जॉन ड्राइडन का काव्य सिद्धांत और आलोचना सिद्धांत

SHARE:

जॉन ड्राइडन 17वीं सदी के एक प्रमुख अंग्रेजी कवि और आलोचक थे। उनके काव्य सिद्धांत और आलोचना सिद्धांत ने अंग्रेजी साहित्य में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया।

जॉन ड्राइडन का काव्य सिद्धांत और आलोचना सिद्धांत


जॉन ड्राइडन 17वीं सदी के एक प्रमुख अंग्रेजी कवि और आलोचक थे। उनके काव्य सिद्धांत और आलोचना सिद्धांत ने अंग्रेजी साहित्य में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने काव्य के स्वरूप, उद्देश्य और भाषा पर गहराई से विचार किया।

सन् 1668 में संवाद के रूप में प्रकाशित अपनी कृति 'एस्से ऑन ड्रामेटिक पोयट्री' में ड्राइडन नाटक का आश्रय लेकर काव्य की सामान्य प्रवृत्ति, कार्य और मूल्य पर महत्वपूर्ण विचार प्रकट किये हैं। अरस्तू, होरेस आदि के अकाट्य सिद्धान्तों के बावजूद, उन्होंने स्थापित किया कि कतिपय सिद्धान्तों और परम्परागत नियमों के पालन-मात्र से ही उच्चकोटि की साहित्यिक रचना का निर्माण सम्भव नहीं। उनका कथन है - "यह कहना ही पर्याप्त नहीं कि अरस्तू ने ऐसा कहा है, वस्तुतः उसके सामने वे आदर्श ग्रन्थ नहीं थे जो हमारे सामने हैं।" प्लेटो, अरस्तू, सिडनी आदि की पूर्ववर्ती मान्यताओं को अस्वीकार करते हुए, ड्राइडन का कहना है कि है कवि जगत् को जैसा पाता है, वैसा ही चित्रित करता है। उनके अनुसार-“काव्य, मानव-प्रकृति का मानस-चित्र है, जो यथार्थ से सत्य को प्रकट करता है। यह यथार्थ, मानव-प्रकृति को उसके कार्यों, भावों और भाग्य के परिवर्तनों द्वारा प्रकट करता है।" 

ड्राइडन का दूसरा मत है कि मानव प्रकृति का यथार्थ चित्र सप्राण होना चाहिए, अन्यथा शुष्क होने के कारण वह काव्य नहीं होगा। सिडनी ने आनन्द के माध्यम से शिक्षा देना ही काव्य का लक्ष्य माना है। दूसरी ओर ड्राइडन का कहना है कि चूँकि काव्य मानव-प्रकृति का यथार्थ एवं सप्राण चित्र प्रस्तुत करता है, अतः पाठकों, दर्शकों या श्रोताओं को उससे ज्ञान प्राप्त होता है और ज्ञान की उपलब्धि स्वयं एक आनन्दात्मक अनुभूति है । इस प्रकार आनन्द के माध्यम से काव्य शिक्षा नहीं देता है वरन् काव्य-शिक्षा भी आनन्द की उपलब्धि में सहायक होती है। इस विवेचन से ड्राइडन के पाँच सूत्र प्राप्त होते हैं-
  • काव्य का सम्बन्ध मानव-प्रकृति से है।
  • वह मानव-प्रकृति का मानस-चित्र है। 
  • वह चित्र यथार्थ होना चाहिए। 
  • उसमें सप्राणता होनी चाहिए। 
  • काव्य का लक्ष्य है आनन्द और शिक्षा देना।
वस्तुतः ड्राइडन काव्य को मानव-प्रकृति का 'वर्णन' नहीं, वरन् मानस-चित्र ही मानते हैं। वर्णन स्थूल कथन है और मानस-चित्र संकेत, जिसमें कल्पनात्मक आनन्द को भी स्थान प्राप्त है। उनके अनुसार - “कला की सर्वाधिक पूर्णता इस बात में है कि वह अपने को अव्यक्त रखे।" इस प्रकार अंग्रेजी समीक्षा- ड्राइडन 'कल्पना' को अधिक महत्व देने वाले प्रथम मौलिक समीक्षक हैं। 

