तमस उपन्यास का नामकरण सार्थक है भीष्म साहनी तमस अपने आप में एक गहन अर्थ रखता है और यह उपन्यास की कथावस्तु के साथ अत्यंत सार्थक ढंग से जुड़ा हुआ है।
तमस उपन्यास का नामकरण सार्थक है | भीष्म साहनी
भीष्म साहनी का उपन्यास "तमस" निस्संदेह हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण रत्न है। इस उपन्यास का शीर्षक "तमस" अपने आप में एक गहन अर्थ रखता है और यह उपन्यास की कथावस्तु के साथ अत्यंत सार्थक ढंग से जुड़ा हुआ है।
किसी भी रचना का नाम विषय-वस्तु, उद्देश्य अथवा कथानक के नायक के नाम के आधार पर होता है। हिन्दी उपन्यासों में नामकरण के विविध रूप प्राप्त होते हैं। नायक अथवा नायिका के नाम पर प्रायः ऐतिहासिक उपन्यासों का नामकरण किया गया है, जैसे सिंह सेनापति, माधव जी सिंधिया, महारानी दुर्गावती, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई आदि। सामाजिक उपन्यासों का नामकरण भी नायिकाओं के नाम पर प्राप्त होते हैं, जैसे निर्मला, चित्रलेखा आदि। कुछ नामकरण ऐसे भी देखे गये, जिनसे उपन्यास और विषय-वस्तु का बिना पढ़े हुए ज्ञान नहीं हो पाता। जैसे रघुवीरशरण मित्र का 'आग और पानी।' इसमें चाणक्य के कूटनीति सम्बन्धी कार्यों की कथा है। तमस उपन्यास के नामकरण की सार्थकता निम्नलिखित रूपों मे समझ सकते हैं -
तमस की घटना प्रधानता
तमस उपन्यास घटना प्रधान है। इसमें साम्प्रदायिक दंगों से सम्बन्धित घटनाओं का वर्णन है। घटनाएँ शहर से लेकर कस्बों और गाँवों तक फैली हुई हैं। कथानक में सभी जगह साम्प्रदायिक भावना घटनाओं का तमस (अन्धकार) छाया हुआ है। इसलिए 'तमस' नाम अपने भीतर उपन्यास की सभी घटनाओं को समेट लेता है। कथानक का प्रारम्भ घुटनपूर्ण वातावरण से होता है। सलोत्तरी साहब ने चुंगी के जमादार मुरादअली के द्वारा सुअर मरवाया है। उनका उद्देश्य दंगा कराना था। इस कार्य के लिए उसने पाँच रुपया देकर नत्थू को नियुक्त किया। नत्थू एक बन्द कोठरी में रात भर सुअर मारने के प्रयत्न में लगा रहा। वह सवेरे तक सुअर को मार सका। कोठरी का वातावरण अन्धकार पूर्ण है। अर्थात् भीषण तमस से भरा हुआ है।
"कोठरी के अन्दर कचरा मिल जाने पर सुअर उसी में खो गया था और नत्थू आश्वस्त होकर देर तक कोठरी के बाहर बैठा बीड़ियाँ फूँकता और अँधेरा पड़ जाने का इंतजार करता रहा था। बहुत देर के बाद जब रात गहरने लगी थी, तो नत्थू कोठरी के अन्दर घुसा था। दीये की मद्धिम, नाचती-सी रोशनी में नत्थू ने देखा कि कचरा सारी कोठरी में फैला हुआ है और उसमें से सड़ांध उठ रही है। तभी इस मोटे बदसूरत सुअर को देखकर उसका दिल बैठ गया और नत्थू मन-ही-मन खीझने पछताने लगा था कि उसने यह गन्दा जोखिम भरा काम अपने सिर पर क्यों उठा लिया है।"बन्द कोठरी में रात भर संघर्ष करते हुए सुअर का मारना कितना घुटन भरा काम । यह कथानक के प्रारम्भ में ही स्पष्ट हो जाता है। इसके पश्चात् सारी घटनाओं का विकास तमस के ही भयानक वातावरण में होता है।
इसी प्रकार कांग्रेस पार्टी की तू-तू में में सामने आती है और आगे सूचना मिलती है कि सुअर को मस्जिद की सीढ़ियों पर डलवा दिया गया है और दूसरे सम्प्रदाय वालों ने गाय काटकर धर्मशाला के सामने डलवा दी है। अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर रिचर्ड की शरारत से यह कार्य साम्प्रदायिक दंगों की पृष्ठभूमि के रूप में किया गया और तमस अर्थात् अन्धकार में डूबे हुए दोनों सम्प्रदाय के लोग आपस में कटने-मरने के लिए तैयार हो गये।
