 103 गाँव एवं सैकड़ों घर जलाकर राख कर दिये गये। हजारों निरीह जानें दोनों ही सम्प्रदाय के लोगों की चली गर्यो । यह साम्प्रदायिक आग शहर तक ही सीमित नहीं रही अपितु वह आस-पास के गाँवों में भी फैल गयी। मुसलमान-बहुल गाँवों में जो एकाध हिन्दू या सिखों के मकान या दुकानें थीं उन्हें लूट लिया गया और उनमें आग लगा दी गयी। हरनाम सिंह के पुत्र को जबरन मुसलमान बनाया गया। गुरुद्वारे पर सिखों ने एकत्र होकर असला एकत्र किया तो मुसलमानों ने अपनी मस्जिदों में। फिर क्या था दोनों ओर से खुलकर लड़ाई हुई पर मुसलमानों का सम्पर्क बाहर के बलवाइयों से बना हुआ था। साथ ही वे संख्या में भी अधिक थे अतः जीत उन्हीं की हुई। बहुत से सिख मारे गये उनकी स्त्रियों ने अपनी इज्जत बचाने के लिये कुओं में डूबकर स्वयं आत्महत्या कर लीं।

तमस उपन्यास की तात्विक समीक्षा | भीष्म साहनी
इस पागलपन ने हिन्दुओं और सिखों एवं मुसलमानों दोनों ही सम्प्रदायों की जान-माल की 'बहुत क्षति की । अँग्रेज शासक यदि चाहते तो इस खून-खराबी एवं बबादी को रोक सकते थे पर वे न तो इसे अपना देश समझते थे और न उन्हें इस देश के निवासियों से कोई हमदर्दी ही थो, यही व्यंग्य लेखक ने इस उपन्यास में स्पष्ट किया है। यदि उनमें इस देशवासियों के प्रति जरा भी स्नेह एवं उत्तरदायित्व की भावना होती तो जो शिष्टमण्डल डिप्टी कमिश्रर रिचर्ड को शहर की बिगड़ती हुई स्थिति पर काबू पाने के लिये सचेत करने गया था, उसकी बातों पर रिचर्ड ध्यान देता। पर रिचर्ड ने यह कहकर कि न तो हवाई जहाज पर मेरा अधिकार है और न सेना पर ही। माना कि ये दोनों विभाग उनसे सीधे सम्बद्ध नहीं थे, पर यदि शासन चाहता तो उनसे किसी भी क्षण लोगों की जान-माल की रक्षा के लिये मदद ले सकता था। साथ ही कर्फ्यू आदि से स्थिति को नियंत्रित कर सकता था, पर उसने इन सब बातों की उपेक्षा की, क्योंकि वह जानता था कि जितने अधिक समय तक हिन्दू मुसलमान लड़ते-झगड़ते रहेंगे उतने ही समय तक उन्हें (अँग्रेजों को) शासन में सुविधा मिलती रहेगी। और अन्त में जब खूब खून-खराबा एवं जन-धन की हानि हो चुकी तब रिचर्ड ने कर्फ्यू भी लगवाया, फौस भी बुलाई, हवाई जहाज से भी शहर तथा गाँवों पर चक्कर लगवाये।
 
इस महानाश के पश्चात् अमन कमेटी बनायी गयी, रिफ्यूजी कैम्प खोले गये, हैल्थ ऑफीसर के सहयोग से घायलों की चिकित्सा की व्यवस्था की गयी, भूखों को भोजन दिया गया और मुर्दों को जलवाया गया। अमन-कमेटी के सदस्यों ने 'बीती ताहि बिसारि कै आगे की सुधि लेय' वाली कहावत के अनुसार हिन्दू-मुसलमानों में सद्भाव उत्पन्न करने की पुनः चेष्टा की । इस महानाश का पूर्ण उत्तरदायित्व तत्कालीन शासक रिचर्ड पर था, पर अँग्रेज सरकार ने मात्र उसके तबादले से ही वहाँ के लोगों को खुश कर दिया।
 
