कुंडली मिलान सप्तम भाव का महत्व और जीवनसाथी का चयन कुंडली मिलान हिंदू विवाहों में एक महत्वपूर्ण परंपरा है। यह विवाह के बाद दंपत्ति के जीवन में आने वाल
आत्मिक जुड़ाव
जातक के जन्म के समय पूर्व दिशा में जो राशि उदित होती है वही लग्न की राशि बन जाती है। कुंडली का प्रथम भाव तन भाव कहलाता है अर्थात् यह भाव जातक के शरीर-सौष्ठव के बारे में बताता है। जब इस शरीर में आत्मा प्रवेश करती है, तभी जातक का इस संसार में जन्म होता है। सूर्य ऊर्जा का परम स्रोत है, सभी ग्रह सूर्य से ही प्रकाशित होते हैं, इसलिए इसे ग्रहों का राजा कहा जाता है। आत्मा के बगैर इस नश्वर शरीर का कोई अस्तित्व ही नहीं। आत्मा, शरीर और मन दोनों से ऊपर होती है क्योंकि वह तो अजर-अमर है। सूर्य को आत्मा का कारक कहा जाता है, साथ ही तन भाव का कारक भी सूर्य को ही माना जाता है। सूर्य पिता का भी कारक है क्योंकि जातक को जीवन पिता से ही प्राप्त होता है। सूर्य अहंकार का भी कारक है। काल पुरुष की कुंडली में मेष राशि लग्न में तथा तुला राशि सप्तम भाव में आती है। सूर्य मेष राशि में उच्च के तथा तुला राशि में नीच के होते हैं। सप्तम भाव वैवाहिक संबंध का भाव है। दूसरे शब्दों में इसे इस प्रकार भी समझा जा सकता है कि विवाह की सफलता के लिए जातक को अपना अहंकार छोड़ना ही होता है, तभी तो काल पुरुष की कुंडली में इस भाव में सूर्य नीच के हो जाते हैं। इस लेख में जातक शब्द से तात्पर्य पुरुष व स्त्री जातक दोनों से है।
जन्म कुंडली का सप्तम भाव जातक के विवाह तथा पत्नी या पति के बारे में संकेत देता है। विवाह से ही जातक का जीवन संपूर्ण माना जाता है। उपयुक्त जीवनसाथी के संग से ही मनुष्य सुखमय जीवन का आनंद ले पाता है। जातक का वैवाहिक जीवन सुखी होगा अथवा नहीं यह तो पत्रिका के विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखकर ही बताया जा सकता है, लेकिन जातक का आत्मिक झुकाव किस ओर होगा अथवा वह किस प्रकार के साथी से आकर्षित होगा अथवा वह किस प्रकार की साथी की तलाश में रहेगा यह कुंडली में सूर्य से सप्तम भाव को देखकर बताया जा सकता है। अन्य शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि सूर्य से सप्तम भाव को देखकर यह जाना जा सकता है कि जातक अपने जीवनसाथी में किन गुणों को पाना पसंद करेगा अथवा जातक की आत्मा किन गुणों से संतुष्ट होगी। अर्थात् सूर्य से सप्तम भाव जातक के आत्मा की संतुष्टि का भाव है। यह भाव जातक के आत्मा की शक्ति को भी बताने में सक्षम है। सूर्य से सप्तम भाव में स्थित राशि तथा ग्रहों को देखकर यह बताया जा सकता है कि जातक को आत्मिक संतुष्टि प्रदान करने वाला साथी किस प्रकार के गुणों से युक्त होना चाहिए। जातक स्वयं इसी प्रकार के जीवनसाथी की तलाश में रहता है। यदि उसे ऐसा जीवनसाथी मिल जाता है जो उसकी आत्मा की तलाश रही हो, तो उसका विवाह अत्यधिक सफल होता है।
सूर्य से सप्तम भाव में चन्द्रमा अथवा चन्द्रमा की राशि स्थित हो सकती है अर्थात् सूर्य मकर राशि में और उसके सप्तम भाव में कर्क राशि हो सकती है। कर्क राशि चंद्रमा की राशि है, अतः यदि सूर्य से सप्तम स्थान पर चंद्रमा स्थित हो अथवा चंद्रमा की राशि हो तो ऐसी स्थिति में जातक अपनी माता से अत्यधिक जुड़ाव रखता है तथा वह मातृत्व से संबंधित गुणों को बहुत पसंद करता है। अतः जातक ऐसे जीवनसाथी को पाने की इच्छा रखता है जो उससे बिना किसी शर्त के भावनात्मक प्रेम करे, माता की तरह देखभाल करे व सेवाभावी हो, क्योंकि यही उसके आत्मा की चाहत होती है।
