तमस उपन्यास का उद्देश्य भीष्म साहनी

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तमस उपन्यास का उद्देश्य भीष्म साहनी भारत के विभाजन के दौरान हुए सांप्रदायिक दंगों का एक मार्मिक चित्रण है। यह उपन्यास सिर्फ एक ऐतिहासिक घटना को बयां न

तमस उपन्यास का उद्देश्य भीष्म साहनी


भीष्म साहनी का उपन्यास 'तमस' भारत के विभाजन के दौरान हुए सांप्रदायिक दंगों का एक मार्मिक चित्रण है। यह उपन्यास सिर्फ एक ऐतिहासिक घटना को बयां नहीं करता, बल्कि मानव मन की गहराइयों में छिपे हुए अंधकार को भी उजागर करता है।

भीष्म साहनी के उपन्यास 'तमस' का उद्देश्य अंग्रेजों द्वारा साम्प्रदायिक दंगे की भूमिका प्रस्तुत करना और दंगों के परिणामस्वरूप भीषण विनाश लीला का दृश्य प्रस्तुत करता है। भीष्म साहनी ने अपने उपन्यास 'तमस' के कथानक का गठन इसी उद्देश्य से किया है। अंग्रेजों ने अपने शासन के 200 वर्षों में 'फूट डालो और राज्य करो' के सिद्धान्त को स्वीकार किया।मुरादअली के माध्यम से अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर रिचर्ड ने नत्थू से सुअर मरवाया और जमादार के द्वारा मस्जिद की सीढ़ियों पर डलग दिया। इसकी प्रतिक्रियास्वरूप मुसमलानों द्वारा गाय को काटकर धर्मशाला के सामने फेंक दिया गया। परिणामस्वरूप सारे शहर और उसके पश्चात् कस्बे और ग्रामों में भीषण साम्प्रदायिक दंगा फैल गया। 

तमस उपन्यास का उद्देश्य भीष्म साहनी
डिप्टी कमिश्नर ने इसे रोकने का कोई प्रयास नहीं किया। जब भीषण नर-संहार हो चुका तभी शान्ति-व्यवस्था का प्रयास किया गया। पुलिस की चौकियाँ बिठाई गयीं। अमन कमेटी की स्थापना कराई गयी। सारी घटना के अन्त में उपन्यासकार ने यही निष्कर्ष निकाला कि डिप्टी कमिश्नर रिचर्ड सब कुछ जानता था और साम्प्रदायिक दंगे के बीज उसी के द्वारा बोये गये थे। वह शान्ति स्थापना से तटस्थ रहा। इसी का परिणाम यह हुआ कि साम्प्रदायिक दंगा सारे शहर में फैल गया। कथानक का प्रारम्भ दंगे की भूमिका से होता है। जिस सुअर ने शहर को दंगे की आग में झोंक दिया, उपन्यास के प्रारम्भ में नत्थू द्वारा उसी को मारने का वर्णन है। इसके पश्चात् दंगाइयों द्वारा जो भीषण रक्तपात किया गया, तथा आगजनी की गयी, उससे कथानक का विकास हुआ है। पूरा शहर दंगे की लपटों में जल उठा। उपन्यासकार ने इस साम्प्रदायिक दंगे का सजीव चित्र प्रस्तुत किया है।
 
उपन्यास के प्रारम्भ में शहर के दंगे का व्यापक रूप सामने आया है। उपन्यास के उत्तरार्द्ध में साम्प्रदायिक दंगा कस्बों और ग्रामों में भी फैल जाने का वर्णन है। कोई भी ग्राम अथवा कस्बा दंगे से अछूता नहीं रहा। अल्पसंख्यक गाँव छोड़कर भाग खड़े हुए। उनकी दुकानों और सम्पत्ति को दंगाइयों ने लूट लिया है। दंगाई मुसलमानों ने बहुत-से हिन्दुओं और सिखों को जबरदस्ती मुसलमान बना लिया। बहुत-सी सिक्ख स्त्रियों ने कुएँ में कूदकर अपनी इज्जत बचायी। भीषण विनाश के पश्चात् अंग्रेज बहादुर की शान्ति की चेतावनी निकली और शान्ति स्थापित हो गयी।
 
