अम्बर परियां उपन्यास की समीक्षा | बलजिंदर नसराली

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अम्बर परियां बलजिंदर नसराली सम्प्रति, कथा-साहित्य जगत का अधिकांश ही स्त्री जीवन के संघर्षों और स्त्री के अंतस्तल में अवस्थित कशमकश, उथल-पुथल और दुविध

अम्बर परियां बलजिंदर नसराली


म्प्रति, कथा-साहित्य जगत का अधिकांश ही स्त्री जीवन के संघर्षों और स्त्री के अंतस्तल में अवस्थित कशमकश, उथल-पुथल और दुविधा को दर्शाने पर केन्द्रीभूत है ।पुरुष मन के भीतर चल रहे द्वंद्वों और झंझावातों को विरले ही लिपिबद्ध किया जाता है या वाणी प्रदान की जाती है। उनके स्वप्न और मोहभंग, उनकी आशा-निराशा, भेद्यता  या अतिसंवेदनशीलता को बहुत कम ही दर्शाया जाता है। पुरुष मन भी संवेदनशील और भावुक हो सकता है। उसे भी सच्चे प्रेम की आकांक्षा होती है। सच्चे जीवन साथी की तलाश करता है। घर-परिवार के मध्य रहते हुए भी पुरुष मन निस्संगता और एकाकीपन का अनुभव कर सकता है। पुरुष का पूर्ण अस्तित्व उसकी कामुकता तक ही सीमित नहीं  होता है। उसका अंतस भी जबरदस्ती और मजबूरी के सम्बन्धों के पिंजरनुमा बंधन को काट कर, उन्मुक्त नभ में उड़ना चाहता है।

ऐसे ही एक संवेदनशील भावुक पुरुष, प्रोफेसर अम्बरदीप सिंह की कथा कहता है यह उपन्यास । अम्बरदीप आजीवन प्रेम और सच्चे जीवन साथी  के लिए तरसता रहता है। उसकी पत्नी,  किरनजीत, सुगृहिणी अवश्य थीं परन्तु अम्बर को वह साथ-संग एक समझौता का सम्बन्ध जैसा प्रतीत होता। उसका अंतस कभी भी किरनजीत से प्रेम न कर सका। मानो किसी अदृश्य, अघोषित समझौते के तहत वह किरनजीत के साथ सह-अवस्थान कर रहा था, जिससे गृहस्थी की गाड़ी तो बढ़िया चल रही थी पर अम्बर का मन शुष्क, तृषित मरुभूमि सा बनता जा रहा था। यह दग्ध,तप्त, तृषित मरुभूमि कभी अवनीत तो कभी ज़ोया की आकुल कामना करती मानो वे पावस की बूंदें हो।  अपने भीतरी खालीपन को भरने के लिए अम्बर भटकता रहता।  ऐसा नहीं था कि किरनजीत के साथ उसके लड़ाई-झगड़े होते या वह किरनजीत से नफरत करता हो।  कहीं न कहीं वह किरनजीत से बौद्धिक और भावनात्मक रूप से  नहीं जुड़ पाया था, तादात्म्य स्थापित नहीं कर पाया था पर ज़ोया के साथ उसकी सोच मिलती थी ।  ज़ोया के साथ बौद्धिक और भावनात्मक तादात्म्य स्थापित करने में वह सफल रहा।

अम्बर का अशांत अस्थिर शैशव ही इस भटकाव का कारण था- कभी अवनीत, कभी ज़ोया में वह अपने आप को ही ढूँढ़ता था। जिस प्रेम के लिए वह शैशव में तरसता था कहीं न कहीं उस प्रेम को पाने की आतुरता ही उससे ऐसा कराती।अपने ताऊ, अर्जन सिंह  के औरस से अम्बरदीप का जन्म हुआ था। अर्जन सिंह और अमर सिंह भ्रातृद्वय ग्रामीण पंजाब, मलेरकोटला, के सात एकड़ ज़मीन के स्वामी थे। यदि दोनों भाई विवाह करते तो उपजाऊ भूमि का विभाजन होना निश्चित था जिसके चलते कुल आय का ह्रास तो होता ही साथ ही बढ़ते परिवार का लालन पोषण करना भी सम्भवव न हो पाता। अतः बहुत हिसाब-किताब कर, सोच विचार कर अनुज अमर सिंह का विवाह करवा दिया जाता है। संपत्ति अटूट रहती है परन्तु नव वधू, शिंदर कौर, के साथ  अग्रज अर्जन भी सम्बन्ध स्थापित करता है। क्रोध और ईर्ष्या से घायल अमर सिंह, केवल  छटपटाता रहता है, इससे अधिक वह कुछ भी नहीं कर पाता है।

