कहानी का नामकरण और महत्व कहानी की लोकप्रियता के कारण आधुनिक साहित्य में कहानी ने अपने लिए महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है। इसकी लोकप्रियता दिन-प्रतिदिन
कहानी का नामकरण और महत्व | कहानी की लोकप्रियता के कारण
कहानी का नामकरण, कहानी को एक पहचान प्रदान करने का पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम होता है। एक अच्छा नाम न केवल कहानी को यादगार बनाता है, बल्कि पाठक की जिज्ञासा को भी जगाता है और उसे कहानी की दुनिया में खींचता है।
गद्यात्मक साहित्य का एक महत्वपूर्ण रूप कहानी है। इस रूप के अन्तर्गत अनेक अन्य नामों का व्यवहार किया जाता है जैसे- कथा, लघुकथा, छोटी कहानी, गल्प आदि। कथा" और आख्यायिका ये दो नाम प्राचीन भारतीय काव्यशास्त्र के हैं। कथा का लक्षण साहित्यदर्पण में इस प्रकार किया गया है - 'कथायां सरसं वस्तु गद्यैरेव विनिर्मितम्।"अर्थात् गद्यात्मक सरस वस्तु का नाम कथा है। इसमें कहीं-कहीं पद्य योजना का भी विधान होता है। आदि में कुछ पद्यों द्वारा देवता के प्रति नमस्कार तथा सज्जन- दुर्जन चरित्र का कीर्तन वर्णन विहित है।
कहानी के लिए दूसरा शब्द 'आख्यायिका' है। डॉ० श्यामसुन्दर दास ने कहानी के रूप का लक्षण लिखते समय इसी शब्द का प्रयोग किया है। आचार्य विश्वनाथ ने आख्यायिका की परिभाषा साहित्यदर्पण में इस प्रकार दी है-
आख्यायिका कथावत् स्यात् कवेर्वंशानुकीर्त्तनम् ।
अस्यामन्यकवीनां च वृत्तं पद्यं क्वचित् क्वचित् । ।
कथांशानां व्यवच्छेद आश्वास इति वक्ष्यते ।।
अर्थात आख्यायिक कथा के समान होती है। इसमें कथा के समान प्रारम्भ में नमस्कार आदि रहता है। इसमें कवि अपने वंश का उल्लेख भी कर सकता है। वह अन्य कवियों के इतिवृत्त का भी इसमें विन्यास कर सकता है। कथा को कई भागों में विभक्त किया जाता है और प्रत्येक भाग को आश्वास नाम दिया जाता है।
साहित्य दर्पणकार ने कथा के उदाहरण के रूप में 'कादम्बरी' का और आख्यायिका के उदाहरण के रूप में 'हर्षचरित' को प्रस्तुत किया है। कथा और आख्यायिका में अन्तर का भी विवेचन किया गया है। कथा में विन्यस्त आख्यान कल्पित होता है और आख्यायिका में इतिहासानुमोदित।इन लक्षणों से स्पष्ट है कि प्राचीन लक्षणों की चरितार्थता कहानी के आधुनिक रूप में पदर्शित नहीं की जा सकती।
संस्कृत में कथा कल्पित और आख्यायिका वास्तविक रचना मानी गई है। तात्पर्य यह है कि वास्तविक, इतिहास अनुमोदित अथवा किसी धर्म ग्रन्थ का आधार लेकर लिखी गई गद्य रचना आख्यायिका होती है। कल्पना का आधार लेकर अथवा वास्तवकिता से सर्वथा भिन्न पात्रों, घटनाओं, उद्देश्यों आदि की कल्पना करके लिखी गई गद्य रचना कथा होती है।
