धर्मवीर भारती का साहित्यिक योगदान धर्मवीर भारती की प्रमुख रचनाएं हिन्दी साहित्यकार धर्मवीर भारती बहुमुखी प्रतिभा के धनी थेआपकी कलम सभी ओर चली है कवि
धर्मवीर भारती का साहित्यिक योगदान | धर्मवीर भारती की प्रमुख रचनाएं
हिन्दी साहित्यकार धर्मवीर भारती बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। आपकी कलम सभी ओर चली है। कविता, उपन्यास, नाटक, कहानी, निबंध, पत्रकारिता आलोचना, अनुवाद आदि सभी विधाओं पर आपने अपनी कलम चलाई और उसमें सफलतापूर्वक पार भी उतरे। आपने अठारह वर्ष की आयु में लिखना प्रारंभ किया। आपने पहली कहानी 'तारा और किरण' लिखी। बीस वर्ष की उम्र में आपने पहला उपन्यास 'गुनाहों का देवता' लिखा। पच्चीस वर्ष की आयु होते-होते आप कवि के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे। आगे चलकर आप प्रयोगवादी कविता तथा नयी कविता के प्रमुख कवि घोषित किए गये। धर्मवीर भारती द्वारा रचित प्रमुख कृतियाँ निम्नांकित हैं-
कविता संग्रह
धर्मवीर भारती की कार्य साधना के बारे में प्रभाकर श्रोत्रिय लिखते हैं-" भारती की सबसे प्रिय कविताएँ वे हैं जो गटर में पड़े शराबियों, हथौड़ा चलाते लोहारों और धूल में खेलते बच्चों की भोली आँखों में झलकती हैं, लेकिन जिन्हें न अभी तक किसी ने लिखा, न किसी ने छापा।" धर्मवीर भारती के तीन कविता-संग्रह, एक गीति नाट्य और एक प्रबन्ध काव्य प्रकाशित हो चुका है।
- ठण्डा लोहा - यह भारती जी का पहला काव्य-संग्रह है जो सन् 1952 में प्रकाशित हुआ था। इसमें भारती जी की सन् 1946 से 1952 तक की चुनी हुई 39 रचनाएँ संकलित हैं। इस संग्रह में तुम्हारे चरण, डोले का गीत, उदास मैं उदास, तू फागुन की शाम, बादलों की पाँत, फीरोजी होठ, गुनाह का गीत, कच्ची साँसों का इसरार, मुग्धा आदि ऐसी रचनाएँ हैं जिनमें किशोरावस्था की प्रेम भावना, रूपासक्ति और उद्दाम काम भावना का वर्णन मिलता है। इस संकलन की पहली कविता 'ठण्डा लोहा' है जिसके नाम पर काव्य-संग्रह का नामकरण किया गया है। इस संकलन की अधिकांश कविताएँ रोमानी हैं यथा-कवि और अनजान पग, ध्वनियाँ, फूल, मोमबत्तियाँ, सपने आदि ।
- सात गीत वर्ष - सन् 1959 में प्रकाशित इस काव्य-संग्रह में भारती जी ने सन् 1952 से 1959 तक के वर्षों की चुनी हुई 59 कविताओं को संकलित किया है। इसमें भी कुछ रोमानी भाव-बोध की कविताएँ मिल जाती हैं यथा-इतने दिन बाद, उदासी से महली, बातों पर बातें आदि । प्रकृति चित्रण से संबंधित कविताएँ नवम्बर की दोपहर, ढीठ चाँदनी, आँगन वेली, मेघ दुपहरी, घाटी का बादल, साँझ के बादल आदि हैं।
- सपना अभी भी - सन् 1993 में प्रकाशित इस काव्य-संग्रह में सन् 1959 से 1993 तक की 39 कविताओं को संग्रहित किया गया है। इसमें कुछ कविताएँ रोमाण्टिक भाव-बोध की हैं जैसे-सागर पर सूर्यास्त, पत्नी, आखिरकार, द्वार आदि ।