उपन्यासकार ने दंगा समाप्त होने के पश्चात् की स्थिति का भी सजीव वर्णन किया है। निम्नलिखित उदाहरण में रिलीफ ऑफिस का दृश्य देखा जा सकता है- "रिलीफ ऑफिस के आँगन में घूमता प्रत्येक व्यक्ति अपना विशिष्ट अनुभव लेकर आया था। लेकिन उस अनुभव को जाँचने, परखने, उसमें से निष्कर्ष निकालने की क्षमता किसी में नहीं थी। शून्य में ताकने, सिर हिला-हिलाकर हर किसी की बात सुनते रहने के अलावा किसी को कुछ सूझ नहीं रहा था। एक अफवाह उठती तो आँगन में लोग उठ-उठकर उसे सुनने के लिए जमा हो जाते। कोई नहीं जानता था कि उसे क्या करना है, किधर जाना है। आगे क्या होगा, उसकी धुँधली-सी रूपरेखा भी किसी की आँखों के सामने नहीं थी। लगता, जैसे कोई अनिवार्य घटना-चक्र चल रहा है, जिस पर किसी का कोई बस नहीं है, न किसी के हाथ में निर्णय है, न संचालन, न संचालन की शक्ति।"
 
"ताकत तो इस वक्त पण्डित नेहरू के हाथ में है", रिचर्ड ने फिर मुस्कराकर धीमे से कहा। फिर बख्शीजी की ओर देखकर बोला, “आप लोग ब्रिटिश सरकार के खिलाफ, तो भी दोष ब्रिटिश सरकार का और जो आपस में लड़ें तो भी दोष ब्रिटिश सरकार का।" उसके होठों पर मुस्कान बराबर बनी रही। पर वह फिर जैसे सम्भल गया और बोला, "लेकिन कहिए, हमें इस मसले को मिलकर सुलझाना चाहिए।" और उसने हयातबख्त की ओर देखा।
 
रिचर्ड ने केवल अमन कमेटी बनाकर शान्ति स्थापना के लिए उन जन प्रतिनिधियों को सलाह दी जो उससे दंगा शान्त करने की आशा लेकर गये थे। शहर में भीषण साम्प्रदायिक दंगा फूट पड़ा। अंग्रेजी सरकार की ओर से दंगा रोकने और जनता की रक्षा का कोई प्रबन्ध नहीं किया गया। रिचर्ड दंगों और भीषण नर-संहार के समाचार सुनकर अपनी ली लोजा के साथ ठिठोलियाँ करता रहा। 

शहर के साम्प्रदायिक दंगे की भीषण ज्वाला की लपट ने देहात और कस्बों को भी अपने में समेट लिया। गाँव के गाँव भीषण दंगों में समाप्त हो गये।धर्म के नाम पर हिन्दू-मुसलमानों में भीषण साम्प्रदायिक दंगा कराकर और भीषण नर-संहार हो जाने पर डिप्टी कमिश्नर रिचर्ड ने कूटनीतिक चाल चली। हवाई जहाज ने उड़कर शान्ति की घोषणा की, अमन कमेटियाँ बनायी गयीं, हानि की लिखा-पढ़ी की गयी। अंग्रेजों की नीति के कारण अमन कमेटी में भी एकता नहीं रह गयी। मुसलमानों ने कांग्रेस को हिन्दुओं की संस्था घोषित किया। मुस्लिम ने पाकिस्तान का प्रश्न उठाया।
 
उपर्युक्त उद्देश्य के केन्द्र पर ही 'तमस' उपन्यास का कथानक प्रारम्भ होता है। म्यूनिसिपल कमेटी के जमादार मुरादअली से पाँच रुपये लेकर नत्थू जाटव सलोत्तरी साहब के लिए सुअर मारता है। यह सुअर काटकर मस्जिद की सीढ़ियों पर डलवा दिया है। इस प्रकार अंग्रेज अधिकारी साम्प्रदायिक दंगे का बीज बो देते हैं। इसकी प्रतिक्रिया मुसलमानों की ओर से तत्काल होती है। वे एक गाय मारते हैं और धर्मशाला के आगे डाल देते हैं। शहर में साम्प्रदायिक दंगे की तैयारी होने लगती है। हिन्दू और मुसलमान दोनों पक्ष दंगे की तैयारी में लग जाते हैं। कुछ नेता डिप्टी कमिश्नर रिचर्ड को अवगत कराते हैं, वह पहले ही से सब कुछ जानता है। दंगे के बीज तो उसी ने बोये हैं। रिचर्ड की पत्नी लीजा का निम्नलिखित कथन रिचर्ड की मनोवृत्ति पर प्रकाश डालता है- 

