सूरज का सातवाँ घोड़ा उपन्यास में व्यक्त समस्याएं मध्यवर्गीय जीवन की जटिलताओं और संघर्षों को बड़ी गहराई से चित्रित करता है। इस उपन्यास में कई सामाजिक औ
सूरज का सातवाँ घोड़ा उपन्यास में व्यक्त समस्याएं
धर्मवीर भारती का उपन्यास "सूरज का सातवाँ घोड़ा" मध्यवर्गीय जीवन की जटिलताओं और संघर्षों को बड़ी गहराई से चित्रित करता है। इस उपन्यास में कई सामाजिक और व्यक्तिगत समस्याओं को उठाया गया है, जो आज भी प्रासंगिक हैं।
हमारा देश भारत 15 अगस्त सन् 1947 को स्वतंत्र हुआ। यह स्वतंत्रता हमें हजारों-लाखों लोगों के बलिदान के बाद प्राप्त हुई। स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात देश की स्थिति शोचनीय हो गई। ऐसी मोहभंग की स्थिति में डॉ. धर्मवीर भारती ने 'गुनाहों का देवता' और 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' नामक उपन्यासों की रचना की। भारती जी मार्क्सवाद के इस सिद्धान्त से सहमत थे कि अमीर-गरीब की असमानता मिटनी चाहिए, पर सत्ता और प्रतिष्ठा के संरक्षण के साथ ही संघर्षरत रहने की दोमुँही नीति से वे असहमत थे। वे अपने देखे भोगे समाज की घुटन, निराशा और अंधकार से आहत होकर ही 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' का सृजन करते हैं। लेखक ने प्रेम कहानियाँ इसलिए लिखीं कि लोग इन्हें रुचि से पढ़ते हैं, अन्यथा वे युगीन समस्याओं को ही अभिव्यक्ति देना चाहते थे- "देखो, ये कहानियाँ वास्तव में प्रेम नहीं वरन उस जिन्दगी का चित्रण करती हैं, जिन्हें आज का निम्न-मध्यवर्ग जी रहा है। उसमें प्रेम से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है आज का आर्थिक संघर्ष, नैतिक विश्रृंखलता और इसीलिये इतना अनाचार, निराशा, कटुता और अंधेरा मध्यवर्ग पर छा गया है।"
भारतीय समाज विविधताओं का समाज है। यहाँ वर्ग, समाज और व्यक्ति की अपनी समस्याएँ हैं। झील पर जमी हुई आधा इंच बर्फ की परत सभी को दिखाई पड़ती है, लेकिन उसके नीचे प्रवाहित और आंदोलित अथाह जल का बोध साहित्यकार रूपी गाइड ही कराता है। लेखक धर्मवीर भारती ने इस उपन्यास के नायक माणिक माध्यम से समाज रूपी उस झील की ओर ध्यान आकर्षित किया है, जो कीचड़, गन्दगी, मुल्ला के अंधेरे और मौत से भरी है। या तो दूसरा रास्ता बनाओ, नहीं तो डूब जाओ। लेकिन आधा इंच ऊपर जमी बरफ कुछ काम न देगी। एक ओर नये लोगों का यह रोमानी दृष्टिकोण, यह भावुकता, दूसरी ओर बूढ़ों का यह थोथा आदर्श और झूठी अवैज्ञानिक मर्यादा सिर्फ आधी इंच बरफ है, जिसने पानी की खूँखार गहराई को छिपा रखा है।" इस प्रकार हमारा समाज समस्याओं से भरा पड़ा है। 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' शीर्षक लघु उपन्यास में निरूपित प्रमुख समस्याएँ निम्नांकित हैं-
आर्थिक विषमता की समस्या
कार्ल मार्क्स ने समाज के दो वर्ग-शोषक और शोषित किए हैं। धनी और पूँजीपति वर्ग के लोग शोषक हैं और कृषक, श्रमिक व कर्मचारी वर्ग शोषित । सदियों के शोषण ने कुछ लोगों को अत्यधिक धनी बना दिया है जबकि अधिकांश समाज निर्धन और अकिंचन बन गया है। कालिदास ने लिखा है कि निर्धनता के कलंक के सामने चन्द्रमा का कलंक भी कुछ नहीं है। निर्धनता समाज के माथे पर लगा एक अभिशाप है। 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' उपन्यास में निम्न-मध्यवर्ग अर्थात निर्धन समाज की समस्याएँ ही प्राथमिकता देकर उठाई गई हैं। जमुना के पिता गरीब हैं, इसलिए आवश्यक दहेज नहीं जुटा पाते, फलस्वरूप उसका विवाह एक वृद्ध तिहाजू जमींदार से करना पड़ता है। गरीबी के कारण ही माणिक मुल्ला और तन्ना को अपनी पढ़ाई बीच में ही रोक देनी पड़ती है। तन्ना दो-दो जगह नौकरी करता है ताकि परिवार का पालन-पोषण कर सके और बहनों का विवाह हो जाये। आर्थिक विपन्नता के कारण ही उसकी सास उसकी पत्नी लिली को अपने घर ले जाती है। बीमार होने पर भी तन्ना को डाक बाँटने के लिये शहर-शहर भटकना पड़ता है।