इस प्रकार हम देखने हैं कि 'तमस' उपन्यास की कथावस्तु सुनियोजित, सुगठित एवं श्रृंखलाबद्ध है। वह स्वाभाविक रूप में विकसित होती हुई अन्त की ओर अग्रसर होती है। हिन्दू- मुसलमान दंगे एवं भारत-पाकिस्तान विभाजन ही मुख्य कथा के अंग हैं। प्रासंगिक कथाओं के रूप में लेखक ने नत्थू चमार की सुअर मारने की कथा, लीजा का हिन्दुस्तान एवं वहाँ के निवासियों के विषय में जानने की इच्छा, रिचर्ड का तक्षशिला की कला एवं साहित्य में रुचि रखना, काँग्रेसियों की प्रभात फेरी निकालना, चुंगी के चुनाव की रूपरेखा आदि हैं। पाठक के मन पर अँग्रेज सरकार की अनुतरदायित्वपूर्ण एवं उपेक्षापूर्ण भावना तथा मुसलमानों के अनाचार एवं दुराचारों की बड़ी गहन एवं भार्मिक छाप पड़ती है । कथानक का आरम्भ बड़ा ही नाटकीय एवं औत्सुक्य लिये हुए है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि 'तमस' की कथावस्तु कुल मिलाकर बड़ी ही सुव्यवस्थित एवं सुगुम्फित है तथा रोचकता से पूर्ण है। सम्पूर्ण कथानक दो भागों एवं इक्कीस खण्डों में विभक्त है, पर दो भाग का औचित्य समझ में नहीं आता है । हम लोग अज्ञानतावश तथा धार्मिक उन्माद के कारण देश तथा समाज का कितना अहित कर डालते हैं, यही 'तमस' है और जब तक यह 'तमस' नहीं निकलेगा तब तक देश सही मायने में अभी भी स्वतन्त्र नहीं माना जायेगा ।
 

कथोपकथन

कथोपकथन की दृष्टि से 'तमस' उपन्यास एक सफल उपन्यास है। अधिकांश में यह वर्णनात्मक है लेकिन फिर भी कथोपकथन के प्रयोग से उपन्यास में रोचकता, स्वाभाविकता एवं सरसता आ गयी है । उपन्यास में आगत सभी संवाद उपन्यास के कथानक को गति देने में समर्थ रहे हैं। साथ ही संवाद पात्रों की मनःस्थिति एवं घटनाओं का भी परिचय देने वाले रहे हैं।
 
लीगी मुसलमान जिन्ना के अनुयायी थे। अतः जो मुसलमान उनकी बात का विरोध करे और भारतीय एकता की बात करे, उनकी दृष्टि में वह 'कुत्ता' होता था। लीगी मुसलमान की इसी दूषित प्रवृत्ति को उपन्यासकार ने एक स्थान पर संवादों के माध्यम से व्यक्त किया है, उदाहरण प्रस्तुत है-
 
"यह सब हिन्दुओं की चालाकी है, बख्शीजी, हम सब जानते हैं। आप चाहें जो कहें, काँग्रेस हिन्दुओं की जमात है। और मुस्लिम लीग मुसलमानों की। काँग्रेस मुसलमानों की रहनुमाई नहीं कर सकती ।" 
इसके उत्तर में वयोवृद्ध काँग्रेसी कह रहा था- 
"यह देख लो, सिक्ख भी हैं, हिन्दू भी हैं, मुसलमान भी हैं। यह अजीज सामने खड़ा है, हकीमजी खड़े हैं : ... 
"अजीज और हकीम हिन्दुओं के कुत्ते हैं। हमें हिन्दुओं से नफरत नहीं, इनके कुत्तों से नफरत है।" 
"मौलाना आजाद क्या हिन्दू है या मुसलमान ?" वयोवृद्ध ने कहा-" वह तो काँग्रेस का प्रेसीडेण्ट है।" 
"मौलाना आजाद हिन्दुओं का सबसे बड़ा कुत्ता है। गाँधी के पीछे दुम हिलाता फिरता है, जैसे ये कुत्ते आपके पीछे दुम हिलाते फिरते हैं।" 
इस पर वयोवृद्ध बड़े धीरज से बोले- 
आजादी सबके लिये है। सारे हिन्दुस्तान के लिये है।" 
"हिन्दुस्तान की आजादी हिन्दुओं के लिये होगी आजाद पाकिस्तान में मुसलमान आजाद होंगे।" 
उपर्युक्त संवाद इस बात का प्रमाण है कि धार्मिक जुनून में डूबे मुसलमानों की हठधर्मिता के कारण ही पाकिस्तान का निर्माण हुआ पर उन धार्मिक बातों अब भी भारत देश में कमी नहीं है।
 
