एक और जिंदगी कहानी की तात्विक समीक्षा मोहन राकेश एक और जिन्दगी कहानी में आधुनिक पति-पत्नी की समस्याओं को वर्तमान समय के सन्दर्भों में प्रस्तुत किया
एक और जिंदगी कहानी की तात्विक समीक्षा | मोहन राकेश
मोहन राकेश की कहानी एक और जिंदगी एक मनोवैज्ञानिक कहानी है जो पात्रों के मनोविज्ञान और उनके जीवन के जटिल संबंधों को उजागर करती है। यह कहानी एक ऐसे समाज का चित्रण करती है जहां आधुनिकता और पारंपरिक मूल्यों के बीच संघर्ष चल रहा है।
मोहन राकेश का नई कहानी के विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने आधुनिक भावबोध से युग के सन्दर्भों के यथार्थ के सूक्ष्म विवेचन से और विषम वैविध्य से व्यापक बनाया है। नई कहानियों की उपलब्धियों का सामंजस्य राकेश की कहानियों में देखा जा सकता है। उनकी कहानियों में उलझाव, भटकन तथा अस्पष्टता का अभाव है। उनकी कहानियाँ वैचारिक एवं अनुमूल्यात्मक संयोग से युक्त एवं अत्यन्त लोकप्रिय हुई हैं। राकेश जी की कहानियों की निम्नलिखित विशेषताएँ बतायी जाती हैं -
- वैयक्तिक तथा सामाजिक चेतना का निरूपण,
- जीवन के नवीन सन्दर्भों (युगबोध) का यथार्थ चित्रण
- विषयगत विविधता तथा परिवेशगत विस्तार
- अनुमूल्यात्मक एवं वैचारिक संयोग
- शिल्पगत वैशिष्ट्य
कहानी कला की दृष्टि से एक और जिंदगी की समीक्षा
प्रस्तुत कहानी की हम राकेश की कहानी कला के सन्दर्भ में समीक्षा प्रस्तुत कर रहे हैं।
वैयक्तिक तथा सामाजिक चेतना का निरूपण
राकेश की कहानी-कला व्यक्ति चिन्तन और समष्टि चिन्तन की सीमा में विकसित हुई है। उन्होंने वैयक्तिक और सामाजिक दोनों स्तरों पर जीवन के यथार्थ की अभिव्यक्ति की है। आज मानव के व्यापक जीवन के सम्बन्धों में अनेक परिवर्तन आ गये हैं जिनमें कहीं ह्रास है तो कहीं विकास है। राकेश ने इन दोनों स्थितियों का सूक्ष्म निरूपण किया है।
'एक और जिन्दगी' कहानी में आधुनिक पति-पत्नी की समस्याओं को वर्तमान समय के सन्दर्भों में प्रस्तुत किया है। इनमें प्रकाश एक नई जिन्दगी की ओर बढ़ रहा है और उसकी पत्नी वीना भी कुछ ऐसा ही सोचकर उससे अलग हुई है। दोनों के रागात्मक सम्बन्ध टूटते हुए से और बिखरते हुए से दिखाये गये हैं। इस प्रकार इस कहानी की रचना वैयक्तिक यथार्थ की पृष्ठभूमि पर हुई है जिसमें सामाजिक चेतना सूक्ष्म रूप में व्यक्त है। पति-पत्नी के चरित्रों का विकास वैयक्तिक चेतना में हुआ है। इनका तलाक देना वैयक्तिक विचारों का असन्तुलित, मानसिक अन्तर्द्वन्द्व, घुटन, सुख की चाह, करुणा, सहानुभूति और स्नेह के बदलते हुए भावों आदि के द्वारा लेखक ने व्यक्ति को उसके सन्दर्भों में प्रस्तुत किया है और महानगरीय विखराव, जीवन की व्याकुलता तथा असन्तुलित जीवन-दृष्टि के कारण क्षुब्ध और त्रस्त जीवन की झाँकी दिखायी है।
