सारा आकाश उपन्यास में सामाजिक चेतना राजेंद्र यादव नारी पर पुरुषों द्वारा किये जाने वाले तमाम अत्याचारों के पीछे नारी की अहम भूमिका होती है इसीलिए कहा
सारा आकाश उपन्यास में सामाजिक चेतना | राजेंद्र यादव
राजेन्द्र यादव का उपन्यास सारा आकाश,भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं को बारीकी से उजागर करने वाला एक सामाजिक दर्पण है। उपन्यास में लेखक ने समाज की जटिलताओं, रूढ़ियों और असमानताओं को बड़ी ही खूबसूरती से चित्रित किया है।
उपन्यास के माध्यम से लेखक ने संयुक्त परिवार की जटिलताएं, दहेज प्रथा, बेरोजगारी, सामाजिक असमानता, नारी का दमन और रूढ़िवादी विचारधारा जैसी कई सामाजिक समस्याओं को उजागर किया है। शिरीष भाई साहब के माध्यम से लेखक ने संयुक्त परिवार में रहने की मुश्किलों को बखूबी बयान किया है। समर और प्रभा के विवाह में दहेज को लेकर पैदा हुए तनाव ने दहेज प्रथा की गंभीरता को उजागर किया है। समर जैसे कई युवाओं की बेरोजगारी ने उनके जीवन में निराशा और हताशा भर दी है। उपन्यास में विभिन्न सामाजिक वर्गों के बीच की असमानता को स्पष्ट रूप से दिखाया गया है। प्रभा के चरित्र के माध्यम से लेखक ने नारी के दमन को उजागर किया है। उपन्यास में रूढ़िवादी विचारधारा और परंपराओं का अंधा अनुसरण भी एक प्रमुख विषय है।
सारा आकाश उपन्यास में यथार्थवादी चित्रण, जटिल चरित्र और सामाजिक चेतना का पुट है। उपन्यास की भाषा सरल और सहज है, जिससे इसे आसानी से समझा जा सकता है। यह उपन्यास हमें समाज की उन समस्याओं के बारे में सोचने पर मजबूर करता है, जिनके बारे में हम अक्सर चुप रहते हैं। उपन्यास के माध्यम से लेखक ने हमें यह संदेश दिया है कि हमें समाज में व्याप्त इन बुराइयों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।
राजेन्द्र यादव द्वारा लिखित उपन्यास 'सारा आकाश' का कथानायक समर है। उपन्यासकार ने उसका चरित्र यथार्थ के धरातल पर चित्रित किया है। उसमें महत्वाकांक्षा, अहंभाव, मिथ्या अभिमान व आत्म विश्लेषण जैसे गुण हैं, जो उसे परम्परागत व्यक्ति सिद्ध करते हैं। वहीं दूसरी ओर समर एक संघर्षशील, संवेदनशील व प्रगतिवादी विचारों का भी समर्थन करने लगता है। समर के व्यक्तित्व में प्रगतिवादी, आधुनिक युग के विचारों को संबल उसके मित्र शिरीष से प्राप्त होता है, क्योंकि शिरीष आधुनिकता में विश्वास रखता है और समय-समय पर समर को भी वैचारिक दृष्टि को अपनाने के लिए प्रेरित करता है। तभी समर उपन्यास के उत्तरार्द्ध भाग में अपने मित्र शिरीष और दिवाकर के विचारों से प्रेरित होकर अपनी पत्नी प्रभा का साथ देने के लिए खुद को तैयार कर पाता है।शिरीष समाज और संस्कृति में सकारात्मक परिवर्तन चाहता है और यही परिवर्तन समर के विचारों में भी आता है क्योंकि समर का चरित्र उपन्यास के दो अलग-अलग भागों में अलग प्रकृति का है। उपन्यास के पहले भाग में समर एक उद्दण्ड क्रोधी व अहंवादी पुरुष दिखाई देता है। परन्तु दूसरे भाग में आत्मविश्लेषण के कारण परिवर्तित होता हुआ दिखाई देता है। उपन्यासकार ने उपन्यास के प्रमुख पात्र समर के माध्यम से आधुनिक युग के युवाओं को यह संकेत दिया है कि जब तक युवक पूर्ण शिक्षित व स्वरोजगार के योग्य न हो जाए, तब तक उन्हें गृहस्थ बना देना उनके विरुद्ध एक घोर अपराध है और हमें रुढ़िवादी गली-सड़ी मान्यताओं व अपनी संस्कृति का समर्थन उसी सीमा तक करना चाहिए जहाँ तक वो मानव और मानवता के विरोध में न खड़ी हो।