कहीं-कहीं लेखक ने तत्कालीन समाज-सेवकों की दूसरों को दिखावे की भावना का भी अच्छा पर्दाफाश किया है। मास्टर रामदासजी दूसरों को दिखाने के लिये तो हाथ में झाड़ ले लेते हैं पर काम करने से जी चुराते हैं। इसी भाव को लेखक ने निम्नलिखित कथोपकथन में बड़े ही स्वाभाविक रूप से प्रस्तुत कर दिया है- 

"मैं नाली साफ नहीं करूंगा। पहले बोल दूं।" 
"क्यों ? तुम्हें सुरखाब के पर लगे हैं ?" 
"यह मेरी उम्र नालियाँ साफ करने की है।" 
"क्यों ? गाँधीजी अपना शौचालय साफ कर सकते हैं, तुम नाली साफ नहीं कर सकते ?" "मैं झूठ नहीं कहता, मैं झुक नहीं सकता, झुकता हूँ, तो कमर में दर्द उठता है। मुझे पथरी की शिकायत रहती है।" 
"गाय के लिये सानी-पानी करते हो तो पथरी की शिकायत नहीं रहती। तामीरी काम करते वक्त ही तुम्हें पथरी की शिकायत होने लगती है ?" 
कहीं-कहीं उपन्यासकार ने पात्रों की स्वाभाविक एवं सहज भावना का अंकन उनके संवादों में प्रस्तुत किया है । नत्थू और उसकी पत्नी के संवाद में यही भाव देखा जा सकता है- 
"झूठ बोलती हो। सच बता खाना खाया ?" 
पत्नी ने आँख उठाकर हँसते हुए कहा- "हमने बनाया था, पर हमसे खाया नहीं गया ।" "सुबह को खाया था या नहीं ?" 
"खाया था।" 
"फिर झूठ । सच-सच बता, खाया था ?" 
उसने फिर पति की ओर देखा और हँस दी- "नहीं खाया था। मैं तुम्हारी बाट देख रही थी, खाती कैसे ?"
 
समग्र रूप से हम कह सकते हैं कि भीष्म साहनी ने 'तमस' उपन्यास में संवाद योजना उत्कृष्ट, संक्षिप्त, रोचक रूप में प्रस्तुत की है। किसी भी स्थिति में उनके संवाद लम्बे नहीं हैं। 'तमस' उपन्यास के संवाद पात्रों के स्वभाव, उनके दृष्टिकोण एवं अन्तर्द्वन्द्व की सजीव झाँकी प्रस्तुत करने वाले हैं।
 