प्रकाश वीना के प्रतिकूल स्वभाव से खिन्न है किन्तु अपने पुत्र पलाश के स्नेह से चिंतित हो उठता है। वीना प्रकाश से घृणा करती है और आत्मगौरव का स्वतन्त्र जीवन पसन्द करती है। प्रकाश का निर्मला से विवाह हो जाता है। किन्तु कहाँ तो वह इसके लिए लालायित था और कहाँ विवाहोपरान्त वह निर्मला के स्वभाव एवं मानसिक असन्तुलन से पुनः व्याकुल हो उठता है। इस प्रकार प्रकाश की जिन्दगी गलत दिशा में भटक जाती है।
जीवन के नवीन सन्दर्भों (युगबोध) का यथार्थ चित्रण
राकेश की कहानियों पर युग की छाप है। वह युग के प्रति ईमानदार हैं। वह परिवर्तित मानव मूल्यों में नये सन्दर्भों की खोज करते हैं और उनका यथार्थ चित्रण करते हैं। वह व्यक्तिगत जीवन में व्याप्त अपरिचय, परायापन, घुटन, असन्तोष, विद्रोह, विवशता आदि के द्वारा टूटती हुई जिन्दगी का यथार्थ निरूपण करते हैं। किन्तु लेखक आस्थावादी है, वह शिव की कल्पना कर लेता है। 'एक और जिन्दगी' में प्रकाश और वीना के माध्यम से जीवन के नवीन सन्दर्भों की यथार्थ अभिव्यक्ति हुई है। लेखक ने पात्र और परिस्थितियों के सार्थक चित्रण के द्वारा युगबोध को गतिशील बनाया है तथा प्रतीक भाव और विचार रखने में सजगता और सतर्कता दिखायी है। नगरों के वातावरण में व्याप्त एकाकीपन, परायापन और अलगाव का चित्रण भी मार्मिक बन पड़ा है। प्रेम की सीमा क्षणिक भावों की सीमा रेखाओं में संकुचित हो गयी है।
विषयगत विविधता तथा परिवेशगत विस्तार
राकेश की कहानियों में हमें विषयगत वैविध्य का निरूपण मिलता है। उनकी कहानियों में मानव-सम्बन्धों की जटिलता व्यक्त हुई है। उनकी कहानियों में यह वैविध्य उनके शीर्षकों से ही स्पष्ट है, यथा-"मंदी, परमात्मा का कुत्ता, मिस पाल, फौलाद का आकाश, गुनाहे बेलज्जत, फटा हुआ जूता आदि। विष्य-वैविध्य के साथ ही जीवन की विविध परिस्थितियों एवं परिवेशों का चित्रण भी हुआ है। इस वैविध्य का उद्देश्य नवीन मूल्यों की खोज और नव-निर्माण की आस्था है, प्रस्तुत कहानी में भी हमें मानव सम्बन्धों की जटिलता का परिचय प्रकाश और वीना के संवाद से मिलता है -
"तुम बताओ तुम चाहती क्या हो ?"
"कुछ भी नहीं मैं आपसे क्या चाहूँगी ?"
"तुमने सोचा है कि इस बच्चे के भविष्य का क्या होगा ?"
यथा- जब हम अपने भविष्य के बारे में नहीं सोच सकते तो इसके भविष्य के बारे में क्या सोचेंगे?"
" क्या तुम यह पसन्द करोगी कि बच्चे को मुझे सौंप दो और खुद स्वतन्त्र हो जाओ ?" "बच्चे को आपको सौंप दूँ।' वीना के स्वर में विस्तृष्णत गहरी हो गयी, इतनी मूर्ख नहीं हूँ।"
"तो क्या तुम यही चाहती हो कि इसका निर्णय करने के लिए अदालत में जाया जाय ?"