यदि सूर्य से सप्तम भाव में मंगल या मंगल की राशि स्थित हो जाए तो जातक अपने जीवनसाथी में मंगल से संबंधित गुणों की तलाश अवश्य करता है। वह चाहता है कि उसका जीवनसाथी साहसी, शक्तिशाली, ऊर्जावान, पराक्रमी तथा नेतृत्व की क्षमता रखने वाला होना चाहिए। यदि सूर्य वृषभ राशि में हो तो उससे सप्तम भाव में वृश्चिक राशि आती है ऐसी स्थिति में जातक की यह भी अपेक्षा होती है कि उसके जीवनसाथी का झुकाव साधना और आध्यात्म इत्यादि की ओर भी हो। यदि सूर्य तुला राशि में हो तो उससे सप्तम भाव में मेष राशि आती है तो जातक चाहता है कि उसका जीवनसाथी दृढ़ संकल्पी, आत्मविश्वासी, उत्साही तथा आशावादी हो। यदि जातक को उसका मनपसंद जीवनसाथी प्राप्त हो जाता है तो उसकी आत्मा की तलाश समाप्त हो जाती है।
बुध सूर्य से अधिकतम लगभग 28 डिग्री ही दूर रह सकता है, इसलिए सूर्य से सप्तम भाव में बुध स्थित नहीं हो सकता, लेकिन सूर्य से सप्तम भाव में बुध की राशि स्थित हो सकती है। ऐसी स्थिति में जातक अपने जीवनसाथी में बुध के कार्यकत्वों वाले गुण जैसे विद्या-बुद्धि, वाक्-चातुर्य, सृजनशीलता, बचपना, अल्हड़पन, हँसमुख प्रवृत्ति आदि को पाना चाहता है। उसे युवा, उत्साही तथा ऊर्जावान व्यक्ति पसंद आते हैं। उसे ये सब गुण आत्मिक संतुष्टि प्रदान करते हैं, इसलिए जातक ऐसे गुणों से युक्त व्यक्तियों से अत्यधिक प्रभावित होते हैं। यदि सूर्य धनु राशि में हो तो उससे सप्तम भाव में मिथुन राशि आती है तो जातक अपने जीवनसाथी के साथ छोटी यात्राओं पर जाना पसंद करता है। यदि सूर्य मीन राशि में हो तो उससे सप्तम भाव में कन्या राशि आती है तब जातक अपने जीवनसाथी से यह अपेक्षा करता है कि वह सेवाभावी हो तथा चैरिटी इत्यादि में भी रुचि रखता हो। कई बार जातक को अपने जीवनसाथी में इन गुणों की कमी महसूस होती है, तब वह स्वयं ही अपने अंदर इन गुणों को विकसित करने की कोशिश करता है। इसके अतिरिक्त जातक चिर युवा बने रहने के लिए भी प्रयासरत रहता है।
सूर्य से सप्तम भाव में यदि बृहस्पति स्थित हो अथवा बृहस्पतिदेव की राशि स्थित हो तो ऐसी स्थिति में जातक अपने जीवन साथी में ज्ञान, भक्ति, विवेक तथा बुद्धि जैसे गुणों की तलाश करता है। वह ऐसा जीवनसाथी पाना चाहता है जो उसे सही रहा दिखा सके। यदि सूर्य मिथुन राशि में स्थित हो तो उसके सप्तम स्थान में धनु राशि आती है ऐसी स्थिति में जातक अपने जीवनसाथी में गुरु तत्व की तलाश अवश्य करता है। इसी प्रकार यदि सूर्य कन्या राशि में हो तो उसके सप्तम स्थान में मीन राशि आती है तब भी जातक अपने जीवनसाथी को भक्ति और ज्ञान से ओत-प्रोत देखना चाहता है। यदि उसे मनोवांछित जीवनसाथी मिल जाता है तो सोने पर सुहागा की स्थिति बनती है, लेकिन यदि यह स्थिति नहीं बन पाती तो जातक अपनी आत्मिक संतुष्टि के लिए भटकता है और ऐसे गुरुओं की तलाश करता रहता है जो उसे मार्गदर्शन दे सके।