साम्प्रदायिक का तमस
यहाँ से साम्प्रदायिक आक्रोश का तमस अर्थात् अन्धकार घना होता जाता है। दोनों सम्प्रदाय के लोग दंगे की तैयारी में लग जाते हैं। दंगा आरम्भ हो जाता है, पूरे शहर में मार-काट, लूट-मार, आगजनी, हिंसा और विनाश का घना तमस (अन्धकार) छा जाता है।
शहर में भयानक साम्प्रदायिक दंगा होने के कारण कैसा भयानक तमस अन्धकार छा जाता है। इसके समर्थन में निम्नलिखित उदाहरण देखना पर्याप्त होगा- "दिन के उजाले में शहर अधमरा-सा था, मानो उसे साँप सूँघ गया हो। मण्डी अभी भी जल रही थी, म्युनिसिपैलिटी के फायर ब्रिगेड ने उसके साथ जूझना कब का छोड़ दिया था। उसमें से उठने वाले धुएँ से आसमान में कालिमा पुत रही थी, जबकि रात के वक्त आँसमान लाल हो रहा था। सत्रह दुकानें जलकर राख हो चुकी थीं।"
दंगे के बाद की सुबह
दुकानें बन्द थीं। दूध-दही की दुकानें कहीं-कहीं खुली थीं और उनके निकट दो-दो चार-चार आदमी खड़े रात की घटनाओं के बारे में कयास लगा रहे थे। मार-काट के बारे में अफवाहें ज्यादा थीं, ग्वालमण्डी वाले कहते, रत्ता में दंगा हुआ है; रत्ता वाले कहते, कमेटी मुहल्ले में दंगा हुआ है।
नया मुहल्ला के चौक में एक घोड़ा मरा हुआ पाया गया था। शहर के बाहर गाँव को जाने वाली सड़क पर एक अधेड़ उम्र के आदमी की लाश मिली थी। कॉलिज रोड पर जूतों की एक दुकान और साथ में बैठने वाले दर्जी की दुकान लूट ली गयी थी। एक और लाश शहर के सिरे पर एक कब्रिस्तान में मिली थी। लाश किसी अधेड़ उम्र के हिन्दू की थी और उसकी जेब में से कुछ रेजगारी और दहेज के कपड़ों की एक फेहरिस्त मिली थी।
मुहल्लों के बीच लीकें खिच गयी थीं, हिन्दुओं के मुहल्ले में मुसलमान की जाने की अब हिम्मत नहीं थी, और मुसलमानों के मुहल्ले में हिन्दू-सिख अब नहीं आ-जा सकते थे। आँखों में संशय और भय उतर आये थे । गलियों के सिरों पर, और सड़कों के नाकों पर जगह-जगह कुछ लोग हाथों में लाठियाँ और भाले लिये और मुश्कें बाँधे, छिपे बैठे थे। जहाँ कहीं हिन्दू और मुसलमान पड़ौसी एक-दूसरे के पास खड़े थे, बार-बार एक ही वाक्य दोहरा रहे थे। "बहुत बुरा हुआ है, बहुत बुरा हुआ है।" इससे आगे बातचीत बढ़ ही नहीं पाती थी। वातावरण में जड़ता-सी आ गयी थी। सभी लोग मन-ही-मन जानते थे कि यह काण्ड यहीं पर खत्म होने वाला नहीं है, लेकिन आगे क्या होगा, किसी को मालूम नहीं था।
साम्प्रदायिक दंगे के प्रसार
साम्प्रदायिक दंगे के फैलने के साथ-साथ तमस अर्थात् अन्धकार का वातावरण घना होता चला जाता है। नत्थू के हृदय का अन्तर्द्वन्द्व घोर तमस अर्थात् अन्धकार का ही रूप है। वह यह सोचकर मानसिक व्यथा और घुटन में डूब गया है कि उसके सुअर मारने के कारण ही यह भयंकर विनाश हो रहा है।
