दुष्यंत कुमार की काव्यगत विशेषताएँ दुष्यंत कुमार समकालीन हिन्दी कविता के प्रसिद्ध कवि हैं। निम्न मध्यमवर्गीय जनता की पीड़ा को वे अच्छी तरह समझते थे।
दुष्यंत कुमार की काव्यगत विशेषताएँ
दुष्यंत कुमार समकालीन हिन्दी कविता के प्रसिद्ध कवि हैं। निम्न मध्यमवर्गीय जनता की पीड़ा को वे अच्छी तरह समझते थे। उनके मन में आम शोषित जनता के प्रति गहरी सहानुभूति थी । उनमें समसामयिक राजनीतिक मोहभंग का भी गहरा एहसास था तथा इस पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए छटपटाहट और बेचैनी भी थी। अतः उन्होंने अपनी कविता “हो गई है पीर पर्वत-सी" में बड़े ही व्यंग्य भरे स्वर से तत्कालीन राजनीतिज्ञों का बहिष्कार किया है और उनके खिलाफ आवाज उठाकर साधारण जनता का क्रांति के लिए आह्वान किया है। दुष्यन्त कुमार समकालीन कविता के लोकप्रिय कवि हैं। समकालीन कविता अपने युग एवं परिवेश से सम्पृक्त हैं। दुष्यन्त कुमार का काव्य संसार भी भारतीय जनता की आशा-निराशा, आकांक्षा - उपेक्षा, राम-विराग-हर्ष विषाद इत्यादि से लबरेज है। उन्होंने अपने काव्य संसार का विषय राजनीतिक अव्यवस्था, उत्तरोत्तर कठिन होता जा रहा जीवनयापन, सामाजिक विकृतियाँ, खोखले सिद्धान्त सबको समकालीन कविता में समेटा गया है। दुष्यन्त कुमार की कविताओं का स्वर व्यंग्य एवं आक्रोश से भरा हुआ है। यह व्यंग्य और आक्रोश उस मोहभंग से उपजा है जो स्वतन्त्रता के बाद लोगों के हृदय में उत्पन्न हुआ था। स्वतन्त्रता के बाद लोगों को यह महसूस होता है कि वे पूरी तरह ठगे हुए हैं - नेताओं के वादे खोखले साबित हुए, सबके घर में रोशनी और खुशहाली का वादा किया गया था, पर यथार्थ में हम पूरे शहर में एक चिराग तक नहीं जला सकें, फलतः दुष्यन्त कुमार का आक्रोश इन प्रलोभनों पर इस प्रकार वयक्त हुआ है -
कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए।
कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।
दुष्यंत कुमार केवल इस मोहभंग पर आक्रोश व्यक्त करके ही नहीं रह जाते, अपितु वे इसका प्रतिकार भी करते हैं और लोगों को प्रेरित करते हैं कि वे अन्याय के खिलाफ आवाज बुलन्द करें। इस प्रकार दुष्यन्त कुमार का काव्य संसार समकालीन विसंगतियों के यथार्थ चित्रण से भरा हुआ है तथा इन विसंगतियों के खिलाफ व्यंग्य एवं आक्रोश को भी व्यक्त करता है।
दुष्यंत कुमार की काव्यगत विशेषताओं को निम्नलिखित बिन्दुओं में देखा जा सकता है -
राजनीतिक मोहभंग का यथार्थ चित्रण
दुष्यंत कुमार समकालीन हिन्दी कविता के प्रमुख हस्ताक्षर हैं। समकालीन कविता में सर्वत्र राजनीतिज्ञों से आम जनता के मोहभंग का अंकन मिलता है। सत्ता प्राप्ति के पहले किये गये झूठे वादे और सत्ता प्राप्ति के तदुपरान्त उनके मिथ्या सिद्ध होने की कसक आम जनता के हृदय में ज्वाला की तरह धधक रही है। इसी आग को दुष्यन्त कुमार सबके सीने में जलता देखना चाहते हैं और चाहते हैं कि संगठित होकर इनका प्रतिकार किया जाय। फलतः उनकी प्रसिद्ध कविता "हो गई है पीर पर्वत-सी" समकालीन राजनीति से आम जनता के मोहभंग के फलस्वरूप उत्पन्न आवेग और आक्रोश से निकला है।
क्रांति के लिए आह्वान