निर्धनता के कारण ही माणिक मुल्ला के भाई उसे फीस देने से मना कर देते हैं। अतः माणिक मुल्ला को सत्ती के सामने अपना दुखड़ा रोना पड़ता है। स्वयं सत्ती आर्थिक अभावों के कारण मजदूरों जैसा श्रम करती है और अंत में भीख माँगती दिखाई देती हैं। ये सभी निर्धनताजन्य अनुभव ही हैं जिसके कारण जमुना अपने माँ-बाप को उधार नहीं देती और झूठ बोलकर टाल देती है। वह कहती है-"इतना तो पहले ही लुट गया है, अब अगर जमुना भी माँ-बाप पर लुटा दे, तो अपने बाल-बच्चों के लिए क्या बचाएगी? अरे, माँ-बाप कै दिन के हैं? उसे सहारा तो बच्चे ही देंगे ।"
लेखक धर्मवीर भारती आर्थिक विषमता को सबसे बड़ी समस्या मानते हैं। प्रकाश के शब्दों में-"जमुना निम्न-मध्यवर्ग की भयानक समस्या है। आर्थिक नींव खोखली है। उसकी वजह से विवाह, परिवार, प्रेम-सभी की नीवें हिल गई हैं। अनैतिकता छाई हुई है पर सब उस ओर से आँखें मूँद हैं।"
अनमेल विवाह की समस्या
गृहस्थी की गाड़ी तभी सरलता से आगे बढ़ पाती है, जब पत्नी और पति के मध्य आय, शिक्षा, स्वभाव आदि में सामंजस्य हो। अनमेल जीवन विभिन्न समस्याओं को जन्म देता है। उदाहरण के लिए पर्याप्त दहेज जुटा पाने में असमर्थ माँ-बाप जमुना का विवाह तिहाजू जमींदार से कर देते हैं। आर्थिक अभावों में पली जमुना कुछ दिनों तक तो वस्त्र और आभूषणों में सुख खोजती है, पर बूढ़े पति से काम-वासना की तृप्ति और संतान तो नहीं मिल सकती। संतान की लालसा में किए गए अनुष्ठान से न केवल संतान मिलती है बल्कि रामधन ताँगे वाले का साहचर्य भी प्राप्त होता है। पति की मृत्यु उसे अकाल वैधव्य देती है। यह अलग बात है कि वह रामधन के रूप में वास्तविक आश्रय पा लेती है। लिली और तन्ना में अनमेल शिक्षा और धन के सन्दर्भ में है । तन्ना इन्टर के प्रथम वर्ष में ही फेल हो गये थे और लिली इंटर पास है। तन्ना गरीब है और लिली अमीर माँ की बेटी है। तन्ना सूखा कंकाल है और लिली अनिंद्य सुन्दरी। इस स्थिति में दोनों में सामंजस्य किसी प्रकार भी संभव नहीं है। लिली तन्ना से गंदी छिपकली की तरह घृणा करती है और उसे छोड़कर मायके चली जाती है।
भेदभाव की समस्या
हिन्दू समाज विविध प्रकार की विषमताओं और विभिन्नताओं से ग्रस्त है। सब 'मैं' के नशे में चूर हैं। किसी को धन का, किसी को शक्ति का और किसी को ऊँची जाति का घमण्ड है। इससे भेदभाव और ऊँच-नीच की समस्या उत्पन्न होती है। तन्ना सजातीय है, फिर भी जमुना की माँ तन्ना से विवाह के लिये तैयार नहीं-"तन्ना थोड़े नीचे गोत का था और जमुना का खानदान सारी बिरादरी मैं खरे और ऊँचे होने के लिये विख्यात था, अतः जमुना की माँ की राय न पड़ी।' जमुना के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, फिर भी जाति-गोत्र सम्बन्धी भेदभाव विद्यमान है। माँ यहाँ तक कहती है-"रास्ता नहीं सूझेगा तो लड़की पीपल से ब्याह देंगे, पर नीचे गीत वालों को नहीं देंगे।" सत्ती और माणिक के प्रेम की भनक जब उसके बड़े भाई के कानों में पड़ती है, तो वे भी भेदभाव की बातें करते हैं। ऊँच-नीच समझाते हुए माणिक से कहते हैं-"इन छोटे लोगों को मुँह लगाने से कोई फायदा नहीं। ये सब गन्दे और कमीने लोग होते हैं। माणिक के खानदान का इतना नाम है।" इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रत्येक समाज की अपनी मर्यादाएँ हैं, चरित्र हैं, ऐसी स्थिति में भेदभाव होना स्वाभाविक ही है।