"शिन्दर कौर पुत्र को लेकर लौटी तो अमर सिंह उसके करीब नहीं गया। कई-कई रातें तो वह खेत की मोटर पर ही पड़ा रहा। गाँव की स्त्रियाँ बेटे को देखने आती थीं। अमर सिंह को शर्म आती। " (पृष्ठ 34 ) उस समय (अस्सी दशक का पूर्वार्द्ध ) ग्रामीण पंजाब में यह आम बात थी। ऐसे बच्चों को परिवार और गाँव का समाज भी अपना लेते थे, कोई भेद भाव न था- कहीं न कहीं ग्राम्य समाज में आदिम कबीलाई सभ्यता की शेष छाप शायद तब भी बाकी थी। घर के ऐसे अविवाहित पुरुष को "छड़ा"  कहा जाता  था।  अम्बर की दादी, नसीब कौर के माध्यम से लेखक ने इस बात की पुष्टि भी की है - "उसे (अम्बर की दादी) शिकवा था कि लोगों की बहुओं ने तीन-तीन, चार-चार छड़े आदमी संभाल रखे थे।  उन्होनें घर को एकजुट रखा हुआ था।  "(पृष्ठ 35)

नब्बे दशक के मध्यकाल से धीरे-धीरे इस कुप्रथा का ह्रास होने लगा। नई पीढ़ी पढ़ लिख गई, युवकवृंद नगराभिमुख होने लगे, खेती छोड़ कर नौकरी करने लगे और उनकी सोच में भी बदलाव आने लगा । संयुक्त परिवार की प्रथा भी क्रमशः समाप्त होने लगी। ग्रामीण समाज भी समष्टिवाद से व्यष्टिवाद की ओर अग्रसर होने लगा । लेखक ने इन सभी परिवर्तनों को गहराई से दर्शाया था। गाँव का बदलता स्वरूप और ग्रामीण समाज के बदलते मूल्यबोध का सटीक चित्रांकन किया है ।
 
अम्बर परियां बलजिंदर नसराली
अम्बर के जीवन और उत्थान के माध्यम से उन्होंने विगत तीन दशकों में ग्रामीण पंजाब में आए सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक परिवर्तन को स्पष्ट दर्शाया है।आधुनिकीकरण और उन्नयन के कारण विलुप्त होते पलाश वन,गाँव का बदलता स्वरूप, समय के साथ-साथ संयुक्त परिवारों का बिखरना, लोगों का शहरों की ओर अग्रसर होना और वहीं बस जाना ; दिनोंदिन महँगी होती कृषिभूमि के कारण कृषक समुदाय का उत्तर प्रदेश की उपजाऊ भूमि की ओर अग्रसर होना - लेखक ने इन सभी का उल्लेख किया है।

बालक अम्बर, दिन-प्रतिदिन घर में लड़ाई-झगड़े देखते हुए ही बड़ा हुआ था।  इस अवरोधक परिवेश ने उसके मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डाला था । वह क्रमशः अंतर्मुखी सा बनता गया। अपने ताऊ से मिलते रंग रूप के कारण वह अपने समवयस्कों के मज़ाक और व्यंग्य विद्रूप  का भी पात्र बन गया था। अम्बरदीप के बौद्धिक विकास में पुस्तकों का बहुत बड़ा योगदान था । उसने पंजाबी और भारतीय साहित्यकारों को तो पढ़ा ही, साथ ही साथ विदेशी लेखकों की अनुवादित पुस्तकों का भी गहन अध्ययन किया। इस कारण उसकी सोच में उदारता आई , साम्यवाद की और उसका झुकाव भी बढ़ा। अम्बर और उसके साथी सम्भवतः  गाँव की पहली पीढ़ी थी जो विद्यालय की चौखट पार कर कॉलेज और विश्वविद्यालय के प्रांगण तक पहुँचे।