पात्र तथा चरित्र-चित्रण

तमस उपन्यास में साहनी ने तत्कालीन सामाजिक एवं राजनैतिक परिस्थितियों का उदघाटन करने के लिये समाज के विभिन्न क्षेत्रों के पात्रों का चयन किया है । उपन्यास के प्रमुख पात्रों में डिप्टी कमिश्नर रिचर्ड, उसकी पत्नी लीजा, बख्शी, हयातबख्श, देवदत्त, शहनबाज, मीरदाद, लाला लक्ष्मीनारायण, मुराद अली, सोहनसिंह, नत्थू, तेजसिंह, खुदाबख्श, नानबाई, मेहताजी, देसराज, अजीतसिंह, किशनसिंह, कश्मीरी लाल, जनरैल, नत्थू की पत्नी, हरनामसिंह, बन्तो, हरनाम की पुत्री जसवीर कौर, एहसान अली, रमजान अली, एहसान अली की बीबी राजो आदि हैं । इन पात्रों में प्रायः सभी प्रकृति के पात्रों की समायोजना लेखक ने की है। इनमें देशभक्त, देशद्रोही, समाजसेवी, षड्यंत्रकारी, संयमी, अत्याचारी, धार्मिक जुनून वाले, सद्भाव वाले, कुशल प्रशासक आदि सभी वर्गों के पात्र हैं । उपन्यास के पात्रों की संख्या यद्यपि बहुत अधिक है, पर पात्रों की बहुलता से उपन्यास की कथा में सजीवता, सरसता एवं रोचकता का अभाव नहीं आ पाया है । उपन्यास में वर्णित प्रायः सभी पात्र सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्त्ता हैं। अब हम प्रमुख पात्रों का अलग से विवेचन प्रस्तुत करेंगे - 
 
रिचर्ड - रिचर्ड अँग्रेजी शासन का प्रतिनिधि एवं शहर का डिप्टी कमिश्नर है। वह अँग्रेजों की कूटनीति 'फूट डालो और राज करो' का सही रूप में प्रतिनिधित्व करता है। शहर में धार्मिक उन्माद छा जाने पर नगर के सभी धर्मों के प्रतिनिधिजन उनसे परिस्थिति को सँभालने की प्रार्थना करते हैं तो वह प्रतिनिधि मण्डल से व्यंग्य में बातें करता है तथा अपने उत्तरदायित्व से विमुख रहता है जिसके परिणामस्वरूप शहर एवं गाँवों में जान-माल का बहुत बड़ा नुकसान होता है और फिर इस महानाश के पश्चात् वह वहाँ की जनता के आँसू पोंछने के लिये कर्फ्यू लगवाता है, पुलिस एवं सेना की गश्त करवाता है, हवाई जहाज उड़वाता है। इसके अतिरिक्त वह प्रशासन से अधिक साहित्य एवं कला में रुचि लेता है, वह तक्षशिला का भ्रमण कर उस पर एक अच्छी पुस्तक लिखना चाहता है ।
 
बख्शी - बख्शी नगर का प्रमुख काँग्रेसी नेता है। वह गाँधीजी के अहिंसा एवं देशप्रेम की भावना का अनन्य अनुयायी है। काँग्रेस की प्रभात फेरी लेकर अमन-कमेटी तक में उसका प्रमुख स्थान है । वह धार्मिक उन्माद के जुनून को हर सम्भव प्रयत्न करके रोकने की चेष्टा करता है । मस्जिद के सामने पड़े हुए सुअर को वह स्वयं ही वहाँ से हटा देता है ताकि मुसलमानों के दिल में कोई दुर्भाव न रहे। भयंकर फिसाद हो जाने पर वह बहुत दुःखी होता है तथा शहर में सद्भाव उत्पन्न करने के लिये वह स्थान-स्थान पर घूमकर प्रचार करता है। शरणार्थियों की सहायता में भी वह पीछे नहीं रहता है।
 
हयातबख्श - हयातबख्श का चरित्र बख्शीजी के स्वभाव से पूर्णतया भिन्न है । वह उन धार्मिक जुनून वाले व्यक्तियों का नेता है जो जिन्ना को अपना नेता मानते हैं तथा भारत का विभाजन कराकर अलग पाकिस्तान लेना चाहते हैं। साम्प्रदायिकता में उसका पक्का विश्वास है । साम्प्रदायिक दंगों को भयंकर रूप देने में वह अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है । काँग्रेस को वह हिन्दुओं की जमात बताता है तथा काँग्रेस पार्टी में रहने वाले मुसलमानों को वह हिन्दुओं का कुत्ता बताता है।
 