उक्त सन्दर्भ में ड्राइडन का 'यथार्थ' से प्रयोजन मानव प्रकृति को हुबहु प्रस्तुत करना नहीं, वरन घटना-योजना, चरित्र, अलंकरण, भाव और वर्णन आदि को सामान्य धरातल में ऊँचाई पर प्रस्तुत करना है। जिस प्रकार ऊँचाई पर रखी जाने वाली वस्तुएँ अपने मूल-स्वरूप की अपेक्षा बड़े आकार की बनाई जाती हैं, जिससे वे अपने यथार्थ रूप में दिखाई दे सकें, उसी प्रकार काव्य की उच्चतर भूमि, प्रकृति का यथार्थ स्वरूप स्पष्ट करने में सफल रहती है। उच्चतर भूमि के विषय में ड्राइडन का विचार नैतिकता सम्बन्धी न होकर, काव्यात्मक था । नाटक सम्बन्धी विचार-नाटक को जीवन का जीवित-चित्र मानकर, ड्राइडन नियम-पालन की अपेक्षा स्वाभाविक जीवन-चित्रण को अधिक महत्व देते हैं। करुण व हास्य को वे विरोधी तत्व न मानकर वह स्वीकार करते हैं कि इनके मिश्रण से दोनों का प्रभाव बढ़ जाता है 

जॉन ड्राइडन का काव्य सिद्धांत और आलोचना सिद्धांत
समस्त विधान में से अस्तव्यस्तता को दूर करने के लिए वे मुख्य कथानक के अतिरिक्त उपकथावस्तु पर भी बल देते हैं। चित्रित कृत्य और वर्णित कृत्य के सामंजस्य को भी उन्होंने महत्व दिया है। उनका कहना है—“न तो नाटककार को फ्रांसीसी नाटक की तरह वर्णित कृत्य पर बल देना चाहिए और न एलिजाबेथ के समय के नाटकों की तरह चित्रित कृत्य को ही सब कुछ समझ लेना चाहिए ।"वीर नाटक के लिए वे अतिमानुष श्रेष्ठता और उत्कृष्ट शैली को आवश्यक मानते हैं। उसके लिए श्रेष्ठ चरित्र का नायक और सुन्दर पतिव्रता नायिका आवश्यक है। कथा युद्ध, युद्धोत्साह और प्रेम-भावना से परिपूर्ण हो तथा वातावरण उत्कृष्ट आदर्शवादिता से परिपूरित।
 
नाटक के कथनोपकथनों के लिए वे गद्य का विरोध एवं हर्षोद्रेक में सहायक होने के हेतु, तुकान्त पद्य का समर्थन करते हैं। उनके मतानुसार तुक के प्रयोग से कवि की स्वच्छन्द कल्पना पद्य को आभूषित करके कविता के लिए आदर्श वातावरण प्रस्तुत करती है।नाटक के लिए ड्राइडन संकलन-त्रय - अर्थात् समय की एकता, स्थान की एकता और कथानक की एकता–के पक्ष में थे। समय की एकता के विषय में उनका विचार था कि अभिनय अथवा कथानक का समय उस अवधि से सर्वाधिक अनुपात में होना चाहिए, जिसमें कि उसे प्रस्तुत किया जाना है। इसके लिये वे चौबीस घण्टे की अवधि निर्धारित करते हैं। उनके अनुसार नाटक के सब अंक बराबर व सन्तुलित हों, तथा अंकों के बीच का अवकाश भी सन्तुलित रूप से वितरित होना चाहिए।
 
स्थान की एकता के विषय में उनका मत है कि- “सत्य से समीपता तो तभी सम्भव है जब विभिन्न स्थलों को इस प्रकार सँजोया जाए कि विभिन्न दृश्यों के एक ही शहर व नगर के विभिन्न स्थलों का संकेत मिले। अधिक दूरी अभिनय के लिए अवधि की दृष्टि से संगत नहीं।"
 
