अरुण कमल की काव्यगत विशेषताएँ अरुण कमलजी आधुनिक नवीन कविताधारा के एक प्रबल हस्ताक्षर हैं अरुण कमल हिंदी साहित्य जगत के एक प्रमुख आधुनिक कवि हैं
अरुण कमल की काव्यगत विशेषताएँ
अरुण कमलजी आधुनिक नवीन कविताधारा के एक प्रबल हस्ताक्षर हैं। अरुण कमल हिंदी साहित्य जगत के एक प्रमुख आधुनिक कवि हैं। उनकी कविता में यथार्थवाद और प्रगतिशीलता का सुंदर सम्मिश्रण है। उनकी कविताएँ समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों के जीवन और संघर्षों को बड़ी संवेदनशीलता से उजागर करती हैं। उनकी कविता में भाषा की सरलता और बोलचाल की शैली का प्रयोग होता है, जिससे उनके विचार आम जन तक आसानी से पहुंच जाते हैं।
दलितों के प्रति सहानुभूति
अरुण कमलजी को दलितों की सामाजिक स्थिति, आर्थिक विसंगतियाँ, उनके पिछड़ेपन को देखकर उनके प्रति सहानुभूति और सम्वेदना है। वे आदिवासी बच्चे का चित्रण इस प्रकार करते हैं -
उस नंगे आदिवासी बच्चे का दौड़ना,
झूलते चूल,
देह से टपकता जल ।
दलितों, गरीबों एवं बेसहारा लोगों से अपनी तुलना
अरुणजी ऐसा लगता है कि दलित वर्ग की वेदना से अधिक सम्पृक्त हैं। वे अपने को भी उनके समकक्ष रखने में संकोच का अनुभव नहीं करते हैं -'जो गति उसकी वही गति मेरी' ।
कृषकों के प्रति सहानुभूति
अरुणजी को कृषकों के प्रति भी सहानुभूति है। वे कह उठते हैं कि -
'खेत खलिहानों के पाँवों से चला लाठी भर जगह छेकता'
एक बार फिर ढूँढता हूँ अपनी चाल, अपनी गति
दुनिया की समस्त गतियों के मध्य ।
मजदूरों के प्रति सहानुभूति
गाँव से दूर, परिवार से दूर जो लोग कलकत्ता सत्तू की गठरी लादे मिलों में अनवरत अपना खून पसीना बहाते हैं, उनके लिए भी उनके काव्य में स्थान है। वे उनके प्रति भी अपनी सम्वेदना और सहानुभूति प्रदर्शित करते हैं।जब मेरे गाँव से पहला टोला गया चटकल मजदूरों का सत्तू की गठरी पीठ पर लादे मैं भी गया महिषादल तक ।कवि का चटकल मजदूरों के साथ महिषादल तक जाना यह स्पष्ट करता है कि उन्हें इन आर्थिक विपन्न मजदूरों से स्नेह है। उनके प्रति उनके मन में सहानुभूति है ।
बचपन की स्मृतियाँ
कवि को अपने बचपन की स्मृतियाँ ताजगी प्रदान करती हैं। कलकत्ता जाने की उनकी इच्छा इस बात को दर्शाती है कि उन्हें कलकत्ता से प्रेम है। तभी वे कहते हैं -
जाऊँगा मैं जाऊँगा कोलकाता जाऊँगा
बार बार सौ बार कोलकाता जाऊँगा
लंदन, पेइचिंग, न्यूयॉर्क एक बार
कोलकाता बार बार बार बार कोलकाता
स्वयं को बेसहारा महसूस करना
अपने कोलकाता के प्रवास के दौरान कवि अपने को कोलकाता में अकेला महसूस करता है।
'मैं एक बेसहारा पैदल राहगीर वो जगह ढूँढ रहा हूँ,
जहाँ से पार कर सकूँ यह चौरास्ता'
अरुण कमल की भाषा शैली
अरुण कमलजी काव्य में किसी प्रकार की पाबन्दी स्वीकार नहीं करते। उनके काव्य में रस, अलंकार, छन्द बंधन का होना अति आवश्यक नहीं है।इनकी भाषा सरल, सहज, बोधगम्य एवं सादगी से परिपूर्ण है। भाषा में तारतम्य बना रहता है।अरुण कमल की कविता, यथार्थ और कल्पना का एक अद्भुत संगम है। उनकी कविता में जीवन की जटिलताओं, समाज की विसंगतियों, और मानवीय भावनाओं का बड़ा ही मार्मिक चित्रण मिलता है। उनकी भाषा सरल और सहज है, फिर भी उनकी कविता में गहराई और बहुआयामीपन है। वे अपनी कविता में व्यक्तिगत अनुभवों और सामाजिक चिंताओं को बड़ी ही खूबसूरती से जोड़ते हैं। अरुण कमल की कविता में प्रकृति का भी महत्वपूर्ण स्थान है। वे प्रकृति को मानवीय जीवन से जोड़कर देखते हैं और प्रकृति के सौंदर्य को अपने शब्दों से जीवंत करते हैं। उनकी कविता में प्रकृति के विभिन्न रूपों का सुंदर वर्णन मिलता है।
अरुण कमल की कविता में प्रयोगवाद और नवीनता का भी तत्व मौजूद है। वे पारंपरिक काव्य शैलियों से हटकर नए प्रयोग करते हैं और कविता को एक नई दिशा देते हैं। उनकी कविता में बिंबों और प्रतीकों का सहज प्रयोग होता है, जो कविता को और अधिक गहरा और अर्थपूर्ण बनाता है। अरुण कमल की कविता में एक ओर जहां व्यक्तिगत पीड़ा और संघर्ष की बात होती है, वहीं दूसरी ओर समाज के लिए चिंता और उम्मीद भी झलकती है। उनकी कविता में एक गहरा मानवीय स्पर्श है, जो पाठक को गहराई तक छू लेता है। अरुण कमल की कविता हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण अंग है और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।
संक्षेप में, अरुण कमल की कविता यथार्थवादी, प्रगतिशील, मानवीय और संवेदनशील है। उनकी कविता में भाषा की सरलता, जमीनी हकीकत से जुड़ाव, प्रकृति का सौंदर्य और प्रयोगवाद का सुंदर सम्मिश्रण है। उनकी कविता हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण अंग है और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।
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