शुक्र सूर्य से अधिकतम लगभग 47 डिग्री ही दूर रह सकता है, इसलिए सूर्य से सप्तम भाव में शुक्र स्थित नहीं हो सकता। परन्तु सूर्य से सप्तम भाव में शुक्र की राशि स्थित हो सकती है। ऐसी स्थिति में जातक अपने जीवनसाथी में शुक्र से संबंधित गुण जैसे सृजनात्मकता तथा ऐश्वर्य की तलाश करता है। सूर्य यदि मेष राशि में हो तो सूर्य के से सप्तम भाव में तुला राशि आती है। इस स्थिति में जातक अपने जीवनसाथी से रिश्तों में संतुलन बनाए रखने की अपेक्षा अवश्य करता है। यदि सूर्य वृश्चिक राशि में हो तो उसके सप्तम भाव में वृषभ राशि आती है। इस स्थिति में जातक जीवनसाथी से धन की विशेष अपेक्षा रखता है साथ ही वह यह भी चाहता है कि उसका जीवनसाथी कुटुंब की भली प्रकार देखभाल करे तथा पाक-कला में भी निपुण हो। यदि उसे इन गुणों से युक्त जीवनसाथी की प्राप्ति हो जाती है तो उसे आत्मिक संतुष्टि मिलती है, वरना वह इन गुणों की तलाश में भटकता रहता है।
यदि सूर्य से सप्तम भाव में शनि अथवा शनि की राशि स्थित हो तो जातक कार्य के प्रति ईमानदार, जिम्मेदार, धैर्यवान, विनम्र, अनुशासित, सेवाभावी तथा परिपक्व व्यक्तियों को पसंद करता है। यदि सूर्य कर्क राशि में हो तो उससे सप्तम भाव में मकर राशि आती है ऐसी स्थिति में जातक कर्म प्रधान जीवनसाथी की तलाश करता है। यदि सूर्य स्वराशि सिंह में हो तो उससे सप्तम भाव में कुंभ राशि आती है, ऐसी स्थिति में जातक अपने जीवनसाथी में संवेदनशीलता, गंभीरता, धैर्य, एकाग्रता आदि गुणों को देखना पसंद करता है। इन गुणों से युक्त जीवनसाथी के सानिध्य से जातक अपने जीवन को पूर्ण समझता है तथा उसे आत्मिक संतुष्टि की प्राप्ति होती है। यदि उसे ऐसा जीवनसाथी नहीं मिल पाता है तो उसे भटकन महसूस होती है।
यदि सूर्य कुंभ राशि में हो तो उससे सप्तम भाव में सिंह राशि आती है, ऐसी स्थिति में जातक चाहता है कि उसका जीवनसाथी सात्विक, आत्मविश्वासी, नेतृत्व की क्षमता से युक्त, सम्मानित, प्रतिष्ठित, उदार, निर्भीक व स्वाभिमानी हो अर्थात् उसके जीवनसाथी में सूर्य से संबंधित गुण हों।
यदि सूर्य से सप्तम स्थान पर राहु स्थित हो तो राहु से संबंधित गुणों से युक्त व्यक्ति उसे प्रभावित करते हैं। ऐसी स्थिति में जातक विजातीय, विधर्मी तथा विदेशी व्यक्तियों से अत्यधिक प्रभावित होता है, साथ ही जातक ऐसे व्यक्तियों से भी प्रभावित होता है जो लीक से हटकर कुछ नया करने में विश्वास रखते हो। अपने जीवन साथी के रूप में वह इन गुणों को भी पाना चाहता है। इसके अलावा जातक स्वयं भी कुछ नया तथा अलग करने की कोशिश में रहता है।
यदि सूर्य से सप्तम भाव में केतु स्थित हो तो जातक को आध्यात्म में, साधना में, जप-तप में, ज्योतिष शास्त्र इत्यादि गुप्त विद्याओं में आत्मिक संतुष्टि की प्राप्ति होती है तथा वह अपने जीवनसाथी में भी इन गुणों को देखना चाहता है। इसके अतिरिक्त जातक स्वयं भी उम्र बढ़ाने के साथ-साथ आध्यात्मिक, साधना, ज्योतिष इत्यादि में अत्यधिक रुचि लेने लगते हैं।
इस तरह सूर्य से सप्तम भाव को देखकर यह आसानी से जाना जा सकता है कि जातक अथवा जातिका को कैसा जीवनसाथी चाहिए, अर्थात् जातक या जातिका के आत्मा की संतुष्टि कैसे जीवनसाथी के सानिध्य में हो पाएगी क्योंकि उपयुक्त साथी के संग से ही जीवन की यात्रा सुगम और आनंददायक हो सकती है।
- डॉ. सुकृति घोष
प्राध्यापक, भौतिक शास्त्र ,शा. के. आर. जी. कॉलेज
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
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