कविताओं में दुष्यन्त कुमार सर्वहारा वर्ग को क्रांति के लिए प्रेरित करते हैं। वे चाहते हैं कि सभी लोग संगठित होकर, मिलकर क्रांति करे। जिससे सत्तावर्ग अपनी अन्यायकारी, दमनकारी तथा स्वार्थलोलुप प्रवृत्तियों का त्यागकर भारतीय जनता के हितों को सोचने पर मजबूर हो जायें। भारतीय राजनीतिज्ञ जनता से किये हुए अपने वादों पर अमल करें। यह क्रांति ऐसी होनी चाहिए कि इस क्रांति में हर सड़क-हर गली में हर नगर में यहाँ तक कि हर वर्ग भी शामिल हो और अपनी आवाज उठाये -
हर सड़क, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में
हाथ लहराते हुए, हर लाश चलनी चाहिए।
जनपक्षधरता का स्पष्ट चित्रण
दुष्यंत कुमार जनपक्षधर कवि हैं। उनकी जनपक्षधरता का स्पष्ट चित्रण प्रस्तुत कविता “हो गई हैं पीर पर्वत-सी" में हुआ है। शोषित जनता की पीड़ा को वे महसूस करते हैं, इसीलिए वे उनके हृदय में छिपी हुई आग को क्रान्ति में बदलना चाहते हैं, जिससे जनता के हक को पुनः उन्हें वापस दिलाया जा सके।दुष्यंत कुमार की कविता की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह आम आदमी की आवाज है। उन्होंने अपनी कविता में आम आदमी की पीड़ा और आकांक्षाओं को बयां किया है। उनकी कविताएँ समकालीन मुद्दों पर प्रतिक्रिया हैं। वे भावुक होने के साथ-साथ तार्किक भी हैं। तभी तो वे कहते हैं -
मेरे सीने में नही तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
समसामयिक परिवेश का अंकन
कविताओं में दुष्यंत कुमार ने समसामयिक परिवेश का यथार्थ चित्र प्रस्तुत किया है। तत्कालीन राजनीति से आम जनता का मोहभंग, नेताओं के झूठे प्रलोभन तथा जनता के हृदय में धधकती हुई क्रांति की ज्वाला इत्यादि का वर्णन प्रस्तुत कविता में व्यक्त हुआ है। दुष्यन्त कुमार यथार्थ से वाकिफ हैं, इसीलिए वे यह भी कहते हैं कि सिर्फ हंगामा खड़ा करने से कुछ नहीं होगा, बल्कि वास्तव में यथास्थिति में सुधार होना चाहिए -
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि यह सूरत बदलनी चाहिए।
शब्द विधान या भाषा और शिल्प
दुष्यंत कुमार की भाषा में शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली होने के साथ ही संस्कृत के शब्दों का भी प्रयोग किया है, साथ ही - इसमें अरबी फारसी शब्दों का प्रयोग भी मिलता है। इनकी भाषा में रागात्मकता का समावेश है। भाषा में संगीतात्मकता के दर्शन भी होते हैं। इनकी भाषा में प्रवाह हैं - हर सड़क, हर गली, हर नगर, हर गाँव में इस प्रकार इनकी भाषा और उसका प्रवाह प्रशंसनीय है।
भाषा शैली और अलंकार
दुष्यंत कुमार की भाषा शैली सरल, स्पष्ट तथा मार्मिक प्रभावशाली है। सपाटबयानी समकालीन कविता की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है। आपकी भाषा व्यंग्य एवं आक्रोश से भरपूर है। अरबी और फारसी के शब्दों का भी बेहिचक आपने प्रयोग किया है।
दुष्यंत कुमार ने अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। उपमा, रूपक-अनुप्रास आदि अलंकार देखने को मिलता है। मुहावरों का भी प्रयोग किया है। कुल मिलाकर दुष्यन्त कुमार की रचनाएँ भावपक्ष और कलापक्ष दोनो दृष्टियों से समृद्ध हैं।
दुष्यंत कुमार ने ग़ज़ल विधा को एक नया आयाम दिया और उसे युवाओं तक पहुंचाया। उनकी कविताएँ आज भी प्रासंगिक हैं और हमेशा रहेंगी। उनकी कविताएँ हमें सोचने पर मजबूर करती हैं और समाज में बदलाव लाने के लिए प्रेरित करती हैं। संक्षेप में, दुष्यंत कुमार एक ऐसे कवि थे, जिन्होंने अपनी कविता के माध्यम से समाज को जागरूक किया और लोगों को सोचने पर मजबूर किया। उनकी कविताएँ आज भी प्रासंगिक हैं और हमेशा रहेंगी।
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