अनुमूल्यात्मक एवं वैचारिक संयोग
राकेश की कहानी कला में अनुभूति और विचार का सुन्दर संयोग हुआ है। इसलिए वे प्रभावोत्पादक बन गयी हैं। उनकी सूक्ष्म सांकेतिकता, व्यंग्यात्मकता, सूक्ष्म और संश्लिष्ट चित्रण, चिन्तनशीलता आदि सभी ने कहानियों को प्रभावपूर्ण बना दिया है। प्रस्तुत कहानी में अनुभूति का प्राधान्य है। पति-पत्नी के रागात्मक सम्बन्धों के बदलते हुए रूप का लेखक ने अनुभूतिपूर्ण चित्रण किया है।
शिल्पगत वैशिष्ट्य
राकेश का शिल्प दो प्रकार का है -
- सीधा एवं सहज प्रयासहीन शिल्प, और
- दुरूह एवं जटिल सायास ढंग से प्रस्तुत शिल्प।
इस प्रकार उनके शिल्प में सहजता एवं कलात्मकता का विकास हुआ है। अनुभूति की गहराइयों और युगबोध के परिवर्तित स्वरूपों के कारण नवीन कलात्मक अभिव्यक्ति के कारण कहीं-कहीं दुरूहता एवं जटिलता आ गयी है। विशुद्ध साहित्यिक दृष्टि से तो यह कलात्मकता ही है। राकेश की समस्त कहानियाँ सामाजिक हैं, जिनका उद्देश्य युगबोध की सरल और सुन्दर अभिव्यक्ति है। प्रस्तुत कहानी में प्रकाश और वीना के माध्यम से लेखक ने अपने सहज एवं प्रयासहीन शिल्प को प्रस्तुत किया है।
एक और जिंदगी की कहानी के तत्वों के आधार पर समीक्षा
अब हम कहानी के तत्वों के आधार पर कहानी की समीक्षा प्रस्तुत कर रहे हैं-
कथानक
प्रस्तुत कहानी में वैयक्तिक दाम्पत्य जीवन के उतार-चढ़ाव का वर्णन होने से वैयक्तिक चिन्तन प्रधान है । घटनाओं का सम्बन्ध युग की परिस्थितियों से है। कहीं-कहीं प्रतीकात्मक घटनाएँ भी हैं। विचार श्रृंखलाबद्ध हैं। जब प्रकाश के जीवन की घुटन चरम सीमा पर पहुँच जाती है तो वह वीना से अलग हो जाता है और निर्मला से विवाह कर लेता हैं, किन्तु वहाँ भी उसकी व्याकुलता शान्त नहीं होती। उसकी कुण्ठाओं का चित्रण करने में लेखक को पूर्ण सफलता मिली है। कथानक में सांकेतिकता, व्यंग्यात्मकता एवं प्रभावात्मकता और स्वाभाविकता है।
पात्र योजना तथा चरित्र चित्रण
प्रस्तुत कहानी के प्रधान पात्र ये हैं - प्रकाश, वीना और निर्मला तथा पलाश। ये पात्र नवीन युगबोध की अभिव्यक्ति करते हैं। पात्र प्राय: अन्तर्मुखी हैं। उनके अन्तर्द्वन्द्व का चित्रण भी हुआ है। प्रकाश के मन में प्रेम, घृणा, आक्रोश, चिन्ता, दुःख, नई जिन्दगी प्रारम्भ करने की चाह, असन्तोष, घुटन और विद्रोह तथा अपने जीवन के प्रति व्यापक चिन्ता है। वह सन्तुलित जीवन के विषय में कुछ निश्चित नहीं कर पाता। वीना तथा निर्मला का चरित्र-विकास उतना नहीं हुआ है। वे आत्मनिष्ठ हैं।
संवाद योजना
प्रस्तुत कहानी के संवाद, कथानक-विकास एवं पात्रों की मनःस्थितियों के निरूपण में समर्थ हैं। वे घटना, चरित्र, वातावरण एवं प्रभाव चारों की यथातथ्य अभिव्यक्ति करते हैं। इनमें मन की अनुमूल्यात्मक गहराई भी व्यक्त हुई है। बाल स्वभाव का निरूपण देखिए -
"तूने पापा को पहचाना नहीं था क्या ?"