देवदत्त- देवदत्त कम्युनिस्ट पार्टी का नेता है, पर है वह कट्टर देशप्रेमी । दंगा-फसाद फूट पढ़ने पर भी वह शहर में सद्भाव उत्पन्न करने के लिये खूब भाग-दौड़ करता है और कभी- कभी तो वह अपने जीवन को भी इस काम के लिये खतरे में डाल देता है ।
 
शहनबाज - शहनबाज यद्यपि मुसलमान है लेकिन उसमें धार्मिक उन्माद नाममात्र को भी नहीं है । रघुनाथ उसका परम मित्र है। दोस्तपरवरी उसका ईमान था। वह शहर का नामी रईस था। हिन्दू-मुसलमान दंगा फूट पड़ने पर वह अपने मित्र रघुनाथ का सुख- समाचार लेने जाता है तथा रघुनाथ के घर की बगल में बैठे नानबाई को सावधान करते हुए कड़ देता है - "देख फर्कारे, दोनों कान खोलकर सुन ले । अगर मेरे यार के घर को किसी ने बुरी नजर से देखा तो मैं तुझे पकडूंगा । कोई घर के नजदीक नहीं आये ।” 

इन प्रमुख पात्रों के अतिरिक्त अन्य पात्रों में लाला लक्ष्मीनारायण हिन्दू महासभा के कर्मठ सदस्य तथा नगर के प्रमुख व्यापारी हैं। मीरदाद मुस्लिम लीग ६ सदस्य है। सोहनसिंह हिन्दू- मुस्लिम एकता स्थापित करने वाला है। नारी पात्रों में नत्थू को पक्षी धैर्य वाली एवं अक्लमन्द स्त्री है। जसवीर कौर वीरता की साक्षात् प्रतिमा है तथा शत्रु से लोहा लेने के लिये तैयार रहती है । एहसान अली की पत्नी राजो मुसलमान होते हुए भी शरणागत हिन्दू की रक्षा करने वाली है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि उपन्यास के सभी पात्र सहज स्वाभाविक चरित्र वाले होते हुए भी शरणागत हिन्दू की रक्षा करने वाले हैं।
 
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि उपन्यास के सभी पात्र सहज स्वाभाविक चरित्र वाले हैं तथा सभी पात्र कथा के विकास में अपेक्षित सहयोग देने वाले हैं। कोई भी पात्र ऐसा नहीं है जिसके कारण कथा के विकास में कहीं भी व्यवधान पड़ा हो।
 

देशकाल तथा वातावरण

देशकाल तथा वातावरण के समुचित प्रयोग से उपन्यास में एक प्रकार की सजीवता एवं सहजता आ जाती है। 'तमस' उपन्यास में लेखक ने देशकाल तथा वातावरण का समुचित रूप में प्रयोग किया है। इस उपन्यास में भीष्म साहनी ने स्वतन्त्रता- पूर्व के भारत की सामाजिक एवं राजनैतिक दशा को यथार्थ रूप में अंकित किया है। अँग्रेजी शासकों की 'फूट डालो और राज करो' की नीति का बड़ा ही सुन्दर अंकन किया है। अँग्रेजी शासकों का प्रतिनिधि रिचर्ड तो स्वयं चाहता था कि यहाँ के लोग परस्पर लड़ते-झगड़ते रहें ताकि हमें अपने शासन में किसी प्रकार की कोई असुविधा न हो। इस काल में भारतवासियों में स्वतन्त्रता प्राप्त करने की भावना बलवती हो उठी थी। राजनैतिक दृष्टि से यह उथल-पुथल का युग था। भारत में कॉंग्रेस, मुस्लिम लीग, कम्यूनिस्ट, हिन्दू महासभा आदि प्रमुख राजनैतिक दल सक्रिय थे । साथ ही कुछ नेता जहाँ देश को आजाद करने का व्रत ले चुके थे वहीं कुछ लीगी देश का विभाजन कर पाकिस्तान बनाने की कोशिश में थे। अँग्रेज मुसलमानों को बहकाकर हिन्दू- मुसलमान फसाद-करवा देते थे।
 