कथानक की एकता को ड्राइडन सर्वाधिक महत्व देते हैं। महान् कवि वही है जो एक महान् और सम्पूर्ण कथानक की रचना कर सके। यदि उपकथानक से अन्विति त्रुटित न हो, वह मुख्य कथानक का विरोधी न हो और उससे दर्शकों का मनोरंजन हो तो वे उसके विरुद्ध नहीं।
 

हास्य और प्रहसन का भेद

ड्राइडन के अनुसार हास्य में पात्र के चरित्र और कृत्य स्वाभाविक एवं भिन्न श्रेणी के होते हैं। उसमें ऐसी वृत्तियाँ, योजनाएँ और साहसी कृत्य प्रदर्शित किए जाते हैं, जो दिन-प्रतिदिन के जीवन में होते हैं। प्रहसन में बनावटी वृत्तियाँ और अप्राकृतिक घटनाएँ होती हैं। हास्य मानव-स्वभाव की त्रुटियाँ प्रदर्शित करता है और प्रहसन की वस्तुएँ अवरूप अथवा विकृत होती हैं। हास्य ऐसे लोगों को हँसी दिलाता हैं जो मानव-मूर्खताओं व भ्रष्टाचारों पर निर्णय दे सके, प्रहसन उन लोगों को हँसाता है जिनमें निर्णयात्मक शक्ति न होने के कारण वे असम्भव तथा नितान्त काल्पनिक दृश्यों से भी खुश हो जाते हैं। हास्य से उत्पन्न हँसी में तुष्टि होती है और प्रहसन में घृणा का भाव अधिक होता है।
 

ड्राइडन का भाषा संबंधी विचार

ड्राइडन विशुद्ध अंग्रेजी के पक्ष में तथा उसमें विदेशी प्रभाव के विरोधी थे । वागाडम्बर की वे त्याज्य मानते थे। भाषा में पुनरावृत्ति, अभिव्यक्ति की शिथिलता, स्फीति व अतिशयोक्ति की बहुलता के पक्ष में वे नहीं थे। त्रासदी के लिए वे उदात्त शैली आवश्यक मानते थे, किन्तु काव्योत्कर्ष के लिए उसमें प्रयुक्त अलंकार अवसर, विषय-वस्तु तथा पात्रों के अनुरूप होने चाहिए। 

ड्राइडन का साहित्यिक योगदान

ड्राइडन पहले आलोचक थे जिन्होंने फ्रांसीसी तथा ग्रीक साहित्य की त्रुटियों के परिप्रेक्ष्य में अंग्रेजी साहित्य की महत्ता स्थापित की। अरस्तू, होरेस और बोइले आदि की बातों को अन्धनीति से स्वीकार न करके उन्होंने सम्पूर्ण आत्मविश्वास के साथ अपने स्वतन्त्र मतों का प्रतिपादन किया। उनका विचार था कि प्रत्येक युग, देश और जाति का साहित्य इसलिए भिन्न होता है कि भिन्न-भिन्न लोगों और जातियों की रुचि भिन्न-भिन्न होती है तथा समय के साथ रुचि, स्वभाव तथा शिल्पादि में परिवर्तन होते रहते हैं।
 
साहित्य के उद्देश्य के सम्बन्ध में आनन्द को शिक्षा व ज्ञान से कुछ अधिक ऊँचा स्थान देकर उन्होंने कलापूर्ण तथा नैतिक उपदेश-प्रधान काव्य का अन्तर बताया। पहली बार उन्होंने साहित्य में सौन्दर्य-तत्व की महत्ता पर बल दिया और साहित्य को अनुकरण न मानकर मानस-चित्र के माध्यम से पुनस्सृजन की बात कहकर कल्पना-तत्व और ध्वन्यात्मकता का महत्व प्रतिपादित किया।
 
यद्यपि यह धारणा भी अधिकांश लोगों की है कि जैसा कि ड्राइडन के समकालीन आलोचक न तो कोई परम्परा निर्मित कर पाए थे और न किसी आलोचनात्मक परम्परा का निर्वाह कर पाए थे, अतः इसी कारण उनकी तुलना में ड्राइडन को अधिक महत्व दिया जाता है, किन्तु बात केवल इतनी ही नहीं है। वस्तुतः उनका अपना कार्य भी अत्यन्त महत्वपूर्ण था ।
 