अवनीत मलेरकोटला के इस्लामिया कॉलेज में संगीत विभाग की व्याख्याता थी । अम्बर के व्यक्त्वि और बौद्धिकता ने उसे बेहद आकर्षित किया । अम्बर भी अवनीत के असाधारण रूप सौंदर्य और कण्ठ माधुर्य पर मोहित था । सामीप्य बढ़ने लगा, अम्बर अपने परी लोक में विचरण करने लगा।किसी सेमिनार के सिलसिले में दोनों एक साथ दक्षिण भारत गए, और वहाँ साथ रहें भी परंतु अम्बरदीप ने अंततः अपनी सीमा नहीं लाँघी।

ज़ोया जम्मू के एक नामी होटल की मैनेजर थी और साथ ही जम्मू विश्विद्यालय के होटल मैनेजमेंट एंड हॉस्पिटैलिटी विभाग में पार्ट टाइम क्लास भी पढ़ाती थी। अम्बर से उसकी पहली मुलाक़ात जम्मू विश्विद्यालय में हुई, जहाँ अम्बरदीप पंजाबी विभाग के प्रोफेसर थे।अम्बर जितना ज़ोया से मिलता उतना ही उसके निकट पहुँचता। ज़ोया का सान्निध्य उसे भाता , उसे आंतरिक खुशी मिलती।अपने अन्तर के प्रेम सुधा पात्र को पूर्ण लुटा देता जिससे उसकी वर्षों की तृष्णा प्रशमित होती।
 
ज़ोया को एक समझदार आधुनिका स्त्री के रूप में दर्शाया गया है । वह रूढ़ियों में भले ही आबद्ध न हो परन्तु समाज की नियम शृंखलाओं को भली-भाँति जानती-समझती है। वह अम्बर के समान भावनाओं में नहीं बह जाती थी। अतः उसे अपने भविष्य के बारे में चिंता थी। तभी तो वह अम्बरदीप से कहती है - "अम्बर, यदि तेरी बात मान भी लेती हूँ तो मेरी स्थिति क्या होगी? एक विवाहित व्यक्ति की प्रेमिका की क्या स्थिति होती है? समझता है? "(पृष्ठ 153 )

दो बच्चों का पिता, प्रौढ़ अम्बर, के भीतर सदा ही दो भिन्न सत्ता के बीच द्वंद्व चलता रहता - दुनियादार, वास्तववादी लड़के और  एक प्रेमातुर भावुक  किशोर के मध्य तकरार लगी रहती । अम्बर के इस अतिभावुक संवेदनशील मानस को स्पष्ट दर्शाने हेतु लेखक ने रूपकथा के परी लोक की रचना की है।  उपन्यास के इस लघु अंश में अम्बर कभी चरनी, कभी अवनीत तो कभी राबिया या नादिरा या ज़ोया के साथ विचरण करता है ।  वहाँ वह पूर्ण स्वतंत्र है परन्तु प्रायः ही वास्तव लोक और परी लोक के मध्य तकरार हो जाती ।"उसको (अम्बरदीप) ज़ोया के साथ अपने भविष्य को लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं था, पर उसको लगने लगा था कि उसे किरनजीत की मदद करनी चाहिए ताकि वह अपने पैरों पर खड़ी हो सके। हो सकता है उसे ज़ोया के साथ जाना पड़ जाए।" (पृष्ठ 158)