धार्मिक उन्माद इस काल में अपने चरम रूप पर था। मुसलमान एंवं हिन्दू दोनों ही धर्म के नाम पर दंगा-फसाद कर रहे थे। हिन्दू एवं सिख अपने मन्दिरों एवं गुरुद्वारों की रक्षा के लिये सजग थे तो मुसलमान मस्जिदों की रक्षा के लिये। इस धार्मिक उन्माद के कारण देश में बड़ी उथल-पुथल मची हुई थी।
 
इस प्रकार देश तथा समाज में उथल-पुथल थी। न तो शासकों को देश की चिन्ता थी और न धार्मिक उन्माद वाले व्यक्तियों को। जिन लोगों ने सद्भाव पैदा करने की चेष्टा भी की उनकी संख्या सीमित थी। इन्हीं सब दशाओं का अंकन उपन्यासकार ने बड़ी सजगता से उपन्यास में किया है । यह उपन्यास राजनैतिक पृष्ठभूमि पर लिखा गया है जिसमें लेखक ने तत्कालीन राजनैतिक एवं सामाजिक दशा का बड़ा ही सजीव एवं भावग्राही चित्रण किया गया है।
 

भाषा शैली

तमस उपन्यास में पश्चिमोत्तर पंजाब का चित्रण हुआ है। फलतः लेखक ने उसी क्षेत्र की भाषा को सहज एवं स्वाभाविक रूप से अंकित किया है। इसमें लेखक ने पात्रानुकूल भाषा का प्रयोग कर उपन्यास को सहज एवं सुबोध बना दिया है। उपन्यास में हिन्दी- उर्दू की मिश्रित शब्दावली का प्रयोग किया गया है। उस काल में हिन्दी-उर्दू मिश्रित भाषा का प्रयोग होता था । उर्दू-बहुल शब्दावली का प्रचुरता से प्रयोग हुआ है। यथा - मनहूस, तामीरी, खजीर, मुश्क, कराड़, नमूदार, दानिशचन्द, कानकुन, इश्तआल, मोहयाल, गाहे-बगाहे, आफरीन, तसबीह, रूपबाई, इत्रफरोश, बेबाक, मनादी आदि ।

बाबू और लीजा के संवादों में अँग्रेजी शब्दावली का बहुलता से प्रयोग हुआ है। यथा- लंच, बीयर, मैडम, हैल्थ ऑफीसर, बैडरूम, गाउन, टैक्सिला, म्यूजियम, रिफ्यूजी, पिकनिक, डिसइन्फैक्ट, स्पीकर आदि। इसके साथ ही कहीं-कहीं पूरा संवाद ही अँग्रेजी शब्दावली से युक्त है । यथा-
 
"यू हिण्डू बाबू ?" 
"यस मैडम ।" 
आई गैस्ड राइट ।" 
"यस मैडम।" 

"इसके अतिरिक्त उपन्यासकार ने पंजाब प्रान्त की आंचलिक भाषा का भी सहज एवं स्वाभाविक रूप वर्णित किया है। यथा-सुण भागे मारिये, असा कदे किसे दा बुरा नहीं चेतिया, बुरा नहीं कीला । इत्थो दे लोकी बी साडे नाल मरावाँ बाँग रहे हन। तेरियाँ अखाँ साहमणे करीमखान दस बारा कह गिया है - चुपचाप बैठे रहवो, तुहाडे नल कोई अँख चुक के वी नहीं बेखणया। करीमखान तों बड़ा मोतवर इत्थे कौण है ? इक्को इक्क इत्थे सिख घर है ? के गिराँवलियाँ हूँ साँडे ते हत्थ चुकदियाँ गैरत नहीं आयेगी ?"
 