ड्राइडन के काव्य प्रयोजन और कल्पना सिद्धान्त की मीमांसा

ड्राइडन ने काव्य के प्रयोजन या उद्देश्य पर भी विचार व्यक्त किये हैं, वे रचना के प्रभाव की गम्भीरता और आनन्द को काव्य के उद्देश्य के रूप में अधिक महत्व देते हैं। ड्राइडन स्वीकार करते हैं कि यद्यपि काव्य में अनुकरण का अपना विशिष्ट महत्व है, तथापि काव्य की सफलता अनुकरण मात्र पर आधारित नहीं होती है। अनुकरण से भी अधिक कार्य की सफलता-असफलता का आधार यह है, कि काव्य कितनी गहनता के साथ सहृदय की आत्मा को प्रभावित करता है तथा उसे आनन्द देता है । 

"डिफेन्स ऑफ दि ऐस्से” में पद्य के गुणों का उल्लेख करते हुए ड्राइडन ने स्पष्ट रूप से आनन्द पर बल दिया है तथा अनुकरण के गौण स्वरूप को प्रतिपादित किया है- “यदि उससे हर्षोद्रेक होता है, तो मुझे केवल इतने से ही सन्तोष है, क्योंकि यदि हर्षोद्रेक काव्य का एकमात्र लक्ष्य नहीं तो उसका प्रमुख लक्ष्य अवश्य है। शिक्षा देना भी काव्य का उद्देश्य हो सकता है, लेकिन आनन्द के सम्मुख वह गौण ही होता है। कवि आनन्दानुभूति के सहारे ही शिक्षा दे सकता है। यह सच है कि कवि का कार्य भली-भाँति अनुकरण करना है, किन्तु आत्मा को प्रभावित करने और मनोवेगों के उद्वेलित करने और इन सबसे भी अधिक ऐसा प्रभाव उत्पन्न करने के लिए कि बिना सराहना किये न रहा जा सके, क्योंकि गम्भीर नाटकों का यह परमधर्म है। अनुकरण मात्र यथेष्ट नहीं हो सकता, इसलिये कवि जिस कथोपकथन का अनुकरण करे, वह काव्य की समस्त कलात्मकताओं और अलङ्कारों से विभूषित होना चाहिए। वास्तव में देखा जाये तो ऐसा होना चाहिए, मानो पूर्व-चिन्तन के बिना वह कभी बोला ही नहीं जा सकता हो ।”
 
कविता आनन्दानुभूति के सहारे ही शिक्षा प्रदान कर सकती है। अपनी इस मान्यता को ड्राइडन ने व्यापक काव्य सन्दर्भ में प्रकट किया है। अपने निजी विश्वास को प्रकट करते हुए ड्राइडन कहता है, मेरी यह स्वीकारोक्ति है कि मेरा ध्येय अपने युग को आन्दोलित करना है। इस उक्ति में ड्राइडन ने सामाजिक तथा अपने युग को आपेक्षिक महत्व प्रदान करने का प्रयत्न किया है। वास्तव में कवि अपने युग के सन्दर्भ में ही रचना करता है; इसलिये यह अनिवार्य है कि वह अपने युग के अनुरोधों को स्वीकार करता रहे।
 

कल्पना सिद्धान्त एवं प्रकृति

ड्राइडन ने कल्पना या ललित-कल्पना के महत्व पर अधिक जोर दिया है। ड्राइडन इन दोनों शब्दों का प्रयोग पर्याप्त रूप से करते हैं और दोनों में से ललित-कल्पना को अधिक पसन्द करते हैं। सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि ड्राइडन 'इमेजिनेशन' शब्द का प्रयोग फैन्सी के पर्याय रूप में करते हैं, जो एक उच्छृंखल सृजनात्मक शक्ति है तथा जिसे विवेक के माध्यम से नियन्त्रित करना आवश्यक है। कवि किसी भी कथानक का आधार ग्रहण करके अपनी कल्पना-शक्ति के माध्यम से उस पर चरित्रों का, उनकी मनःस्थितियों का तथा विचारों आदि का सन्निवेश करता हुआ रचना का स्वरूप प्रदान कर देता है। कल्पना न मात्र इन कार्यों में सहयोग करती है, वरन् वह भाषा के उपर्युक्त प्रयोग का भी मुख्य कारण है।
 