- अंधा युग-यह काव्य नाटक सन् 1954 में प्रकाशित हुआ। इसमें महाभारत की पौराणिक कथा में कुछ नवीन प्रसंगों तथा पात्रों का सृजन कर आधुनिक समस्याओं पर प्रकाश डाला गया है। यह काव्य नाटक पाँच अंकों में विभाजित है। इसमें महाभारत के अठारहवें दिन की संध्या से लेकर प्रभासतीर्थ में कृष्ण की मृत्यु तक की कथा युद्ध का विवचेन किया गया है। इसने हिन्दी साहित्य की गीति-नाट्य परंपरा को एक नया मोड़ दिया। इस कथा के माध्यम से भारती जी ने युद्धजन्य अर्द्धसत्यों, कुण्ठाओं, स्वार्थवृत्ति, विवेकशून्यता का आकलन करके आस्था, कर्मपरता और मंगलमय ज्योति की परिकल्पना की है। बच्चन सिंह 'अंधायुग' को पहला पूर्ण गीतिनाट्य का दर्जा देते हुए लिखते हैं- "धर्मवीर भारती का 'अन्धा युग' गीति नाट्य कई दृष्टियों से हिन्दी गीति- -नाट्य-परंपरा का एक नया मोड़ उपस्थित करता है। इसके पूर्व हिन्दी में जो भी गीति नाट्य लिखे गये, वे एकांकी गीति नाट्य थे। 'अन्धा युग' हिन्दी का एकांकी गीति नाट्य न होकर पहला पूर्ण गीति नाट्य है। "
- कनुप्रिया -यह भारती जी का महत्वपूर्ण प्रबन्ध काव्य है जो सन् 1959 में प्रकाशित हुआ था। इसमें राधा की प्रणय-भावना का हृदयस्पर्शी वर्णन किया गया है। इसके बारे में आलोचकों में अनेक मत-मतांतर हैं। डॉ० ब्रजमोहन शर्मा लिखते हैं- " भारती जी की अस्तित्ववादी धारणा का ज्वलंत प्रमाण है कनुप्रिया । जो सरल, लिजलिजे या कुत्सित काव्य का उदाहरण न होकर क्षणवादी धारणा का प्रतिफलन है। ""इसकी कथा पुरातन है किन्तु संवेदन का स्तर नवीन है, नयी कविता के अनुकूल है। राधा-कृष्ण के लीलामय प्रेम को आधुनिक परिवेश में नूतन संवेदन के स्तर पर प्रस्तुत किया गया है।
कहानी संग्रह
धर्मवीर भारती जितने काव्य के क्षेत्र में खरे उतरे हैं, वैसे ही कथासाहित्य में भी। उन्होंने पाँच कहानी-संग्रह मुर्दों का गाँव (1946), स्वर्ग और पृथ्वी (1949), चाँद और टूटे हुए लोग (1955), बन्द गली का आखिरी मकान (1969) और साँस की कलम से (2000) रचे। सन् 1946 में प्रकाशित 'मुर्दों का गाँव' धर्मवीर भारती का प्रथम कहानी-संग्रह है जो अपने आप में एक प्रतीकात्मक शीर्षक है। इस कहानी-संग्रह में आठ कहानियों का संकलन किया गया था जो बाद में 'चाँद और टूटे हुए लोग' में शामिल कर लिया गया। इसमें 25 कहानियों को संकलित किया गया। समस्त कहानियों को तीन खंडों में विभाजित किया गया। प्रथम खंड का नाम 'चाँद और उखड़े हुए लोग', दूसरे का नाम 'भूखा ईश्वर' और तीसरे का नाम 'कलंकित उपासना' था। भारती की पहली कहानी 'तारा और किरण' है, जो एम. ए. की पढ़ाई दौरान लिखी थी। इस संग्रह की अच्छी कहानियों में 'चाँद और टूटे हुए लोग', 'भूखा ईश्वर', 'कुलटा', 'अगला अवतार', 'कफन चोर', 'हिन्दू या मुसलमान' का नाम ले सकते हैं। 