(अर्थात् सुन भागे मारिये, हमने किसी का कुछ देना नहीं है, हमने किसी का कभी बुरा नहीं चेता है, कभी बुरा नहीं किया। ये लोग भी हमारे साथ कभी बुरी तरह पेश नहीं आये हैं। तेरे सामने कुछ नहीं तो दस बार करीमखान कह गया है- आराम से बैठे रहो, तुम्हारी तरफ कोई आँख उठाकर भी नहीं देखेगा। अब करीमखान से बड़ा मोतवर इस गाँव में और कौन होगा ? सारे गाँव में एक ही तो सिख घर है। उन्हें गैरत नहीं आयेगी कि हम निहत्थे बूढ़ों पर हाथ उठायेंगे ?)
 
इसके अतिरिक्त मुसलमानों द्वारा प्रयुक्त भाषा में अपशब्दों का भी खुलकर प्रयोग हुआ है। यथा -मुँह खोल तेरी माँ की । अब इसे चूस जा मादर। तुम्हारी काफिरों की मैं माँ........ । आदि ।
 
शैली की दृष्टि से 'तमस' उपन्यास में अधिकांशत: वर्णनात्मक शैली का ही प्रयोग किया है। हाँ कहीं-कहीं विवरणात्मक, भावात्मक नाटकीय एवं रेखाचित्र की शैली का प्रयोग हुआ है। नाटकीय शैली का एक उदाहरण प्रस्तुत है। नशे की हालत में रिचर्ड लीजा को उठाकर बैडरूम की ओर ले जाने लगता है तो उस वर्णन में उपन्यासकार ने नाटकीय शैली का प्रयोग किया है- 

'क्या रिचर्ड, मुझे कहाँ ले जा रहे हो ?" 
"तुम्हारा गाउन नीचे गीला हो रहा है लीजा, मैं तुम्हें तुम्हारे कमरे में ले जा रहा हूँ।" "खाना खाओगी लीजा ?" 
"खाना ? कैसा खाना " 
लीजा ने छितरे बालों के बीच सिर ऊपर उठाकर कहा - " रिचर्ड तुम हिन्दू हो या मुसलमान ?" "तुम कब आये, मुझे पता ही नहीं चला।" लीजा ने फिर कहा-"तुम दिन 'का खाना खाने आये हो या रात का ?" 
इसी प्रकार रेखाचित्र शैली का एक उदाहरण देखिये -"पतली बेंत की छड़ी झुलाता हुआ ठिगना, काला मुराद अली जगह-जगह घूमता था। शहर की किसी गली में, किसी सड़क पर वह किसी वक्त भी नमूदार हो जाता था। साँप की सी छोटी-छोटी पैनी आँखें और कटीली मूँछें और घुटनों तक लम्बा कोट और सलवार और सिर पर पगड़ी उसे सब फबतें थे । इन सब को मिलाकर ही मुराद अली की तस्वीर फबती थी।"
 
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि लेखक ने उपन्यास में सफल भाषा-शैली का प्रयोग किया है। भाषा-शैली सहज, स्वाभाविक एवं सुबोध है। साथ ही उसमें प्रवाहपूर्णता भी विद्यमान है।
 

