तीस बरस का साथी संस्मरण का सारांश रामविलास और अमृतलाल नागर दोनों भी लेखकीय दृष्टि से एक-दूसरे से प्रतियोगिता किया करते जिससे लेखकीय अनुभवों एवं विचारो
तीस बरस का साथी संस्मरण का सारांश
तीस बरस का साथी संस्मरण हिंदी के प्रख्यात् आलोचक डॉ. रामविलास शर्मा के षष्ठिपूर्ति के अवसर पर डॉ. नत्थन सिंह द्वारा संपादित अभिनंदन ग्रंथ हेतु सन् 1962 में लिखा है, जो 'जिनके साथ जिया' संस्मरण संकलन में संकलित हैं। यह नागर का प्रदीर्घ संस्मरण हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ रहे रामविलास शर्मा के बारे में लोगों में काफी चर्चा थी कि, वे पढ़ाई में अत्यंत निपुण तथा अंग्रेजी में बहुत तेज हैं। महाकवि निराला रामविलास से प्रभावित होकर नागर से रामविलास की प्रशंसी में कहते -“बड़ा तेज हैं, ये डॉक्टर बनेगा एक दिन, अपने गुरु सिद्धांत को भी अंग्रेजी में पछाड़ेगा" ऐसे प्रतिभा संपन्न व्यक्तित्व की चर्चा नागर सुनाने लगते हैं। उनके मन में रामविलास को देखने की उत्कंठा सवार हुई थी। एक दिन निराला के यहाँ रामविलास से नागर की भेंट हुई। तब निराला ने रामविलास के साथ नागर के वैचारिक पंजे लड़ाये। तब रामविलास से नागर की गहरी दोस्ती बन गयी। निराला के साथ रामविलास कभी-कभी नागर के घर भी आते थे और साहित्यिक गप-शप होती रहती थी। रामविलास के साथ रहते अंग्रेजी और यूरोप की दूसरी भाषाओं पर काफी मंथन होता। यह दोस्ती लगभग तीस साल के लंबे अरसे में तब्दील होती है।
सन् 1938 में नागर ने ‘चकल्लस' नामक साप्ताहिक पत्र निकाला। नागर कहते हैं कि, इसी साल नंददुलारे वाजपेयी, रामविलास शर्मा, नरोत्तम प्रसाद नागर आदि लोग मेरे घर पर आये थे। पत्रिकाओं एवं कहानियों के बारे में काफी बहस भी हुई थी। उन्हें याद है कि, 'चकल्लस' पत्र के नाम बदलने में भी खूब चर्चा चली। इस संदर्भ में एक सुझाव यह भी आया था कि चकल्लस के स्थान परी पत्रिका का नाम 'मसखरा' रखा जाए। पर अंत में चकल्लस पर ही सभी सहमत हो जाते हैं। नौजवानों के रौब से 'चकल्लस' प्रकाशित हुआ। इससे शनैः-शनैः रामविलास और नागर का नैकट्य अधिक मजबूत हुआ। जिसमें रामविलास की खामियाँ और खूबियाँ नागर को देखने को मिलती रहीं। कई लोग रामविलास शर्मा के बारे में यह कहते हैं कि, उनमें अकड़ की वृत्ति अधिक है। किंतु नागरजी को इसका कभी अनुभव नहीं हुआ। नागर को जो अनुभव हुआ वह इसके ठीक विपरीत हैं। उनकी दृष्टि से रामविलास एक विनयशील, गंभीर, प्रतिभावान विचारक और विनम्र व्यक्तित्व हैं। हाँ इतना अवश्य है कि, “रामविलास की तीखे व्यंग्य-भरी फिस-फिसवाली हँसी ने बहुत-से-कलेजों पर तलवार से वार किया। रामविलास का क्रोध भीतरी है, पर घुना नहीं। उनके क्रोध का बहिर्प्रदर्शन आमतौर पर उनकी जहरीली हँसी व्यंग्य वचनों के रूप में ही होता है।"
हिंदी के प्रति रामविलासजी की निष्ठा अत्यंत गहन थी। 'चकल्लस' पत्रिका के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत भी की। अलग-अलग योजनाओं को मन में अवतरित कर कार्यों का विभाजन करते हुए हर एक से निष्ठापूर्वक काम भी करवा लेते थे। हर रविवार को गोष्ठी भी करवा लेते। रामविलास की काम करने की कला एक चिकित्सक की सी थी। इसलिए निराला उन्हें डॉक्टर कहते थे। यह उपाधि न होकर रामविलास का यह उपनाम-सा बन गया था। सन् 1940 में वे डॉक्टर भी बन गये तब नागरजी फिल्म लेखक के रूप में मुंबई में बस चुके थे। रामविलास ने चिट्ठी भेजकर अपने डॉक्टर होने की खबर दी थी। उस समय डॉक्टर होने की उपलब्धि बहुत महत्व रखती थी। आज की सी स्थिति तब नहीं थी ।