अम्बर ने ही किरनजीत को आगे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया । उसके शोधकार्य में भी अम्बर ने सहायता की तथा व्याख्याता की नौकरी दिलवाने में भी उसका योगदान था।  हाँ, भले ही वह ये सब स्वार्थवश कर रहा था, क्योंकि उसने ज़ोया से विवाह करने का निश्चय कर लिया था  परन्तु यह भी सच है कि उसने किरनजीत की अहित कामना कभी नहीं की - किरनजीत बेसहारा होकर दर-दर भटके यह उसे कदापि काम्य न था। परन्तु ज़ोया की उस पर बढ़ती अधिकारात्मकता की भावना ने अम्बर को अत्यंत  विचलित कर दिया था। इस तथाकथित विवाह प्रथा के प्रति उसे विरक्ति और विरुचि हो गई। उसका मन इसी उधेड़बुन और ऊहापोह में ही जकड़ा रहता। उसका मन टूट चुका था , भीतर का प्रेमातुर भावुक किशोर निराश हो गया था। अंततः  उसका यह रूपकथा का परी लोक ध्वस्त और खण्डित  हो गया। "तुम्हारा यह परी देश इतना खूबसूरत है, मेरी सोच से भी बाहर है। मैं धरती पर जाऊँगा, पर मैं विवाह प्रबंध में दुबारा दाखिल नहीं होऊँगा। हाँ , मैं अपने बच्चों के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी निभाऊँगा।  किसी एक औरत तक सीमित होकर नहीं रहूँगा। न ही किसी औरत को अपने तक सीमित करूँगा। " (पृष्ठ 270)

यह सच है कि लेखक ने विवाह परम्परा पर बहुत गहराई से सोच विचार किया है ।उन्होंने आदिम कबीलाई संस्कृति का भी उदाहरण दिया है जहाँ स्त्री-पुरुष के नैसर्गिक सम्बन्ध को, उनके अबाध मिलन को ही प्राकृतिक माना जाता था । धीरे-धीरे ग्रामीण और फिर नगरकेन्द्रिक सभ्यता का विकास हुआ और विवाह प्रथा जटिल से जटिलतम होती गई।  आज भी आदिवासी सभ्यताओं में यौन सुचिता गौण ही है। परन्तु यह प्रेम कथा "विवाह संस्था के भविष्य की खिड़की खोलती है ”(आवरण पृष्ठ पर उल्लिखित) - इस विषय पर मेरा मतनैक्य है। हाँ, लेखक ने आगामी दिनों के लिए, आने वाली पीढ़ी के सम्मुख स्त्री-पुरुष  के सम्बन्धों का एक नवीन पहलू अवश्य रखा है। एक नई दिशा दिखाई है.......और स्त्री-पुरुष के इस नैसर्गिक सम्बन्ध की सामाजिक स्वीकृति पर भी बल दिया है।

लेखक ने स्त्री-पुरुष के सम्बन्धों के जिस स्वरूप की चर्चा की है या  जिस सामाजिक ढाँचे की संरचना की है उसे कई पाठक भले ही अनैतिक या अपसंस्कृति कहें या सामाजिक पतन का द्योतक माने परन्तु यह भी सत्य है कि केवल मंत्रोच्चारण से, सात फेरे लेने से या ईश्वर को साक्षी मानने से ही दो व्यक्ति सदा के लिए नहीं जुड़े रह सकते हैं। और केवल समाज या बच्चों के लिए  दो कुण्ठित-व्यथित हृदय, अपना -अपना मन मार कर,  बाध्य हो साथ रहने के लिए -यह कैसा न्याय है ? मजबूरी में किसी सामाजिक प्रथा में  बँधे रहना तो पिंजरे में कैद होने के समान है। ऐसे में विवाह की यह प्रथा तो एक कैद बनकर रह जाएगी।

लेखक ने स्त्री पुरुष के सम्बन्ध में प्रेम को ही सर्वोपरि माना है । प्रेम बंधन नहीं है, वह मुक्ति का द्योतक है। मुक्ति पथ को आलोकित करता है। लेखक ने स्त्री-पुरुष के मुक्ति की बात ही की है, मुक्ति पथ को आलोकित किया है- और शायद यही भविष्य का सच हो। किसी भी प्रथा या मूल्यबोध का सदा एकसमान स्वरूप तो नहीं बना रह सकता है । अम्बर, किरनजीत और ज़ोया के भीतर की कशमकश आज का सत्य है।