कल्पना की आवश्यकता केवल काव्य में ही नहीं होती है, अपितु नाटक में भी कल्पना को एक वांछनीय तत्व मानना चाहिए। इस सन्दर्भ में “एन इवनिंग्ज लव” की भूमिका में वे लिखते हैं- “इतना होने के उपरान्त अंश और दृश्य निर्धारित किये जाते हैं। पात्रों के कार्याकलाप और उनके मनोवेगों को यथास्थान निरूपित किया जाता है और दृश्य वर्णन में उपमा आदि भाषा के सत्प्रयोगों से दोनों की श्रीवृद्धि की जाती है। कवि का यही मुख्य कार्य है तथा कल्पना का विशालतम क्षेत्र भी, क्योंकि कल्पना ही रचनाकार का सर्वोपरि गुण है, विवेक-बुद्धि भी उसमें होनी चाहिये, किन्तु सजीवता और निगूढ़ सौन्दर्य प्रदान करने वाली शक्ति तो कल्पना ही है, विशेषकर गम्भीर नाटकों में जिनमें पर्यवेक्षण का अधिक सहारा नहीं लिया जा सकता है। हाँ, कामदियों में हास्य अंकन करने के लिए कल्पना की अधिक आवश्यकता होती है। कवि हास्यास्पद एवं मनोरंजक मूर्खता का निरीक्षण करता है और यह निर्णय कर लेने के बाद कि वह वास्तव में मूर्खता ही है, उसके निरूपण द्वारा आनन्द प्रदान करता है।”
 
ड्राइडन के विचार स्वच्छन्दतावादी युग के कवि समीक्षकों के लिए दिशा-निर्देश है। ड्राइडन के साहित्य-विषयक कुछ निबन्ध सन् 1668 में “Essay on dramatic poetry” में प्रकाशित हुए थे। ड्राइडन ने कल्पना और तरंग में विशेष अन्तर न मानते हुए दोनों को पर्याय जैसा ही माना है। ड्राइडन ने कल्पना की आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक अथवा रोगशास्त्र-विषयक व्याख्या नहीं की है और न कला-निर्माण की प्रक्रिया को ही बताया है। उसने केवल अपनी दृष्टि को काव्य-सृष्टि-मूलक कल्पना के सन्दर्भ में प्रस्तुत किया है। उसके पास कल्पना सम्बन्धी कोई सिद्धान्त नहीं था, जिसके द्वारा कवि की दृष्टि की व्याख्या की जा सके। वह तो अपने अनुभव से यही कहता था, कि कवि वस्तु-जगत् से वस्तुओं के बिम्ब ग्रहण करता है। उन्हें अपने अनुसार संजोता है और उनकी स्वत्वपूर्ण विशेषताओं को विशद् करता है और अन्त में मौलिक रूप से भव्य अथवा सुन्दर के रूप में सृष्टि करता है। इस रचना-सृष्टि में स्वर्णकार की रचना के समान रचना - कौशल ही विशेष मूल्यवान् रहता है, जैसा कि ड्राइडन ने लिखा है - "In general the employment of a poet is like that of a curious gensuith or wathmaker, the iron or silver is not his own, but they are the least part of that which gives the value, the price lies wholly in the workmanship. And he who works daily on a story without morning tougher in a comedy or raising concernment in a serious play, is no more to be accounted a good poet." अर्थात् जीवन या जगत् को देखने मात्र से ही कोई व्यक्ति कवि नहीं बन जाता, अपितु दृष्टिभूत जीवन से प्राप्त वस्तु-बिम्बों को संवारने तथा कल्पना के माध्यम से संजोने एवं निर्णय के अंकुश में उसे व्यवस्थित करने पर ही काव्यदृष्टि सम्भव होती है, अतः ड्राइडन कल्पना तथा तरंग में कोई अन्तर नहीं स्वीकार करता- "Inanition is a poet is faculty so wild and lawless that like on highraining spaniel, it must have clogs (Rayme). Tide to is, lest is outurn the judgment, the fancy then gives leisure to the judgment, to come in....fancy is the principal quality required. Judgement indeed is necessary in him, but it is fancy that gives the life touche and secretgraces to it."
 