लखनऊ का वातावरण साहित्यिक था और मुंबई का फिल्म लेखन का। नागर जी फिल्मी दुनिया के सहकारियों के साथ अपना अधिकतम वक्त बिताते थे। उधर रामविलास लखनऊ में थे। उनकी साहित्यिक गतिविधियाँ चरम उत्कर्ष को छू रही थीं। उन्होंने नागर से हिंदी और हिंदी सेवी लोगों से आर्थिक मदद की अपिल की थी। परंतु नागरजी लोगों के असहयोग के कारण असफल रहे। सन् 1939 में हिंदी साहित्य का सम्मेलन काशी में हुआ। इस सम्मेलन के लिए लखनऊ से रामविलास और नागर साथ ही गये थे। रामविलासजी का अत्यंत गहरा प्रभाव और प्रतिभा सम्मेलन पर पड़ी। उन्होंने जो निबंध प्रस्तुत किया वह अत्यंत तर्कयुक्त और विद्वत्तापूर्ण था। उनके जैसा अन्य किसी का ओजस्वी भाषण सम्मेलन में नहीं हुआ। इस निबंध ने रामविलास को सम्मेलन का हीरो बना दिया था। इसमें सम्मिलित सभी बड़े-बूढ़े उन पर गर्व करने लगे थे।
महाकवि निराला का रामविलास पर बेटे जैसा स्नेह था। निराला उन पर कभी गुस्सा करते तो रामविलास बड़ी चतुराई से उनके मन को जीत लेते थे। सन् 1944 में रामविलास मुंबई आये थे अब रामविलास मार्क्सवादी बन गये थे। प्रगतिशील लेखक संघ से उनका निकट का संबंध था। अब रामविलास कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य भी बन चुके थे। यह बात नागर को अच्छी नहीं लगी। रामविलास ने एक उदाहरण देकर उनकी नाराजगी दूर की थी- "कम्युनिस्ट पार्टी तुम्हारी काँग्रेस की तरह नहीं है भैया ! यह मत भूलो कि लेनिन के साथ बराबरी से रूसी जनता को नेतृत्व करने वाला एक साहित्यकार गोर्की भी था। यह मत भूलो कि स्वयं मार्क्स और एंगेल्स राजनीतिक नेता नहीं वरन् विद्वान दार्शनिक थे। साहित्यकारों के लिए अगर किसी भी पार्टी में महत्त्व का स्थान हैं तो कम्युनिस्ट पार्टी में ही।" सन् 1949 में रामविलास प्रगतिशील आंदोलन के प्रमुख नेता माने गए। यहीं से उनके और पार्टी के बीच रिश्तों में अंतर पड़ता गया। रामविलास मार्क्सवादी विचारधारा से आलोचना करते थे । कभी-कभी कुछ लोगों को यह भाता नहीं था। एक बार पंत की 'स्वर्ण किरण' आदि नई कृतियों पर उन्होंने कड़ी आलोचना की। तो उनके बारे में लोग कुछ और सोचने लगे थे। इतना ही नहीं तो अपने से सदियों पुराने पुरखे कालिदास से लेकर अपने समवर्ती लेखकों तक को उन्होंने नहीं बख्शा था। इससे नागरजी ने आवेश में आकर रामविलास को इस तरह की आलोचना करने से मना भी किया था। तब से उनमें थोड़ा परिवर्तन आया था।
रामविलास और अमृतलाल नागर दोनों भी लेखकीय दृष्टि से एक-दूसरे से प्रतियोगिता किया करते जिससे लेखकीय अनुभवों एवं विचारों में प्रौढ़ता और वैचारिकता भर जाती। संस्मरण के अंत में नागर यह भी बताते हैं कि रामविलास मुझसे ढाई साल बड़े होकर भी मैं उनसे हम वयस्क के से संबंधों से स्नेह युक्त और सशक्त संबंध दोनों में थे।
उक्त विवेचन से यह सिद्ध होता है कि, हिंदी का एक पंडित दूसरे पंडित के साथ लगभग तीस बरस तक मिल जुलकर पांडित्यपूर्ण लेखकीय और जीवनानुभव के साथ जीवन यापन करते रहे हैं।यह संस्मरण पहले दोनों संस्मरण की तुलना में प्रदीर्घ हैं। तीस साल की यादों को यहाँ नागरजी ने संजोया हैं।
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