उपन्यास के उत्तरार्द्ध में साम्प्रदायिक दंगे के फैलने का तमस अर्थात् अन्धकार शहर से कस्बे और गाँवों तक पहुँच गया है। गाँवों में सिक्ख और मुसलमान सम्प्रदाय के लोग रहते हैं। दोनों ओर से मोर्चाबन्दी कर ली गयी है। खानपुर गाँव में भीषण दंगा शुरू हो गया है। हरनाम सिंह की दुकान लूट ली गयी है और घर जला दिया जाता है। वह अपनी पत्नी बन्तो सहित भागकर ढोक मुरीदपुर पहुँचता है और एक मुस्लिम परिवार में शरण लेता है। गृह स्वामिनी राजो का पति और पुत्र बलवाइयों के मुखिया हैं। उनसे राजो को शरणागतों के अनिष्ट का भय होता है। राजो उनको बन्द टाँड और फिर भुस से भरी बुखारी में छिपा देती है। यहाँ बन्तो और हरनाम सिंह प्राणों को घोंट देने वाले तमस अर्थात् अन्धकार की यातना सहन करते हैं।
दंगाइयों द्वारा ग्रामों का विनाश, इकबाल सिंह को यातना देकर मुसलमान बनाया जाना, अपनी इज्जत बचाने के लिए सिक्ख औरतों का कुएँ में कूद पड़ना आदि घटनाएँ तमस अर्थात् अन्धकार के वातावरण को घना कर देती हैं। अन्त में जो अमन-कमेटी बनती है, उसमें साम्प्रदायिक भावना के लोग ही उभरकर सामने आते हैं, यहाँ भी अज्ञान रूपी तमस अर्थात् अन्धकार ही छाया हुआ है। यह साम्प्रदायिकता का तमस अर्थात् अन्धकार ही आगे चलकर देश का बँटवारा करता है।
साम्प्रदायिक दंगे के निशान
"बहुत-सी लाशें कस्बे के अन्दर जगह-जगह बिखरी पड़ी थीं। उन्हें ठिकाने लगाने का अभी प्रश्न ही नहीं उठता था। खालसा स्कूल के चपरासी की लाश स्कूल के आँगन में पड़ी थी। बलवे के दिन, जब सभी लोगों की गुरुद्वारे में संगतें जमा होने लगी थीं, चपरासी को हिदायत की गयी थी कि वह स्कूल मैं ही डटा रहे। चपरासी की पत्नी जिन्दा थी, लेकिन उसे नम्बरदार ने घर पर रख लिया था, इसलिए सही-सलामत थी । माई भागाँ की लाश उसके घर के अन्दर ही आँगन में पड़ी थी। माई भागाँ ने मरकर भी अपने जेबर बचा लिये थे, क्योंकि वे दीवार में गड़े थे और आक्रमणकारियों को उनके बारे में कुछ भी पता नहीं चल पाया था। माई भागाँ का घर आग की भेंट होने से भी बच गया था क्योंकि पास वाला घर रहीम तेली का था। माई भागाँ की एक झापड़ पड़ने से ही जान निकल गयी थी। बूढ़ा सौदागर सिंह भी मरा पड़ा था, उसे भी लोग गुरुद्वारे में पहुँचाना भूल गये थे ।
कस्बे के बाहर का दृश्य
कुछ लाशें कस्बे के बाहर भी जगह-जगह पड़ी थीं। एक लाश कुएँ के पास औंधी पड़ी थी। यह आदमी भूल से मारा गया था। यह कस्बे का भिश्ती अल्लाहरखाँ था जो झगड़ा होने पर भी अपनी मश्क लेकर चाँदनी रात में कुएँ पर चला आया था। शेख के घर में पानी की कमी हो गयी थी और बच्चे पानी माँग रहे थे। तभी भिश्ती मश्क उठाकर पानी लेने आ गया था और शेख के घर की छत पर से ही सीधा अचूक निशाना उसके सिर पर लगा था। एक लाश किसी सरदार की थी जो शहर से आने वाली सड़क पर पड़ी थी। फतहदीन नानवाई, जिसकी दुकान गुरुद्वारे को जाने वाली गली के बायें सिरे पर पड़ती थी, स्वयं तो बच गया था लेकिन उसकी दुकान पर काम करने वाले दोनों छोटे-छोटे लड़के मारे गये थे। झगड़ा होने के बाद भी ये बच्चे भाग-भागकर दुकान में से बाहर आ जाते थे। कभी एक-दूसरे के पीछे भागने लगते, कभी गली में खेलने लगते थे। इसके अलावा खालसा स्कूल में से आग के शोले अभी भी निकल रहे थे। बायीं गली के सिरे पर नदी के ऐन ऊपर वाले हिस्से में सिक्खों के सभी मकान आग की भेंट कर दिये गये थे। दूसरी ओर कसाइयों की तीनों दुकानें, और तेली मुहल्ले के तीन-चार मुसलमानों के घर अभी भी जल रहे थे।"