उद्देश्य

प्रत्येक रचनाकार का कोई न कोई उद्देश्य अवश्य होता है। 'तमस' उपन्यास में भी उपन्यासकार ने सामाजिक एवं राजनैतिक विषमता में पड़े हुए मनुष्यों की जीवन्त कहानी को अंकित किया है। जीवन के प्रति अटूट निष्ठा एवं संघर्षों पर विजय प्राप्त करना ही भीष्म साहनी का अभीष्ट है और इसी उद्देश्य को इस उपन्यास में उपन्यासकार ने बड़ी सजगता से अंकित किया है। 'तमस' उपन्यास में लेखक ने धार्मिक जुनून की अंधता, धनलोलुपता, सस्ती नेतागीरी, चरित्रहीनता, विश्वासघात आदि कुभावनाओं को अंकित किया है। इस उपन्यास में लेखक ने समाज में व्याप्त साम्प्रदायिकता की भावना पर तीखा व्यंग्य कसा है। हिन्दू-मुसलमान एक ही देश में रहते हुए धर्म के नाम पर जन-धन की कितनी हानि करते रहे हैं। इसी तथ्य को लेखक ने उद्घाटित किया है और यही सबसे बड़ा 'तमस' है। जब तक यह तमस रूपी दुर्भाव जो मानव को मानव से घृणा करना सिखाता है दूर नहीं होगा, तब तक देश प्रगति के पथ पर चलकर सच्ची स्वतन्त्रता का उपयोग नहीं कर सकेगा ।
 
इसी प्रकार अँग्रेजों की उस कूटनीति का भी लेखक ने पर्दाफाश किया है जिसके बल पर वे भारतीयों में परस्पर फूट डालकर राज करते रहते थे। उदाहरणार्थ-लीजा और रिचर्ड के वार्तालाप में लेखक ने अँग्रेजों की इस कूटनीति को उजागर करते हुए कहा है- 
"क्या गड़बड़ होगी ? फिर जंग होगी ?" 
"नहीं, मगर हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच तनातनी बढ़ रही है, शायद फसाद होंगे। वे लोग आपस में लड़ेंगे ? लन्दन में तो तुम कहते थे कि ये लोग तुम्हारे खिलाफ लड़ रहे हैं।" 
"हमारे खिलाफ भी लड़ रहे हैं और आपस में भी लड़ रहे हैं।" 
"कैसी बातें कर रहे हो ? क्या तुम फिर मजाक करने लगे ?" 
"धर्म के नाम पर आपस में लड़ते हैं, देश के नाम पर हमारे साथ लड़ते हैं।" रिचर्ड ने मुस्कराकर कहा । 
बहुत चालाक नहीं बनो, रिचर्ड। मैं ब जानती हूँ। देश के नाम पर ये लोग तुम्हारे साथ लड़ते हैं और धर्म के नाम पर तुम इन्हें आपस में लड़ाते हो। क्यों, ठीक है न ?"

रिचर्ड एवं लीजा के इस संवाद में ही लेखक ने इस उपन्यास के उद्देश्य को पूर्णरूपेण उजागर कर दिया है।
 
निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि भीष्म साहनी कृत 'तमस' उपन्यास कला की दृष्टि से एक सफल उपन्यास है जिसमें लेखक ने स्वतन्त्रता से पूर्व की भारत की सामाजिक एवं राजनीतिक दशा का बड़ा ही मार्मिक एवं सजीव चित्रण किया है। उपन्यास की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए हिन्दी साहित्य अकादमी के निर्णायकों ने इसकी प्रशस्ति में लिखा है- 'तमस' अपने कलात्मक संयम, यथार्थ की गहरी पकड़, चरित्रांकन के अनूठे कौशल, मानवीय संवेदन तथा प्रत्यक्षानुभूति की विश्वसनीयता के कारण हिन्दी साहित्य को एक विशिष्ट देन माना गया है।"

इस प्रकार तमस एक ऐसा उपन्यास है जिसे हर किसी को पढ़ना चाहिए। यह उपन्यास हमें इतिहास से सीखने और भविष्य को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित करता है। यह उपन्यास हमें याद दिलाता है कि मानवता से ऊपर कोई धर्म या जाति नहीं होती है।

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हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: तमस उपन्यास की तात्विक समीक्षा | भीष्म साहनी
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तमस उपन्यास की तात्विक समीक्षा भीष्म साहनी तमस केवल एक साहित्यिक कृति ही नहीं है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक दस्तावेज भी है। यह उपन्या
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