अम्बर की मनःस्थिति आधुनिक नगर केन्द्रिक सभ्यता का कटु सत्य है। अधिकांश ही अपनी भावनाओं को प्रकट नहीं कर पाते हैं और घुट-घुट कर जी लेते हैं । आर्थिक और बौद्धिक रूप से भी तो सभी इतने सक्षम नहीं होते हैं और समाज से लड़ना भी सबके बस की बात नहीं। परन्तु सच तो यह है कि आधुनिकीकरण ने हमे अत्यंत महत्त्वाकांक्षी बना दिया है, हमारी इच्छाएं, आकांक्षाएं बलवती हुई हैं और अब समाज भी द्रुतगति से बदल रहा है।

लेखक ने न केवल समकालीन परिस्थितियों को दर्शाया है अपितु ग्रामीण पंजाब, अविभाजित पंजाब तथा जम्मू क्षेत्र के इतिहास पर भी प्रकाश डाला है । स्वातंत्रयपूर्व और स्वातंत्र्योत्तर काल में पंजाब के गाँवों की बदली हुई छवि तथा ग्रामीण समाज पर विभाजन के परिणामों को भी दिखाया है। विभाजन के पूर्व ग्रामीण पंजाब में मुसलमान, हिन्दू और सिक्ख मिलजुल कर ही रहते थे। मुसलमान कृषक और सिक्ख कृषक दोनों ही थे।
  
"जब किसी सिख या मुसलमान या हिन्दू परिवार में मौत होती थी तो दिया जाने वाला दान सिर्फ़ अपने धार्मिक स्थान के लिए नहीं, बल्कि तीनों धार्मिक स्थानों के लिए होता था।" (पृष्ठ 133) विभाजन ने परिस्थिति बदल दी।मलेरकोटला पंजाब का एकमात्र गाँव था, जहाँ, विभाजन के समय, हत्या या रक्तपात की कोई भी घटना नहीं घटी। प्रत्येक वर्ष दीवाली पर मलेरकोटला के गुरुद्वारे में नवाब के नाम पर नारा लगाने की प्रथा का इतिहास....... मलेरकोटला के नवाब की भग्नप्राय, खंडहरनुमा हवेली और उसमें रहती वृद्धा बेगम - ऐसे कई रोचक प्रसंग उपन्यास की पठनीयता की बढ़ाते हैं।
  
प्राचीन चंद्रभागा तट से आज का चेनाब तटक्षेत्र...…..शताब्दियों पहले पंजाब क्षेत्र से कश्मीर की ओर जाने वाले ग्रामीण और व्यापारी वर्ग और उनके सार्थवाहों की कथा, उनके कश्मीर प्रवास और वहीं बसने की कथा........संस्कृतियों और भाषाओं का पारद-मिश्रण ...... ज़ोया की माँ के पुरखों का कश्मीरी गाँव, 'उजाड़ना', के नामकरण की कथा - लेखक ने इतिहास और जनश्रुतियों का अद्भुत सुन्दर ताना-बाना बुना है।

लेखक ने एक ओर जम्मू के प्राकृतिक सौन्दर्य को दर्शाया है तो दूसरी ओर जम्मू कश्मीर की वर्तमान सामाजिक और राजनीतिक परिस्थिति की वास्तविक छवि भी दिखाई है। जन-साधारण के मन में अलगाववाद की भावना ने अपनी जड़े मज़बूत कर ली है । कई महत्वपूर्णऔर इंगितपूर्ण मनतव्य भी हैं ।  उदाहरणस्वरूप - "जम्मू में अधिकतर हिन्दुओं और सिखों की नज़रों में भारतीयों के प्रति बेगानगी कूट-कूट कर भरी थी जम्मू के मुसलमान अल्पसंख्यक होने का कारन बाहर वालों के प्रति नरम रवैया रखते थे।  कश्मीरी मुसलमान मेहमाननवाज़ी तो बहुत करते थे , पर यह मानने को तैयार नहीं थे कि कश्मीर भारत ही है। " (पृष्ठ 146) लेखक ने जम्मू कश्मीर में रहने वाले प्रवासी सिक्खों की जीवनशैली का भी चित्र खींचा है। उनकी भाषा, उनके रहन-सहन, आचार-अनुष्ठानों में आए परिवर्तन को भी दर्शाया है। "जम्मू कश्मीर में कश्मीरी के बराबर सब से बड़ी जुबां पंजाबी है। सबसे अधिक अन्याय पंजाबी के साथ हुआ है। आज अलग-अलग तबकों के लोग स्थानीय लहजे वाली पंजाबी बोलते पंजाबी हैं। मगर कोई उसे डोंगरी कहता है, कोई पहाड़ी कहता है, और कोई गोजरी कहता है " (पृष्ठ 158)