हिन्दी में इस प्रकार का कोई स्पष्ट विभाजन नहीं है। गद्य रचना चाहे वास्तविक आधार पर रचित हो अथवा उसका आधार चाहे कल्पना हो, पर उस रचना को कहानी ही कहा जायेगा। किसी घटना का वास्तविक वर्णन तो इतिहास में ही होता है। वास्तविक आधार पर लिखित गद्य रचना अथवा कहानी में भी कल्पना का प्रयोग किया जाता है। यदि कहानीकार इतिहास की घटना का ज्यों का त्यों वर्णन करेगा तो पाठक कहानी क्यों पढ़ेगा ? इतिहास ही पढ़ेगा। जब तक कल्पना का मिश्रण न किया जाये, तब तक कहानी में रोचकता नहीं आती। इतिहास में पात्रों के नाम और घटनाएँ तो होती हैं, पर पात्रों का चरित्र-चित्रण तथा वातावरण का वर्णन नहीं होता। इतिहास की संवाद योजना भी विस्तृत रोचक, संक्षिप्त और स्वाभाविक नहीं होती। इस प्रकार की कहानी को ऐतिहासिक कहानी कहा जाता है ।
छोटी कहानी या लघु कथा का नाम अंग्रेजी के शार्ट स्टोरी (Short story) के अनुकरण पर किया गया है। वस्तुतः आधुनिक कहानी का जन्म अंग्रेजी स्टोरी के ही आधार पर हुआ है। प्रेमचन्द जी ने कहानी के लिए 'गल्प' शब्द का प्रयोग किया है। इस शब्द में अंग्रेजी के फिक्शन (fiction) शब्द क, छाया हैं। अंग्रेजी का फिक्शन शब्द सामान्यतः मनगढन्त कथा के लिए प्रयुक्त किया जाता है। इसी छाया को ग्रहण करते हुए संस्कृत के 'कल्प' अथवा 'जल्प' शब्द के अर्थ वाले 'गल्प' शब्द को ले लिया गया है। गल्प शब्द के मूल में संस्कृत 'जल्प' धातु का अर्थ भी देखा जा सकता है। जल्प धातु से लोक प्रसिद्ध वृत्त से स्वच्छन्द वृत का निश्शंक कथन अर्थ लिया जा सकता है। इस प्रकार गल्प शब्द कहानी की सामान्य प्रवृत्ति का परिचायक है और अर्थ की व्यापकता के कारण उपन्यास रूप पर भी लागू होता है।
कहानी की लोकप्रियता के कारण
आधुनिक साहित्य में कहानी ने अपने लिए महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है। इसकी लोकप्रियता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। इसका मूल कारण यह है कि कहानी मानव की सहज उत्सुकता की प्रवृत्ति को शान्त करने में सहायक होती हैं। इसका प्रभाव शीघ्रता से मानव की वृत्ति पर पड़ता है। यूँ तो उपन्यास भी मानव मनोवृत्ति को आन्दोलित करता है और उसकी कुतूहल वृत्ति को शान्त करता है परन्तु अपने विशाल रूप के कारण वह अधिक समय की अपेक्षा करता है। आज के मानव ने अपने जीवन को इतना जटिल बना लिया है कि वह निरन्तर समयाभाव का अनुभव करता हैं। उसे सब कार्यों को शीर्घ निपटाने की आतुरता रहती है। इसी कारण वह बड़े विस्तार वाले कथानकों की ओर प्रवृत्त नहीं हो पाता। वह तो थोड़े से थोड़े समय में अधिक आनन्द का संचय करने का इच्छुक है। कहानी इस इच्छा को सुगमता से पूरा करती है यह इसकी लोकप्रियता का दूसरा कारण है। पत्र-पत्रिकाओं का विस्तार कहानी की लोकप्रियता का तीसरा कारण है। पत्र-पत्रिकाओं के ग्राहकों की संख्या बढ़ाने के लिए इनमें मनोरंजक सामग्री का विन्यास आवश्यक था। इस आवश्यकता की पूर्ति थोड़ा स्थान लेने वाली कहानी से ही सम्भव था। इसके अतिरिक्त इसकी लोकप्रियता का चतुर्थ कारण इसके रूप का लोकरूचि के अनुकूल विकास है। शिक्षा ग्रहण करने वालों की संख्या मनोरंजन प्रेमियों की अपेक्षा कम होती है। इसके रूप में मनोरंजन तत्व की प्रधानता आ जाने के कारण यह अधिकसंख्यक जनों के अनुकूल होती गई।