'बंद गली का आखिरी मकान' कहानी-संग्रह सन् 1969 में प्रकाशित हुआ था। इसमें मात्र चार कहानियाँ संकलित हैं जो कथ्य और शिल्प की दृष्टि से बहुत महत्व रखती हैं चार कहानियाँ 'गुलकी बन्नो', 'सावित्री नम्बर दो', 'यह मेरे लिए नहीं' तथा 'बंद ये गली का आखिरी मकान' हैं। डॉ० रामदरश मिश्र के शब्दों में, "गुलकी बन्नो' गहरी अनुभवशील प्रकृति और सारी रचनात्मक शक्ति की पहली प्रौढ़ अभिव्यक्ति है। इसलिए वह रचनात्मक स्तर पर तो उपलब्धि प्राप्त करती ही है, ऐतिहासिक दृष्टि से भी विशिष्ट हो उठी है।"
उपन्यास साहित्य
धर्मवीर भारती ने अपनी बीस वर्ष की आयु अर्थात् सन् 1946 से पहला उपन्यास 'गुनाहों का देवता' लिखना शुरू किया जो सन् 1949 में प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास के अधिकांश चरित्र प्रणय के दो रूपों के बीच उलझे हुए हैं। प्रेम के चित्रण के साथ-साथ सामाजिक मध्यवर्ग, व्यक्तिगत आदर्श, पारिवारिक आदर्श आदि को उद्घाटित करने में लेखक सफल हुए हैं। विवेकीराय के शब्दों में, "धर्मवीर भारती की आलोच्य कृति के कालजयी होने के कुछ और भी कारण हैं। प्रथम तो उसे अत्यन्त सरस और कोमल कहानी के तानेबाने में बुनकर शुद्ध कथा रस से ओत-प्रोत किया गया है और दूसरे उसमें विविध धूप-छाँही समसामयिकता और विसंगतिमूलक आधुनिकता का संयोजन व्यंग्य-रूप में हुआ है।" सूरज का सातवाँ घोड़ा' शीर्षक लघु उपन्यास सन् 1952 में प्रकाशित हुआ। इसमें लेखक ने निम्न-मध्य वर्ग की विविध विद्रूपताओं का यथार्थ वर्णन किया है। इस उपन्यास की भूमिका अज्ञेय ने लिखी है। सन् 1960 में प्रकाशित 'ग्यारह सपनों का देश' भारती जी की स्वतंत्र कृति नहीं है, लेकिन इसमें भारती का ज्यादा योगदान रहा है। दस लेखकों ने मिलकर इस उपन्यास की रचना करने का असफल प्रयोग उदयशंकर भट्ट, रांगेय राघव, प्रभाकर माचवे, कृष्णा सोबती आदि के सहयोग से किया।
एकांकी संग्रह
सन् 1954 में धर्मवीर भारती का 'नदी प्यासी थी' नामक एकांकी संग्रह प्रकाशित हुआ। इसमें पाँच एकांकी संकलित हैं-नदी प्यासी थी, नीलझील, आवाज का नीलाम, संगमरमर पर एक रात तथा सृष्टि का आखिरी आदमी। प्रथम चार एकांकी रंगमंचीय है तो सृष्टि का आखिरी आदमी रेडियो एकांकी है।
निबंध
भारती जी के चार निबंध-संग्रह उपलब्ध हैं। 'ठेले पर हिमालय' सन् 1958 में प्रकाशित पहला निबंध-संग्रह है। इसमें सत्ताईस निबंध संकलित किए गए थे लेकिन जब तीसरा संस्करण निकला तब पाँच निबंध और जोड़ दिए गए। 'ठेले पर हिमालय' तथा 'कूर्मांचल में कुछ दिन' निबंध यात्रा वर्णन के अन्तर्गत आते हैं। दूसरा निबन्ध-संग्रह पश्यंती सन् 1969 में प्रकाशित हुआ। 'कहनी अनकहनी' भारती का ललित निबंध संकलन है जो सन् 1970 में प्रकाशित हुआ था। 'विचारक का गुस्सा', 'गोरियाँ दी गालियाँ', 'मानसरोवर', 'दिल्ली के हंस', 'बसंत पंचमी', 'संसद का प्रांगण' और 'निराला की याद' आदि महत्वपूर्ण निबंध हैं। 'शब्दिता' निबन्ध संग्रह सन् 1997 में छपा था। इस संकलन के सभी निबंध पहले 'धर्मयुग' में छपे थे।