कल्पना के साथ-साथ काव्य एवं नाटक में प्रकृति-पक्ष को भी ड्राइडन उभारकर प्रस्तुत करता है। काव्य अथवा नाटक की प्रकृति पाठकों के अन्तस् में रोचकता की अनुभूति करने वाली होनी चाहिए। नाटक की प्रकृति के आधार पर ही नाटककार की सफलता या असफलता का निर्णय किया जाता है, जैसा कि ड्राइडन लिखता है - “सामान्यतः कवि का कार्य किसी बन्दूक बनाने वाले अथवा घड़ी-साज की तरह है । इस्पात अथवा चाँदी जिस पर वे काम करते हैं, उनकी अपनी नहीं होती, किन्तु वास्तविक मूल्य इन वस्तुओं में नहीं बल्कि उन लोगों की कारीगरी में निहित है। ठीक इसी तरह जो व्यक्ति कामदी में कथानक को निर्जीव और निःस्पन्द बनाकर लोगों को हँसा नहीं पाता अथवा जो व्यक्ति गम्भीर नाटक में लोगों को आकुल नहीं कर सकता, वह अकुशल कारीगर की भाँति असफल माना जाना चाहिये। कवि के लिए प्राकृत कथन का वही महत्व है, जो घड़ी-साज के लिए चाँदी का। जिस प्रकार कुशल घड़ी-साज चाँदी से अच्छी घड़ी बनाता है। उसी प्रकार कुशल कवि उत्कृष्ट कृति का निर्माण करता है। ऐसी स्थिति में कवि की काव्यकला कुशलता का महत्व स्वीकार करना चाहिये, न कि सामग्री अथवा अनुकार्य का।” 

उपर्युक्त कथन से स्पष्ट है कि ड्राइडन ने कवि के व्यक्तित्व की रचनात्मकता को स्थापित करने का सुन्दर प्रयास किया है। वह कविकर्म की जटिलता के विश्लेषण में प्रवृत्त होता नहीं दिखता है। ऐतिहासिक दृष्टि से यह बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि अरस्तू से लेकर नव-आभिजात्यवाद तक अनुकरण की धारणा का नियन्त्रण रहा, चाहे उसका अर्थ परिवर्तित हो गया। अरस्तू का मान्यता 'प्रकृति की अनुकृति' से लेकर होरेस तथा नव्य-अभिजात्यवादियों की मान्यता 'प्राचीन काव्यदर्शों की अनुकृति' तक की समस्त विचारधारा में कवि की सर्जन शक्ति को अपेक्षित महत्व नहीं मिला है। यद्यपि ड्राइडन ने अनुकृति की अवधारणा का प्रयोग किया है, किन्तु कल्पना का बल पाकर वह अनुकृति 'रचनात्मकता' का ही पर्याय बन गयी है। जॉनसन की प्रहसनात्मक कामदी ‘बाथोलोक फेयर' की समीक्षा करते हुए ड्राइडन ने लिखा है- “यदि वह मेले में नित्य प्रति घटित न होने वाली घटनाओं अथवा कही जाने वाली बातों का अक्षरशः निरूपण करता तो यह कभी सम्भव नहीं होता। इतना ही नहीं वैसी स्थिति में तो जो आनन्द जागरूक व्यक्ति को नाटक से प्राप्त होता है, वहीं उसे मेले से भी प्राप्त होना चाहिए, किन्तु हम जानते हैं कि यह वास्तविकता नहीं है, उसने एक अत्यन्त रुग्ण वस्तु में भी जान डाल दी है, अनुकृति अमूल्य है, भूल भले ही निस्सार हो।” 