धर्म के नाम पर तमस अर्थात् अन्धकार
इस पूरे उपन्यास में धर्म के नाम पर तमस अर्थात् अन्धकार फैला हुआ है। धर्म का अर्थ तो धारण करना है। धर्म तो भाईचारा सिखाता है, धर्म आपस में बैर, दुश्मनी और शत्रुता की शिक्षा नहीं देता है। उर्दू के प्रसिद्ध शायर अल्लामा इकबाल ने लिखा है- मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना। हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा॥
धर्म के नाम पर सम्प्रदाय फैल गये हैं। सम्प्रदाय को उर्दू में फिरका कहा जात है। ये सम्प्रदाय वाले अथवा फिरका परस्त लोग वैसे चाहे आपस लड़ें और शत्रुता की व्यवहार करें, पर दूसरे सम्प्रदाय वालों से लड़ने के लिए एक हो जाते हैं। पाकिस्ता की नींव मुस्लिम और गैर-मुस्लिम की भावना पर रखी गयी है। जो मुसलमान नहीं हैं। वे मुसलमानों के शत्रु हैं, उन्हें जीने का अधिकार नहीं है। 'तमस' उपन्यास में जिस पाि शहर लाहौर को कथानक का आधार बनाया गया है, उसमें हिन्दू और मुसलमान दोनों क धर्मों के लोग मिल-जुल कर रहते थे। हिन्दू के घर में मुसलमान किरायेदार और मुसलमान के घर में हिन्दू किरायेदार का रहना यह संकेत करता है कि हिन्दू और मुसलमान एक-दूसरे के दुश्मन हैं, यह भावना पहले से नहीं थी। इस भावना ने तो साम्प्रदायिक दंगे भड़कने के बाद जन्म लिया। शहर में साम्प्रदायिक दंगे की आग कह अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर रिचर्ड ने लगायी। इसमें मुसलमान चिरागदीन ने जान-बूझकर और हिन्दू नत्थू ने बिना जाने सहयोग दिया।
एक कहावत है कि मूर्ख और शंख दूसरे की फूँक से आवाज करते हैं। मूर्खता अज्ञान है, अज्ञान को भी अन्धकार स्वरूप माना गया है। गुरु की प्रशंसा में संस्कृत भाषा का एक श्लोक प्रचलित है, जिसमें अज्ञान को अन्धकार कहा गया है- अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाजन शलाकया । चक्षुरुन्मीलित येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥ (जिसने अज्ञान रूप अन्धकार के कारण अन्ध मनुष्यों की आँखें ज्ञान रूपी अज्ञान की सलाई के द्वारा खोल दीं, उस श्री गुरु को नमस्कार है।)
भीष्म साहनी के उपन्यास 'तमस' का सम्बन्ध जिस शहर के लोगों से है, वे अज्ञान के अन्धकार अर्थात् तमस के कारण ही एक-दूसरे की जान के दुश्मन बन गये हैं। पूरा उपन्यास अज्ञान के तमस से भरा हुआ है। इस आधार पर इस उपन्यास का नाम तमस और इसका कथानक सर्वथा उचित और वैज्ञानिक है।
निष्कर्ष
कथावस्तु के उपर्युक्त विश्लेषण के आधार पर इस उपन्यास का 'तमस' नामकरण पूर्ण रूप से उचित सिद्ध होता है। 'तमस' नामकरण संक्षिप्त, तथा कौतूहल वर्धक होने के साथ-साथ पूरे कथानक को अपने में समेटे हुए है। अतः यह साम्प्रदायिक दंगे-देश-विभाजन नामकरण सर्वथा सार्थक है।
इस प्रकार भीष्म साहनी ने "तमस" उपन्यास के माध्यम से सांप्रदायिकता के विनाशकारी प्रभावों को बड़ी ही मार्मिकता के साथ उजागर किया है। उपन्यास का शीर्षक "तमस" इस कथावस्तु के लिए अत्यंत सार्थक है। यह शीर्षक न केवल उपन्यास की कथावस्तु का सार प्रस्तुत करता है बल्कि पाठकों को गहराई से सोचने पर मजबूर करता है।
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