"पैताना था।" बच्चा बाहें उसके गले में डालकर झूलने लगा।
"तो तू झट से मामा के पास आया क्यों नहीं ?"
"नहीं आया" कहकर बच्चे ने उसे चूम लिया। "तू आज ही यहाँ आया है ?"
"नहीं तल आया ता।"
"रहेगा या आज ही लौट जायेगा ?"
अभी तीन-चार दिन लहुँदा । "
एक अन्य संवाद देखिए-
"कौन लड़का ?"
"तब तो मैंने शेर मुहम्मद से ठीक ही कहा था।"
क्या कहा था ?"
"कि हमारा साहब तबियत का बादशाह है।'
"जब चाहें जिसके लड़के को अपना लड़का बना लें और जब चाहें में तो यह सब चलता है आप जैसा ही हमारा एक और साहब है।
वातावरण
प्रस्तुत कहानी सामाजिक यथार्थ के युगीन सन्दर्भों में निर्मित है। इसमें महानगर के बिखराव के वातावरण का यथार्थ चित्रण हुआ है। गुलमर्ग की प्रकृति की पृष्ठभूमि में मन की समता के सन्दर्भ का निरूपण भी सुन्दर है, जैसे- "घास, बर्फ और आकाश के रंग दिन में कई-कई बार बदल जाते हैं और बदलते हुए रंगों के साथ मन भी और होने लगता था।" लेखक ने प्रकृति और मानव के जीवन का साम्य दिखाने का सुन्दर प्रयास किया है।
उद्देश्य
प्रस्तुत कहानी में लेखक वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों के संघर्षरत वैयक्तिक जीवन के बदलते हुए रूप की अभिव्यक्ति करता है। इसमें दाम्पत्य जीवन के बिखराव को गर्हित बनाया है। तलाक दाम्पत्य जीवन के बिखराव का कारण है।
शीर्षक
प्रस्तुत कहानी का शीर्षक सार्थक एवं आकर्षक है।कहानीकार प्रकाश और वीना के सम्बन्ध टूटने और प्रकाश और निर्मला की एक और जिन्दगी की असफलता का चित्रण करता है। यह शीर्षक सांकेतिक, सार्थक एवं प्रभावपूर्ण है।
भाषा शैली
प्रस्तुत कहानी की भाषा पात्रानुकूल है।इसमें उर्दू, अंग्रेजी, पंजाबी के प्रचलित शब्दों का स्वच्छन्द प्रयोग हुआ है। यह सरल और व्यावहारिक भाषा का रूप प्रस्तुत करती है। शैली में वर्णनात्मक, विश्लेषण और नाटकीयता है। प्राकृतिक दृश्यों के निरूपण में शैली काव्यात्मक हो गयी है, यथा- बाहर मूसलाधार वर्षा हो रही थी- पिछली रात जैसी वर्षा हुई थी उससे भी तेज । खिड़की के शीशों से टकराती हुई बूदें बार-बार एक चुनौती लिए आती थीं। परन्तु सहसा बेबस होकर नीचे की ओर ढुलक जाती थीं। उन बहती हुई धारों को देखकर लगता था जैसे कई एक चेहरे खिड़की के साथ सटकर अन्दर झाँक रहे हों और लगातार रो रहे हैं।
निष्कर्ष
राकेश की यह कहानी सोद्देश्य एवं सार्थक है। इसमें राकेश की कहानी कला का अच्छा दिग्दर्शन हुआ है। यह एक उत्कृष्ट 'नई कहानी' है। इस प्रकार एक और जिंदगी एक ऐसी कहानी है जो मानवीय मनोविज्ञान की गहराईयों को छूती है। यह कहानी हमें बताती है कि अतीत का बोझ कितना भारी हो सकता है और हम कैसे अपने अतीत को पीछे छोड़कर आगे बढ़ सकते हैं। यह कहानी समाज के दबाव और अस्तित्व के संकट जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी प्रकाश डालती है।
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