'बहुत चालाक नहीं बनो रिचर्ड ! मैं सब जानती हूँ। देश के नाम पर वे लोग तुम्हारे साथ लड़ते हैं और धर्म के नाम पर तुम इन्हें आपस में लड़ाते हो, क्यों, ठीक है न?" 
"हम नहीं लड़ाते, लीजा, ये लोग खुद लड़ते हैं।' 
"तुम इन्हें लड़ने से रोक भी तो सकते हो। आखिर हैं तो ये एक ही जाति के लोग। " 
डिप्टी कमिश्नर रिचर्ड अपनी पत्नी के सामने अपनी कूटनीति स्पष्ट करता हुआ कहता है-"डार्लिंग ! हुकूमत करने वाले यह नहीं देखते कि प्रजा में कौन-सी समानता पायी जाती है, उनकी दिलचस्पी तो यह देखने में होती है कि वे किन-किन बातों में एक-दूसरे से अलग हैं। " 

भीष्म साहनी के उपन्यास 'तमस' के कथानक का विकास इसी वार्तालाप के आधार पर होता है। रिचर्ड सुअर को मरवाकर मस्जिद की सीढ़ियों पर डलवा देता है। प्रतिक्रिया स्वरूप मुसलमान गाय काटकर धर्मशाला के बाहर डाल देते हैं। बस हिन्दू-मुसलमानों में तना-तनी बढ़ जाती है। हिन्दू और मुसलमान दोनों के नेता रिचर्ड की कोठी पर जाकर सारी स्थिति को स्पष्ट करते हैं और सुरक्षा का कदम उठाने का आग्रह करते हैं, परन्तु रिचर्ड को तो दंगा कराना ही था, न वह करफ्यू लगाता है और न पुलिस आदि का ही समुचित प्रबन्ध करता है। वह जन-प्रतिनिधियों को जो व्यंग्यपूर्ण उत्तर देता है, उससे उसकी बुरी मनोवृत्ति प्रकट हो जाती हैं।
 
"सरकार तो बदनाम है। मैं अंग्रेज अफसर हूँ। ब्रिटिश सरकार पर तो आपको विश्वास नहीं है, उसकी बात को तो आप कहाँ सुनेंगे!" रिचर्ड ने व्यंग्य से कहा और पेन्सिल टकोरता रहा।"
 
"मगर ताकत तो ब्रिटिश सरकार के हाथ में है और आप ब्रिटिश सरकार के नुमाइन्दा हैं। शहर की रक्षा तो आप ही की जिम्मेदारी है।" बख्शीजी बोले और बोलते हुए उनकी ठुड्डी काँप गयी और उत्तेजनावश चेहरा पीला पड़ गया। उपन्यासकार अन्त में निष्कर्ष निकालता है कि- “फिसाद कराने वाला भी अंग्रेज, फिसाद रोकने वाला भी अंग्रेज, भूखों मारने वाला भी अंग्रेज रोटी देने वाला भी अंग्रेज, घर से बेघर करने वाला भी अंग्रेज, घरों में बसाने वाला भी अंग्रेज ।"
 