'सारा आकाश' उपन्यास में परम्परागत रुढ़िवादी परिवारों में नारी के द्वारा नारी के उत्पीड़न, अपमान व शोषण की कथा चित्रित हुई है। उपन्यास की नायिका प्रभा और मुन्नी इस शोषण का शिकार नारी पात्र हैं। प्रभा एक शिक्षित व सुशील युवती है। प्रभा मैट्रिक पास है तथा देखने में भी सुन्दर है। परम्परागत संयुक्त परिवार में उसकी जेठानी उसे अपना शिकार बनाने का पूरा मन बना लेती है।भाभी अर्थात् प्रभा की जिठानी को यह तथ्य भी सहन नहीं हो पाता कि कोई उसकी देवरानी प्रभा द्वारा बनाए गए खाने की प्रशंसा करे । उसके पति धीरज द्वारा बनाए गए खाने को अमृत-तुल्य कहकर प्रशंसा की गई थी अतः भाभी ईर्ष्या के कारण यह निश्चय कर लेती है कि जिस दिन प्रभा द्वारा प्रथम दिन खाना बनाया जाने वाला होगा; उसी दिन परिवार के सभी लोगों द्वारा प्रभा की निंदा होनी चाहिए। इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए वह प्रभा द्वारा पकाई गई दाल में चुपके से एक मुट्ठी नमक डाल देती है और बाद में वह नमक-मिर्च लगाकर कई बार दोहराती है कि या तो फ़ैशन ही कर लो, या घर का काम काज ही सीख लो।
प्रभा को पर्दा करने अर्थात् घूँघट निकालने की सीख व्यर्थ दी जाती है तो उसे निर्लज्ज कहकर ताने कसे जाते हैं। प्रभा को अम्मा जी और भाभी द्वारा बाँझ-बाँझ कहकर ताने कसे जाते हैं। भाभी अपनी बेटी के पास प्रभा को झाँकने भी नहीं देतीं वे प्रभा की छाया से भी अपनी बच्ची को बचाती हैं।प्रभा का प्रात:काल से लेकर रात ग्यारह साढ़े ग्यारह बजे तक घर की व्यवस्था, खान-पान और रख-रखाव करने के बावजूद उसका कोई मान-सम्मान नहीं है। उसे आए दिन दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता है।उपन्यास में दहेज उत्पीड़न और नारी द्वारा नारी के शोषण का शिकार मुन्नी की स्थिति प्रभा से भी अधिक दुःखद है। समर कहता है - "हमारे घर में मुन्नी ही सबसे अभागिन है। मुझसे दो साल छोटी है। दो तीन साल पहले, सोलह-सत्रह की उमर में उसकी पढ़ाई छुड़ाकर शादी कर दी गई है।"
मुन्नी की सास दहेज कम होने के कारण उस पर तरह-तरह के अत्याचार करती है। मुन्नी के पति ने एक रखैल रख ली थी। घर का सारा काम और उस रखैल की भी सेवा मुन्नी से ही कराते थे और उसे खाने के लिए भरपेट भोजन भी नहीं देते थे।मुन्नी को जब दूसरी बार ससुराल भेजा जाता है। जहाँ उसका दुःखद अन्त होता है। उपन्यास में सांवल की बहू और शिरीष की बहन का प्रसंग भी नारी उत्पीड़न की ओर संकेत करता है।उपन्यासकार ने उपन्यास में बताया है कि हमारे परम्परागत मध्यमवर्गीय परिवारों में सड़ी-गली मान्यताओं, जड़ रुढ़ियों, प्राणहीन पम्पराओं का प्रकोप अधिक है। इन परम्पराओं के पीछे लगकर अपना आज तो नष्ट करते ही हैं, भविष्य के मार्ग में भी काँटे बिछाते हैं।
नारी पर पुरुषों द्वारा किये जाने वाले तमाम अत्याचारों के पीछे नारी की अहम भूमिका होती है इसीलिए कहा जाता है कि नारी ही नारी के कष्टों का कारण है अतः हमारे सामाजिक ढाँचे में परिवर्तन की आवश्यकता है। यदि हमारे देश व समाज की नारी समर्थ, स्वस्थ और सशक्त होंगी तभी समाज और राष्ट्र उन्नत व विकसित हो पाएगा।
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