इस उपन्यास में  देश के शैक्षिक परिदृश्य की वास्तविक छवि का चित्रांकन भी किया गया है । पुस्तक, शिक्षाजगत के अप्रिय सत्य से पाठकवृन्द को परिचित कराती है। शिक्षा प्रणाली और शिक्षा क्षेत्र में व्याप्त स्थिथिलता, अकर्मण्यता  दुर्नीति और अन्याय का तो स्पष्ट उल्लेख है ही परन्तु साथ ही योग्य और पारखी शिक्षकों के कृतित्व और योगदान को दर्शाना नहीं भूले हैं लेखक । ऐसी ही एक योग्य और आदर्श शिक्षिका, मैडम गिल, ने अम्बरदीप को सही दिशा दिखाई थी।  बी.कॉम  फर्स्ट ईयर के अम्बरदीप का लिखा हुआ प्रेम पत्र मैडम गिल के हाथों पड़ गया था। अम्बर की सशक्त लेखनी और उसके साहित्यिक ज्ञान से प्रभावित होकर शिक्षिका ने अम्बर को आर्ट्स पढ़ने के लिए प्रेरित किया, उसे साहित्य और कला के क्षेत्र में जाने को कहा। उसके पढ़ने और पढ़ाने की प्रच्छन्न मनोग्रस्ति को वह पहचान चुकी थी।  इस घटना ने ही तो अम्बर के जीवन को एक नवीन दिशा प्रदान की।

अम्बरदीप भी एक सच्चा अध्यापक है। पुस्तकें, अध्यापन, शोधकार्य और साहित्य ही उसका क्षेत्र है। उसे अपनी तरक्की के लिए हॉस्टल का वार्डन बनना स्वीकार नहीं था। वह अध्यापन से ही खुश था, उसे तृप्ति मिलती। वह सदैव विद्यार्थियों में साहित्य प्रेम जगाने में प्रयासरत रहता।उसकी निष्ठा पर प्रश्न उठते ही वह गरज पड़ता है - "यदि आपने मेरी ईमानदारी परखनी है तो मेरा आर्थिक और सामाजिक किरदार परखो। पढ़ाना तो मेरी रूह की खुराक है क्योंकि मैं खुद किताबों द्वारा पढ़ाया जाता हूँ।" (पृष्ठ 108)

उपन्यास दार्शनिक महत्त्व भी रखता है क्योंकि विश्व के विभिन्न दार्शनिकों के मत को साझा किया गया है। यह लेखक के गहन अध्ययन का ही सुफल है।बलजिन्दर नसराली द्वारा मूल रूप से पंजाबी में लिखे इस अत्यंत पठनीय उपन्यास 'अम्बर परियाँ' को हिन्दी में अनुवाद किया है श्री सुभाष नीरव जी ने। यह अनुवादक का ही कृतित्व है कि पुस्तक पंजाब की माटी और संस्कृति के सौरभ से सुरभित है।
  

पुस्तक -अम्बर परियाँ(मूल पंजाबी)
लेखक: बलजिन्दर नसराली
अनुवाद -सुभाष नीरव
राधाकृष्ण प्रकाशन,पहला संस्करण 2023
मूल्य 350/-पृष्ठ 272,ISBN :978-81-19092-23-9


समीक्षक - अभिषेक मुखर्जी 
बेलघड़िया, कोलकाता ,पश्चिम बंगाल 
Mobile: 8902226567

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हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: अम्बर परियां उपन्यास की समीक्षा | बलजिंदर नसराली
अम्बर परियां उपन्यास की समीक्षा | बलजिंदर नसराली
अम्बर परियां बलजिंदर नसराली सम्प्रति, कथा-साहित्य जगत का अधिकांश ही स्त्री जीवन के संघर्षों और स्त्री के अंतस्तल में अवस्थित कशमकश, उथल-पुथल और दुविध
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