संस्मरण
सन् 1995 में प्रकाशित 'कुछ चेहरे : कुछ चिन्तन' और 'शब्दिता' (1997) में भारती जी के संस्मरण संकलित हैं। इसमें अमृतलाल नागर, भगवतीचरण वर्मा, महादेवी, निराला, अज्ञेय, राही मासूम रजा, माखनलाल चतुर्वेदी जैसे बड़े-बड़े साहित्यकारों के प्रति श्रद्धा व्यक्त की गई है। 'कुछ चेहरे : कुछ चिन्तन' में धर्मवीर भारती ने भारत के श्रेष्ठ साहित्यकारों, अपने साथी, महान व्यक्तियों और भारत की संस्कृति का गुणगान गाया है।
यात्रा वर्णन
यात्रा वर्णन के अन्तर्गत भारती जी की 'यात्राचक्र' नामक पुस्तक सन् 1994 में प्रकाशित हुई। इसमें आपकी विदेश यात्राओं का वर्णन है।
पत्र पत्रिकाएँ
सन् 1999 में 'अक्षर अक्षर यज्ञ' नामक पुस्तक पुष्पा भारती द्वारा संपादित की गई जिसमें धर्मवीर भारती के लिखे गए पत्रों का संकलन है। धर्मवीर भारती ने अनेक ग्रंथ, पत्रिकाओं आदि का संपादन भी किया है। 'संगम' पत्रिका में सहसंपादक, ‘हिन्दी साहित्यकोश' के सह-संपादक, 'धर्मयुग' के प्रधान संपादक तथा भगवतीचरण वर्मा के अभिनन्दन ग्रन्थ 'अर्पित मेरी भावना' के भी आप संपादक रहे।
आलोचना
'प्रगतिवाद : एक समीक्षा' (1949) तथा 'मानव मूल्य और साहित्य' (1960)भारती जी के महत्वपूर्ण आलोचनात्मक ग्रंथ हैं। 'प्रगतिवाद : एक समीक्षा' पुस्तक में उन्होंने प्रगतिवाद की सही पहचान बतायी है। इसके अन्तर्गत रूसी साहित्य में प्रगतिवादी धारा, प्राचीन, स्थायी और शाश्वत साहित्य तथा प्रगतिवादी प्रयोग, क्या प्राचीन राष्ट्रीय इतिहास पर लिखा गया साहित्य पलायनवादी है, प्रगतिवाद और रोमांटिक प्रेम, राजनीतिक अनुशासन और साहित्य, प्रगतिवादी साहित्य में कलात्मक तत्वों का अभाव, क्या व्यक्ति का कोई मूल्य नहीं होता, धर्म, ईश्वर वैयक्तिक अध्यात्म साधना और सोवियत साहित्य, प्रगतिवादी साहित्य के नाम पर गंदी अश्लीलता, कलाकार किसी का मानसिक गुलाम नहीं बनेगा, तरुण कलाकारों से आदि लेख संकलित हैं। ये दोनों आलोचना ग्रंथ धर्मवीर भारती की विद्वता के परिचायक हैं।
अनुवाद
धर्मवीर भारती ने अनुवाद के क्षेत्र में भी अपना योगदान दिया है। उन्होंने सन् 1960 में प्रकाशित 'देशांतर' नामक ग्रंथ में इक्कीस देशों की एक सौ इकसठ कविताओं का अनुवाद किया है। सन् 1959 में आस्कर वाइल्ड की कहानियाँ नामक धर्मवीर भारती द्वारा अनूदित आठ कहानियों का संकलन प्रकाशित हुआ। उसमें शिशु-देवता, अभिषेक, तारा-शिशु, मूर्ति और मनुष्य, निःस्वार्थ मित्रता, इन्फैंटा का जन्मदिन, एक लाल गुलाब की कीमत, नाविक और उसका अन्तःकरण कहानियाँ संकलित थी।
इस प्रकार स्पष्ट है कि साहित्यकार धर्मवीर भारती ने विपुल साहित्य रचकर माँ भारती की अगाध सेवा की। हिन्दी साहित्य के इतिहास में आपका नाम सदैव स्मरणीय रहेगा ।
COMMENTS