'तमस' में ऐसी घटनाओं को स्थान दिया गया है, जो अंग्रेजों की इस कूटनीति को सामने लाती हैं। उन्होंने अपनी 'फूट डालो और राज्य करो' की योजना को इसी प्रकार कार्यान्वित किया। उन्होंने बड़ी चतुराई से धर्म के नाम पर विष वमन कराकर हिन्दू-मुसलमानों में दंगे कराये। मुसलमानों को प्रोत्साहन देकर मुस्लिम लीग की स्थापना कराई, जिसके द्वारा कांग्रेस को हिन्दुओं की संस्था घोषित कराया गया और कांग्रेस में सम्मिलित मुसलमानों को हिन्दुओं का पालतू कुत्ता कहलवाया गया। अंग्रेजों की इस नीति का ही परिणाम था कि देश में भीषण साम्प्रदायिक दंगे हुए और देश के हिन्दुस्तान एवं पाकिस्तान के रूप में दो टुकड़े हो गये। रिचर्ड और उसकी पत्नी लीजा के निम्नलिखित कथोपकथन में उपर्युक्त सत्य स्पष्ट हो जाता है- 
"तुम कोई भी बात मेरे साथ संजीदगी से नहीं करते।" लीजा ने उलाहने के स्वर में कहा । 
"संजीदगी से बात करने की तुक ही क्या है?" रिचर्ड ने खोये-खोये मन से कहा । "सुनो लीजा, यहाँ पर शायद कोई गड़बड़ हो । " 
लीजा ने आँखें ऊपर उठाईं और रिचर्ड के चेहरे की ओर देखने लगी। 
क्या गड़बड़ होगी ? फिर जंग होगी।" 
'नहीं, मगर हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच तनातनी बढ़ रही है। शायद फसाद होंगे। " 
"ये लोग आपस में क्यों लड़ेंगे? लन्दन में तो तुम कहते थे कि ये लोग तुम्हारें खिलाफ लड़ रहे हैं।' 
"हमारे खिलाफ भी लड़ रहे हैं और आपस में भी लड़ रहे हैं।" 
"कैसी बात कर रहे हो? क्या फिर मजाक करने लगे ?" 
"धर्म के नाम पर आपस में लड़ते हैं। देश के नाम पर हमारे साथ लड़ते हैं। " रिचर्ड ने मुस्कराकर कहा । 
"किसी में वास्तविकता समझने की क्षमता नहीं थी। कठपुतलियों की तरह सभी घूम रहे थे, भूख लगती तो उठकर इधर-उधर से कुछ खा लेते, याद आती तो रो देते, और कान लगाये सुबह से शाम तक लोगों की बातें सुनते रहते।" 
दंगे के पश्चात् शहर में मुस्लिम बहुल मुहल्लों से हिन्दू और हिन्दू-बहुल मुहल्लों से मुसलमान अपनी जायदाद बेचकर भागने लगे। 
"शहर में फिसाद होने के बाद एक लहर-सी चल पड़ी थी। जिस इलाके में मुसलमानों की अधिकता थी, वहाँ से हिन्दू-सिख निकलने लगे थे, और जिन इलाकों में हिन्दू-सिखों की अधिकता थी, वहाँ से मुसलमान घर-बार बेचकर निकल जाना चाहते थे। 

निष्कर्ष- उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि उपन्यासकार भीष्म साहनी को उपन्यास का उद्देश्य स्पष्ट करने में पूर्ण सफलता मिली है। अंग्रेजों की नीति के सम्बन्ध में बख्शीजी का यह कथन सर्वथा सत्य है- “फिसाद करवाने वाला भी अंग्रेज, फिसाद रोकने वाला भी अंग्रेज, भूखों मारने वाला भी अंग्रेज, रोटी देने वाला भी अंग्रेज, घर से बेघर करने वाला भी अंग्रेज, घरों में बसाने वाला भी अंग्रेज पर जब से फिसाद शुरू हुए थे बख्शीजी के दिमाग में धूल-सी उड़ने लगी थी, बस केवल इतना-भर ही बार-बार कहते रहे, 'अंग्रेज फिर बाजी ले गया।' 'अंग्रेज फिर बाजी ले गया। "पर शुरू से आखिर तक स्थिति उनके काबू में नहीं आयी।"

इस प्रकार 'तमस' सिर्फ एक उपन्यास नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा दस्तावेज है जो इतिहास के एक काले अध्याय को बयां करता है। यह उपन्यास हमें सिखाता है कि हमें सांप्रदायिकता के खिलाफ हमेशा लड़ते रहना चाहिए।

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