कहानी में पूरा जीवन न होकर जीवन का एक अंश होता है। इस कारण कहानी प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन की छाया प्रतीत हो सकती है। किसी भी मनुष्य का सम्पूर्ण जीवन अथवा चरित्र समान नहीं हो सकता। सभी के जीवन में उतार-चढ़ाव आते हैं। वास्तव में प्रत्येक मनुष्य का जीवन बहुत से जीवन खंड़ों का समूह होता है। सभी मनुष्यों में भलाइयों-बुराइयों के साथ-साथ अनेक रूचियाँ भी होती हैं। यही कारण है कि कहानी को लगभग सभी रूचियों वाले मनुष्य पढ़ते और पसंद करते हैं, पर उपन्यास पढ़ने वालों की संख्या कहानी के पाठकों से कम होती है।
इस प्रकार उत्सुकता की शान्ति, संक्षिप्तता, पत्र-पत्रिकाओं का प्रसार तथा मनोरंजन कहानी को साहित्य की सर्वाधिक लोकप्रिय विधा बनाने वाले कारण हैं।इस विवेचन का यह आशय कदापि नहीं है कि कहानी साहित्य की उत्कृष्ट विधा है और उपन्यास कहानी की अपेक्षा निकृष्ट होता है। एक कमरा अथवा छोटा मकान किराये पर लेने वालों की संख्या अधिक होती है और कोठी अथवा महल किराये पर लेने अथवा देने वाले अपेक्षाकृत बहुत कम होते हैं। इस आधार पर महल को निकृष्ट और कमरे अथवा छोटे मकान को उत्कृष्ट नहीं कहा जा सकता। सुविधा एवं प्रयत्न लाधव मानव की ऐसी विशेषता है जो जीवन के सभी क्षेत्रों में कार्य करती है। इसी आधार पर वह उपन्यास की अपेक्षा कहानी को अधिक अपनाता है, रूचि के कारण नहीं ।
कहानी की लोकप्रियता इस बात से भी समझी जा सकती है कि यह मानव की सर्वप्रथम साहित्यिक रचना है। प्रकाशित साहित्य में तो सभी देशों का सभी भाषाओं में प्रथम साहित्यक रचना पद्य अथवा कविता है। जब मनुष्य लिखना नहीं जानता होगा, तब उसने सबसे पहले कहानी की ही रचना की होगी। बालक जब भाषा समझने लगता है तो सबसे पहले उसकी रूचि कहानी के प्रति ही जाग्रत होती है। वह माता, दादी अथवा नानी को कहानी कहने के लिए प्रेरित ही नहीं, विवश भी करता है। बच्चे दिन में कहानी सुनने का आग्रह न करें, इसके लिए एक बहाना खोज लिया गया है। दिन में कहानी सुनने वाले बच्चों का मामा रास्ता भूल जाता है। बच्चों के मामा अत्यधिक प्रिय होता है, इससे बेचारे दिन में कहानी सुनने का हठ नहीं करते। कविता करना मौखिक रूप से सभी को नहीं आता, कहानी कहना सभी सीख जाते हैं। बच्चा साहित्य रचना के नाम पर सबसे पहले कहानी कहना ही सीखता है। देहात में लोक साहित्य के रूप में पद्यात्मक साहित्य ढोला, मारू, आल्हा आदि के जो रूप प्रचलित हैं। इसे गाने वाले आशुकवि होते हैं। देश में पद्यात्मक साहित्य की रचना सभी नहीं जानते, पर कहानी रचना अर्थात् कहानी कहना सभी जानते हैं।
ऋग्वेद सबसे प्राचीन साहित्यिक रचना है। उसमें कहानी के सूत्र प्राप्त होते हैं। रामायण और महाभारत में तो बहुत सी कहानियाँ भरी पड़ी हैं। उपनिषदों में तो आत्म-ज्ञान कराने के लिए कहानी को ही आधार बनाया गया है। यह बात अलग है कि उपनिषदों की कहानियाँ गद्य रूप में नहीं, पद्य रूप में है। पुराणों में तो कहानियों का संग्रह ही है। संस्कृत साहित्य में सर्वाधिक अनुवाद 'पंचतंत्र, और 'हितोपदेश' के हुए हैं, जिनमें कहानियाँ ही संग्रहीत हैं।इस आधार पर कहानी की लोकप्रियता निर्विवाद कही जा सकती है ।
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