नारी शोषण की समस्या
सैद्धान्तिक रूप से हिन्दू समाज स्त्री को देवी मानता है। आदिपुरुष मनु ने लिखा है-यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता। अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवता बसते हैं। इसके विपरीत व्यवहार में नारी की स्थिति द्वितीय श्रेणी की है। खान-पान, शिक्षा आदि सभी स्तरों पर उसके साथ भेदभाव किया जाता है और उसका अधिक से अधिक शोषण भी किया जाता है। जमुना पन्द्रह वर्ष की ही थी, जब उसका स्कूल जाना बन्द कर दिया गया। लिली के साथ तन्ना के विवाह के लिए महेसर दलाल एक शर्त रखते हैं कि इंटर में शिक्षारत लिली की शिक्षा बंद करानी होगी। सत्ती किशोरी होते ही अपने पालनकर्त्ता का व्यवसाय सँभालने लगती है- "चमन ठाकुर कारखाने के बाहर खाट डालकर नारियल का हुक्का पीते रहते थे और सत्ती अन्दर काम करती रहती थी।" सत्ती का शोषण दुकानदार, चमन ठाकुर और माणिक करते हैं। जिसको बेटी बनाकर तीन-चार वर्ष की आयु से पाल-पोसकर बड़ा किया, उसके युवा होते ही चमन ठाकुर की निगाह में खोट आ जाता है। जब स्वयं को दाल नहीं गलती तो पाँच सौ रुपये में उसे महेसर दलाल को बेच देता है। माणिक मुल्ला भी उसका शोषण करता है। अपने अभावों का वास्ता देकर पैसे झटक ले जाता है और जब साथ निभाने की स्थिति आती है तो भाई की बातें उचित लगने लगती हैं-" उन लोगों का क्या मुकाबला, दोनों की सोसायटी अलग मर्यादा अलग, पर माणिक मुल्ला सत्ती से कुछ कह भी नहीं पाते थे, क्योंकि उन्हें पढ़ाई भी जारी रखनी थी।"
जीवन मूल्यों की रक्षा की समस्या
रात के बाद दिन और अन्धकार के बाद प्रकाश का आगमन सार्वभौम सत्य है। लेखक ने निम्न-मध्यवर्गीय समाज का यथार्थ और मर्मस्पर्शी चित्रण कर जीवन मूल्यों की रक्षा की समस्या का संकेत दिया है। वह किसी भी पात्र माणिक मुल्ला, तन्ना, जमुना या सत्ती आदि के चरित्र के माध्यम से सुझाव या आदर्श नहीं प्रस्तुत करता, बल्कि इस बात की आवश्यकता का बोध कराता है कि समस्या गहरी है। नैतिकता और जीवन मूल्यों की रक्षा करनी ही होगी। वह लिखता है- "अनैतिकता छायी हुई है। पर सब उस ओर से आँखें मूँदे हैं। असल में पूरी जिन्दगी की व्यवस्था बदलनी होगी।"
व्यभिचार की समस्या
व्यभिचार एक शाश्वत समस्या है। नवयुवती जमुना का माणिक मुल्ला के प्रति आकर्षण और उससे उत्पन्न व्यभिचार एक बुराई है, ऐसा जमुना भी मानती है और माणिक भी। विवाहित तन्ना से जमुना को ऐसी-वैसी बातें भी दूषित मन का ही परिचय देती हैं। महेसर दलाल तो स्पष्ट रूप से व्यभिचारी है, जिसने बच्चों की देखभाल के नाम पर बहन को घर में रख लिया है। तन्ना की विधवा सास के घर भी वह अपनी रातें रंगीन करता है। बाद में सत्ती के पीछे हाथ धोकर पड़ जाता है। पाँच सौ रुपये देकर चमन ठाकुर से उसे खरीद लेता है। सबसे बड़ा व्यभिचारी है चमन ठाकुर, जो अपने द्वारा पाली गई पुत्री का ही शोषण करने लगता है - "यह मेरा चाचा बनता है। इसीलिये पाल पोसकर बड़ा किया था?" जमुना और रामधन का सम्बन्ध भी व्यभिचार ही है और सत्ती तथा जमुना की संतानें भी व्यभिचार से उत्पन्न हैं।
किसी भी युग के जागरूक साहित्यकार के लिए यह संभव ही नहीं है कि वह युगीन समस्याओं को अनदेखा कर सके। डॉ. धर्मवीर भारती ने 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' उपन्यास में उन समस्याओं को मार्मिक रूप में प्रस्तुत किया है, जो हमारे समाज को भीतर ही भीतर खोखला किये जा रही हैं। उन्होंने युगीन समस्याओं को सामने रखते हुए संभावनाओं के क्षितिज भी खोले हैं।
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