कुछ ऐसे भी व्यवसाय पेशे हैं जहाँ महिलाएँ नहीं होनी चाहिए जिस प्रकार तार के बिना वीणा, बत्ती के बिना दीपक, मूर्ति के बिना मन्दिर अधूरा है, उसी प्रकार
कुछ ऐसे भी व्यवसाय पेशे हैं जहाँ महिलाएँ नहीं होनी चाहिए
जिस प्रकार तार के बिना वीणा, बत्ती के बिना दीपक, मूर्ति के बिना मन्दिर अधूरा है, उसी प्रकार नारी के बिना मानव समाज अधूरा है। नारी ईश्वर की बनाई हुई एक ऐसी कृति है जिसके बिना शायद आज यह समाज ही न होता।नारी ही इस मानव समाज को आगे बढ़ाती है।
आदि काल से नारी के विषय में यह सूक्ति प्रचलित है - यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता। अर्थात् जहाँ नारी की पूजा होती हैं वहाँ देवता निवास करते हैं और जहाँ उनका तिरस्कार होता है, वहाँ सारी क्रियाएँ विफल हो जाती है।
प्राचीनकाल में नारियों को घर की दहलीज के बाहर नहीं निकलने दिया जाता था, परन्तु आज वह अपने घर की दहलीज को लाँघकर बाहर निकल आई है। आज नारी केवल नर्स या शिक्षिका जैसे कार्य-क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं है। हर क्षेत्र में उसके लिए कुछ सीटें छोड़ी जाती है।
नारी के अनेक रूप है। हमारा समाज उसे अलग-अलग रूपों में देखता है। माँ, बहन, पत्नी इन सभी रूपों में वह जन-कल्याण करती है। माँ बनकर वह अपने बच्चे को अपनी ममता के आँचल में इस तरह पालती है कि वह बड़ा होकर अपने पैरों पर खड़ा हो सके । बहन बनकर अपने भाई को इतना प्यार देती है कि वह उसकी रक्षा करने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को तैयार होता है। पत्नी का रूप सबसे महत्त्वपूर्ण है। हर पुरुष अपनी जिन्दगी का सबसे महत्त्वपूर्ण समय अपनी पत्नी के साथ गुजारता है। पत्नी का स्वभाव पति के जीवन में अति महत्त्व का है। कहा जाता है कि हर सफल पुरुष के पीछे नारी का ही हाथ होता है।
नारी का एक रूप शक्ति का भी है, जो हमें कभी-कभी दिखाई पड़ता है। उसका यह रूप तभी सामने आता है जब वह समाज में पनपते दुर्व्यव्यहारों को दूर करने की ठान लेती है, किन्तु जब वह अहिंसा से ऐसा नहीं कर पाती तो वह शक्ति का रूप ले लेती है, किन्तु नारी हृदय सबसे कोमल तथा प्रेममय होता है। इसलिए राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने कहा है -
अबला जीवन हाय, तुम्हारी यही कहानी।
आँचल में है दूध, और आँखों में पानी ॥
आज नारी पुरुषों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चल रही है। नारी की सहायता के बिना हमारे समाज की आगे बढ़ने की जो गति है वह धीमी हो जायेगी। आज हमारा देश उन्नति के शिखर पर पहुँच गया है, परन्तु यदि नारी का योगदान न होगा तो हमारा राष्ट्र अन्य राष्ट्रों से पिछड़ जायेगा। नारी का हर व्यवसाय में होना अत्यन्त आवश्यक है।
हमारे देश की प्रगति का आधे से ज्यादा श्रेय देश की नारियों को जाता है। नारी का प्रथम कर्त्तव्य उसके परिवार के प्रति होना चाहिए, फिर समाज, तथा देश के प्रति होना चाहिए।महिलाओं का प्रथम ध्येय (लक्ष्य) अपने परिवार की स्थापना होनी चाहिए। जब लड़की की शादी होती है और वह पहली बार अपने ससुराल आती है। तब उसका प्रथम कर्त्तव्य अपने परिवार को देखना है। नारी माँ बनती है, उस समय उसका प्रथम कर्त्तव्य अपने बच्चे की देखभाल करना होना चाहिए। अगर बच्चा माँ के प्यार से वंचित रह गया तो वह शारीरिक तथा मानसिक रूप से कमजोर हो जाता है। बड़ा होने पर बालक गलत राह पर चलने लग सकता है; क्योंकि उसे रोकने या टोकने वाला कोई नहीं होता। अगर वह एक बार गलत रास्ते पर चलने लगे तो उसका लौट आना बड़ा मुश्किल होता है। इसलिए नौकरी पर जाने से पहले सोच लेना चाहिए कि उसके प्यार और ममता के बिना उसका परिवार बिखर तो नहीं जायेगा।
आजकल नारी का हर क्षेत्र में स्थान है। कुछ ऐसे व्यवसाय होते हैं जिस पर महिलाओं को अत्यन्त समय देना पड़ता है। परिवार से ज्यादा देर तक दूर रहने से पारिवारिक लोगों के साथ दूरियाँ बढ़ जाती हैं। यह समाज के हित में नहीं है। हो सकता है कि जिस क्षेत्र में महिला अपना इतना समय देती है उस क्षेत्र में प्रगति हो, परन्तु उसका परिवार बिखरने लगेगा। गलत राह पर चलने वालों की संख्या बढ़ने लगेगी। नारी का प्रथम ध्येय अपना परिवार होना चाहिए।
कुछ व्यवसाय ऐसे भी होते है जिनमें अधिक ध्यान देने से स्त्री स्वयं भटकने लग सकती है। नारी का भटकना भी समाज के लिए हानिकारक है। नारी समाज को बना सकती है तो गलत राहों में भटकती नारियाँ समाज का बिखराव भी कर सकती हैं। अतः इस तरह के व्यवसाय में नारी का योगदान समाज के लिए हानिकारक है। इस तरह के व्यवसायों में नारी को संलग्न नहीं होना चाहिए।
नारी को ऐसे व्यवसायों का चुनाव नहीं करना चाहिए, जहाँ उन्हें लम्बे अन्तराल तक घर से बाहर रहना पड़े। समय का अभाव होने के कारण वह गृहस्थी का उत्तरदायित्व, बच्चों का पालन पोषण, शिक्षा-दीक्षा तथा परिवार की देखभाल नहीं कर पाती है। इसी कारण दाम्पत्य सम्बन्धों में कटुता, मानसिक तनाव, आत्महत्या तथा तलाक की घटनाएँ भी बढ़ती जा रहीं हैं।
COMMENTS