प्रस्तुत वर्णन से स्पष्ट है कि, 'निस्सार मूल' से 'अमूल्य अनुकृति' का निर्माण करने वाली शक्ति कल्पना है, कवि-कौशल ही है, इसके साथ ड्राइडन इस तथ्य को भी स्वीकारते हैं कि-'अति साम्य भी एक दोष है।' स्पष्ट है कि, ड्राइडन ने यान्त्रिक अनुकृति को चाहे वह प्रकृति की अनुकृति हो या काव्यादर्शों का विरोध, कवि की कल्पना एवं विवेक के प्रयोग से उत्कृष्ट सर्जना की सम्भावना की ओर आकृष्ट किया है। यद्यपि ड्राइडन ने कवि की कल्पना-शक्ति के रचनात्मक पक्ष पर अधिक जोर दिया है, उसने ललित-कल्पना और कल्पना का प्रयोग ललित-कल्पना के अर्थ में किया है, जिसका आशय है - विवेकशून्य शक्ति। आज भी इसी तथ्य को स्वीकार किया जाता है, कि विवेक कवि-कल्पना का अन्तरंग तत्व नहीं है। इसी प्रकार ड्राइडन ने कल्पना-शक्ति का जो विवेचन प्रस्तुत किया है, वह कॉलरिज के विवेचन के लिए पृष्ठभूमि का निर्माण करता है।

COMMENTS

Leave a Reply
नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,37,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,4,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,8,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,5,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,7,कविता,1478,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,40,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,3,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,53,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,139,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,6,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,35,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,77,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,7,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,12,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,4,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,202,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,141,प्रयोजनमूलक हिंदी,38,प्रेमचंद,50,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,88,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,9,भक्ति साहित्य,143,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,18,भीष्म साहनी,9,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,10,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,3,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,8,मोहन राकेश,16,यशपाल,19,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,125,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,8,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,3,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,8,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,57,शैलेश मटियानी,3,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,4,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,34,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,44,समसामयिक हिंदी लेख,270,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,22,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,88,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,438,हिंदी लेख,536,हिंदी व्यंग्य लेख,14,हिंदी समाचार,186,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aapka-banti-mannu-bhandari,6,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,divya-upanyas-yashpal,5,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,12,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,20,hindi essay,430,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,682,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,77,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,24,kavyagat-visheshta,26,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,12,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,raag-darbari-shrilal-shukla,8,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,6,sponsored news,10,suraj-ka-satvan-ghoda-dharmveer-bharti,6,Syllabus,7,tamas-upanyas-bhisham-sahni,4,top-classic-hindi-stories,59,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: जॉन ड्राइडन का काव्य सिद्धांत और आलोचना सिद्धांत
जॉन ड्राइडन का काव्य सिद्धांत और आलोचना सिद्धांत
जॉन ड्राइडन 17वीं सदी के एक प्रमुख अंग्रेजी कवि और आलोचक थे। उनके काव्य सिद्धांत और आलोचना सिद्धांत ने अंग्रेजी साहित्य में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया।
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiMUL4FNMECNVh0cKF9G6LJwtl-jhUq4pj6KCYNO1OWRdq6ej6uEYMABukQOoKmQZPwjXzdHhbRVrWmSTUzEAO4kAOtLt2EAW2vofIUgaCyh2UMBS7YNwekpiYUbRmu8h5uxwj5kqnY5FYlGzHgqgcaIj4uDfCWiey-YEcdiRfSG9FIqQCdmFPVEG4QOy7-/s16000/%E0%A4%A1%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%A1%E0%A4%A8.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiMUL4FNMECNVh0cKF9G6LJwtl-jhUq4pj6KCYNO1OWRdq6ej6uEYMABukQOoKmQZPwjXzdHhbRVrWmSTUzEAO4kAOtLt2EAW2vofIUgaCyh2UMBS7YNwekpiYUbRmu8h5uxwj5kqnY5FYlGzHgqgcaIj4uDfCWiey-YEcdiRfSG9FIqQCdmFPVEG4QOy7-/s72-c/%E0%A4%A1%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%A1%E0%A4%A8.jpg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2024/12/dryden-ka-kavya-alochana-siddhant.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2024/12/dryden-ka-kavya-alochana-siddhant.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका