रंगभूमि उपन्यास का सारांश मुंशी प्रेमचंद उपन्यास सूरदास नामक एक पात्र के जीवन के माध्यम से ग्रामीण भारत के जीवन, सामाजिक रीति-रिवाजों और उस समय के सम
रंगभूमि उपन्यास का सारांश | मुंशी प्रेमचंद
मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास रंगभूमि भारतीय समाज की जटिलताओं और उसमें निहित सामाजिक असमानताओं का एक गहरा चित्रण है। यह उपन्यास सूरदास नामक एक पात्र के जीवन के माध्यम से ग्रामीण भारत के जीवन, सामाजिक रीति-रिवाजों और उस समय के समाज में व्याप्त कुरीतियों को उजागर करता है।
काशी के बाहरी भाग में बसे पांडेपुर गाँव को 'रंगभूमि' की कथा का स्थल बनाया गया है। ग्वाले, मजदूर, गाड़ीवान और खोमचे वालों की इस गरीब बस्ती में एक गरीब और अन्धा चमार रहता है—सूरदास। वह है तो भिखारी परन्तु पुरखों की 10 बीघा धरती भी उसके पास है, जिसमें गाँव के ढोर चरते-विचरते हैं। सामने ही एक खाल का गोदाम है, जिसका आढ़ती है एक ईसाई-जॉन सेवक। वह सिगरा मुहल्ले का निवासी है। इस जमीन पर उसकी बहुत दिनों से निगाह है, वह इस पर सिगरेट का कारखाना खोलना चाहता है। सूरदास किसी भी तरह अपने पुरखों की निशानी उस धरती को बेचने के लिए जब राजी नहीं होता है तो जॉन सेवक अधिकारियों से मेल-जोल का सहारा लेकर उसे हिलाने की योजना बनाता है। अपनी बेटी सोफिया के माध्यम से राजा भरतसिंह और उसके परिवार से जॉन सेवक का परिचय-सम्बन्ध स्थापित होता है । राजासाहब के परिवार में चार प्राणी हैं-पत्नी रानी जाह्नवी, पुत्री इन्दु, पुत्र विनय और स्वयं राजासाहब । एक दिन विनय अपने स्वयंसेवकों के साथ आग बुझाने का अभ्यास करते हुए आग की लपटों में फँस जाता है। संयोग से सोफिया अपनी माँ से झगड़ा कर उधर जा निकली थी। वह आग में कूदकर विनय को बचा लाई। आग ने उसे कई जगह झुलसा दिया। विनय के माता-पिता सोफिया को अपने साथ ले गए और उसका इलाज कराया। वह उसके प्रति इतने स्नेहासिक्त हो गए कि उसे अपने ही घर रखने की सोचने लगे । इन्दु सोफिया की सहपाठिनी और सखी थी, उसका विवाह छतारी के राजा महेन्द्र कुमार से हुआ था। राजा महेन्द्र कुमार सिंह बनारस म्युनिसिपल बोर्ड के अध्यक्ष थे । इन्दु के द्वारा उन्हें सोफिया और जॉनसेवक के बारे में थोड़ा-बहुत मालूम हो चुका था। जॉनसेवक ने इस संयोग से पूरा-पूरा लाभ उठाया। एक ओर उसने राजा भरतसिंह को अपने कारखाने के शेयर खरीदने के लिए राजी कर लिया तो दूसरी ओर राजा महेन्द्र कुमार सिंह से सूरे की जमीन दिलवा देने की हामी भरवा ली। उस समय बनारस का जिला-अधिकारी क्लार्क नामक एक अंग्रेज था। वह सोफिया पर आसक्त था और उसके लिए सोफिया के माता-पिता की ओर से प्रोत्साहन मिला था। सोफिया उससे मिली और हठ करके राजा महेन्द्रपाल के आदेश को रद्द करवाकर क्लार्क से आज्ञा जारी करवा दी कि सूरे की जमीन किसी को नहीं मिल सकती। लेकिन राजा महेन्द्र कुमार ने गवर्नर से मिलकर वह जमीन जॉन सेवक को दिलवा दी। क्लार्क का उदयपुर के लिए तबादला हो गया।
कारखाना-निर्माण और उसके साथ ही मजदूरों के लिये घर बनाने का क्रम रखा गया, पं न प्राप्त करने के बाद मजदूरों के लिए घर बनाने की आवश्यकता हेतु पांडेपुर बस्ती पर निगाह डाली गई । अतः पांडेपुर बस्ती को खाली करवाने की योजना बनी। प्रान्तीय सरकार से लिखा-पढ़ी हुई, इजाजत मिल गई। बस्ती के लोगों को अपना-अपना मुआवजा लेकर घर छोड़ने के लिए कह दिया गया। सूरदास फिर अड़ गया। झोंपड़ी के सामने ही उसने सत्याग्रह कर दिया। झगड़े ने आन्दोलन का रूप धारण कर लिया। सूरदास की मदद के लिए इन्द्रदत्त, सोफिया और विनय आ गये। दूसरी ओर आन्दोलन को दबाने के लिए फौज आ धमकी। आन्दोलन बढ़ता ही गया। गोलियाँ चलीं, इन्द्रदत्त शहीद हो गए। सूरदास को गोली लगी और विनय जब मंच पर आए तो जनता ने उन पर व्यंग्यों की बौछार की। अशान्त जनता को फौज की गोलियों से बचाने के लिए विनय ने अपनी ही रिवॉल्वर अपने सीने में दाग ली। इस आत्मबलिदान से आन्दोलन की आँधी थम गई। सूरदास को अस्पताल पहुँचाया गया। सोफिया, जाह्नवी, इन्दु, भरतसिंह आदि ने उसकी सेवा की, किन्तु उसे बचा नहीं सके। जनता सूरदास की झोंपड़ी की जगह उसकी मूर्ति स्थापित करती है। राजा महेन्द्र कुमार रात में उसे मिटाने के लिए जाते हैं और स्वयं उस मूर्ति के नीचे दबकर मर जाते हैं। इस प्रकार राजा महेन्द्र कुमार जीतकर भी हार जाते हैं और सूरदास हारकर भी विजय पा जाता है। 'रंगभूमि' का यही कथानक है ।
रंगभूमि उपन्यास की अन्तर्कथाएँ
रंगभूमि उपन्यास सिर्फ सूरदास के जीवन की कहानी भर नहीं है, बल्कि यह भारतीय ग्रामीण समाज की एक विस्तृत तस्वीर पेश करता है। इस उपन्यास में कई छोटी-छोटी कहानियां समाए हुए हैं, जिन्हें हम अन्तर्कथाएं कह सकते हैं। ये अन्तर्कथाएं मुख्य कहानी को और अधिक समृद्ध बनाती हैं और पाठक को समाज के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करती हैं। कुछ प्रमुख अंतर्कथाएँ निम्नलिखित है -
सोफिया विनय की प्रेम कहानी
'रंगभूमि' की मुख्य कथा के साथ जुड़ने वाला कथा-सूत्र सोफिया और विनय के परस्पर प्रेम का है। सोफिया के घर में हैं—बाबा ईश्वर सेवक, पिता जॉन सेवक, माँ मिसेज सेवक तथा भाई प्रभु सेवक। पिता कंजूस व्यापारी हैं और माता कर्कशा । घर में उसे स्वाभाविक स्नेह नहीं मिल पाता। एक छटपटाहट लिए वह घर से निकल पड़ती है। विनय को आग से बचाने के फलस्वरूप वह राजा भरतसिंह के यहाँ पहुँच जाती है। यहाँ उसे माँ का प्यार और सखी का स्नेह मिलता है। उसका दुखी अन्तर्मन पसीज उठता है और वह अनजाने ही विनय को अपना हृदय दे बैठती है। इन्दु और प्रभु सेवक दोनों यह भेद जान लेते हैं, पर मौन रहते हैं। शीघ्र ही रानी जाह्नवी को भी इस मौन प्रणय-लीला का पता लग जाता है। वे दोनों को एक-दूसरे से अलग करने के लिए विनय को तुरन्त स्वयंसेवक दल के साथ उदयपुर जाने का आदेश दे देती हैं।
उदयपुर में जनसाधारण की भलाई के लिये किये गये प्रयत्नों के परिणामस्वरूप विनय को जेल हो गई, उन पर राजद्रोह का आरोप लगा । सोफिया को यह पता लगता है तो उसके प्राण सूख जाते हैं। इसी समय मि. क्लार्क उदयपुर के रेजीडेंट बनकर पहुँचते हैं। सोफिया को तिनके का सहारा मिलता है। वह उदयपुर जाकर मि. क्लार्क से मिलती है और उससे झूठी प्रणय-लीला करते हुए विनय को कारागार में खोज निकालती है। इस मिलन के अवसर पर दोनों पहली बार एक-दूसरे पर अपना प्रेम प्रकट करते हैं।
राजा भरतसिंह ने पुत्र-स्नेह से व्यथित होकर नायकराम पंडा को उदयपुर भेजा कि वह जैसे भी हो, विनय को जेल से छुड़ा लाए। नायकराम उदयपुर जाकर शीघ्र ही विनय से जेल में मिलता है और जाह्नवी की अतिशय रुग्णावस्था की ख़बर देकर उसे भागने के लिए तैयार कर लेता है। दोनों भाग खड़े होते हैं, परन्तु तभी जसवन्तनगर में जनता क्लार्क के विरुद्ध उपद्रव कर बैठती है। विनय और सोफिया वहाँ पहुँच जाते हैं। क्रुद्ध भीड़ में से कोई ईंट मारता है, जिससे सोफिया का सिर फट जाता है। विनय आपे से बाहर होकर गोली चला देता है। वीरपाल सोफिया को उड़ा ले जाता है। सरकारी दमन-चक्र चलता है। सोफिया के गायब हो जाने मे विना अपना सन्तुलन खो बैठता है और राजद्रोहियों को खोजने का दायित्व अपने ऊपर से लेग है । अन्ततः इन्द्रदत्त की सहायता से वह वीरपाल के गिरोह में पहुँचता है, जहाँ उसे सोफिया मिलती है। इस दमन चक्र का जिम्मेदार वह विनय को ठहराती है । विनय खिन्न होकर लौट पड़ता है और जाह्नवी का पत्र पाकर बनारस के लिए चल देता है। गाड़ी में उसे सोफिया मिल जाती है। यहाँ उसे वास्तविकता का पता लगता है, तो उसकी घृणा पुनः प्रेम में बदल जाती है। दोनों अनजान स्टेशन पर उतरकर एक वर्ष तक भीलों की बस्ती में रहते हैं किन्तु प्रेम की पवित्रता की रक्षा करते हुए, फिर बनारस पहुँचते हैं। पहले सोफिया रानी जाह्नवी से मिलती है। रानी न केवल उसे क्षमा करके अंक में भर लेती है अपितु उसे पुत्र-वधू बनाने का संकल्प भी प्रकट कर देती है। विनय को भी क्षमा मिल जाती है। दोनों के विवाह की तैयारियाँ शुरू हो रहीं थीं कि तभी सोफिया अस्वस्थ हो जाती है। विनय उसके उपचार में लग जाता है। सोफिया उसे सूरदास के सत्याग्रह में जाने की प्रेरणा देती है । विनय सत्याग्रह में सम्मिलित होने चलते हैं और वहाँ यह उपकथा मुख्य कथा में डूबने लगती है। विनय को जनता के लिए आत्म-बलिदान करना पड़ता है और सोफिया गंगा में समा जाती है। इस प्रकार यह प्रणय-आख्यान समाप्त होता है।
सुभागी भैरों की कहानी
सुभागी और भैरों की उपकथा पांडेपुर के ग्रामीण जनों की स्वार्थपरता, पारस्परिक कलह, ईर्ष्या-द्वेष, सहयोग एवं सहानुभूति की कहानी है, जो गाँव के सामूहिक जीवन का सजीव चित्र उभारकर विलीन हो जाती है ।
राजा महेन्द्र कुमार और इन्दु की कहानी
यह उपकथा आधुनिक दाम्पत्य जीवन के वैषम्य की झलक देती है, पति-पत्नी के विचारों की विषमता ही कटुता का कारण बनती है, जिसके फलस्वरूप दोनों अलग हो जाते हैं।
ताहिर अली की कहानी
अन्तिम उपकथा ताहिरअली और उसके सम्मिलित परिवार से सम्बद्ध है। ताहिरअली जॉन सेवक के कारिन्दा हैं, तीस रुपये प्रति माह वेतन पाते हैं, जिससे वह अपने आठ सदस्यों के परिवार की उदर-पूर्ति करते हैं! पत्नी कुल्सुम, लड़का साबहर और लड़की नसीमा, दो सौतेली माताएँ—जैवन और रक्रिया तथा माहिर, जाहिर, जाबिर-तीन सौतेले भाई यह उनके परिवार के सदस्य हैं। इस आशा से कि माहिर, जो उनका सौतेला भाई है, दरोगा बनेगा तो उनका बोझ हल्का हो जायेगा, वे अपना और अपने बच्चों का पेट काटते हैं, परन्तु उसे शिक्षा दिलवाते हैं। यही नहीं, उसके लिए उन्हें अपनी नीयत भी डिगानी पड़ती है। वे गबन करते हैं और जेल जाते हैं। माहिर अली दरोगा बनकर भी उनके बच्चों की कोई मदद नहीं करता, जो कि बाप के जेल जाने के कारण अनाथ हो गये हैं। कुल्सुम को अलग रहना पड़ता है और कपड़े सीकर गुजर करनी पड़ती है। जेल से लौटने पर ताहिर को माहिर अली की बेवफाई मालूम होती है, परन्तु वह उसे खरी-खोटी सुनाकर तसल्ली कर लेते हैं। आखिर जिल्दसाजी का काम करके पेट भरते हैं। इस प्रकार सम्मिलित परिवार-प्रणाली पर आक्षेप करते हुए यह उपकथा स्वतन्त्र-सी कहानी बन गई है, इसका आदि-अन्त स्वयं में सिमट जाता है।
रंगभूमि भारतीय जीवन का एक महाकाव्य-उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि कथानक की दृष्टि से 'रंगभूमि' भारतीय समाज का महाकाव्य है, इसमें समाज का यथार्थ रूप उभरकर सामने आता है। इस प्रकार रंगभूमि एक ऐसा उपन्यास है जिसे हर व्यक्ति को पढ़ना चाहिए। यह उपन्यास हमें हमारे समाज की कमजोरियों और ताकतों के बारे में सोचने पर मजबूर करता है। यह उपन्यास हमें एक बेहतर समाज बनाने के लिए प्रेरित करता है।
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