ईदगाह कहानी की तात्विक समीक्षा मुंशी प्रेमचंद एक छोटे से बच्चे हामिद के जीवन की एक झलक पेश करती है, जो गरीबी और अनाथ होने के बावजूद, प्यार, त्याग और उ
ईदगाह कहानी की तात्विक समीक्षा | मुंशी प्रेमचंद
प्रेमचंद की अमर कृति "ईदगाह" एक ऐसी कहानी है जो पाठकों के दिलों में गहरी छाप छोड़ती है। यह कहानी एक छोटे से बच्चे हामिद के जीवन की एक झलक पेश करती है, जो गरीबी और अनाथ होने के बावजूद, प्यार, त्याग और उम्मीद की भावनाओं से ओत-प्रोत है। ईदगाह कहानी की तात्विक समीक्षा निम्नलिखित रूपों में की जा सकती हैं -
कथावस्तु
ईद का दिन वास्तव में छोटे बच्चों के लिए बड़ा सुहावना होता है। न केवल बच्चों के लिए, बड़ों के लिए भी इसका आनन्द उतना ही होता है। ईद के दिन सब बच्चे बार-बार अपने पैसों को गिन रहे थे । हामिद एक छोटा गरीब बालक है। वह अपनी दादी अमीना के साथ रहता है। जब वह छोटा था तब उसके माता-पिता गुजर गए थे। ईद के दिन उसे अपनी दादी से केवल तीन पैसे ही मिले थे जिसे वह लेकर पूरे मेले में घूमता रहा। सब बच्चों ने अनेक प्रकार की मिठाइयाँ खायीं और तरह-तरह के खिलौने खरीदे, लेकिन हामिद ने कुछ नहीं खरीदा। सब बच्चों को लगा कि हामिद ने पैसे बाद के लिए बचा रखे हैं।
जब मोहसिन, महमूद, सम्मी और नूरे के पैसे खत्म हो जायेंगे तब वह चिढ़ाकर खायेगा। लेकिन बहुत देर तक उसने कुछ भी नहीं खरीदा फिर अचानक एक लोहे का चिमटा खरीद लाया। उसने सभी को अपने चिमटे के गुण बताये कि यदि चिमटे को कन्धे पर रख लिया जाये तो यह बन्दूक का काम करेगा, चिमटा ही आग-पानी से टक्कर ले सकता है और चिमटा एक फकीर की दुआ का काम करता है। चिमटे के गुणों को सुनकर सभी साथी सन्न (दंग रह गये। जब हामिद घर पहुँचा तो उसके हाथ में चिमटा देखकर उसकी दादी ने पूछा यह चिमटा कहाँ से लाया? तो उसने सब कुछ बता दिया। पहले दादी ने उसे डाँटा कि तुझे और कुछ नहीं मिला, दोपहर हो गयी कुछ भी नहीं खाया। हामिद ने धीरे से कहा कि रोटी बनाते समय तुम्हारे हाथ जल जाते हैं इसलिए मैंने इसे ले लिया। बस इतना सुनते ही बूढ़ी दादी का क्रोध स्नेह में बदल गया। दादी माँ ने हामिद को गले से लगा लिया और विचार किया कि हामिद में मेरे लिए कितना त्याग और कितना विवेक है। दूसरों को खिलौने लेते और मिठाई खाते देखकर इसका मन कितना ललचाया होगा ? इतना सहन इससे कैसे हुआ ? वहाँ भी अपनी बूढ़ी दादी की याद बनी रही। अमीना का मन गद्गद् हो गया। दादी माँ हामिद से लिपटकर रोने लगीं और दुआएँ देने लगीं।
पात्र एवं चरित्र चित्रण
ईदगाह का मुख्य पात्र 'हामिद' है। 'अमीना' उसकी दादी है। वह उन्हीं के साथ रहता है। यद्यपि कहानी चरित्र प्रधान नहीं है और न प्रेमचन्द का उद्देश्य हामिद और अमीना का चरित्र उद्घाटन करना या विश्लेषण करना ही रहा है। उन्होंने दोनों पात्रों का माध्यम के रूप में प्रयोग करके जीवन के बहुत बड़े सत्य और समय के साथ समझौते को उद्घाटित करने का प्रयत्न बड़ी सफलता से किया है। हामिद भारतीय मुसलमान है और सयुगीन परिस्थितियों के यथार्थ और सत्य को अपनी विशेषताओं में निर्धन परिवार के बच्चे की भाँति जीवन जीने के लिए मजबूर है।
संवाद
कहानी की संवाद योजना बहुत ही चुस्त, संक्षिप्त, सरल एवं सरस तथा आकर्षक है। यद्यपि सम्पूर्ण कहानी वर्णनात्मक है पर संवादों का प्रयोग जहाँ भी हुआ है बहुत ही सार्थक, प्रभावी और मनोभावों की अभिव्यक्ति में सफल है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि 'ईदगाह' कहानी में निहित संवाद जीवन की विसंगतियों में टूटते जुड़ते और मरते-जीते मनुष्य के अन्तर्मन का उद्घाटन करते हैं, उसका सही रूप प्रस्तुत करते हैं तथा जीवन के कटु रूप सत्य को पाठक तक पहुँचाने में सफल हैं।
देशकाल वातावरण
प्रेमचन्द की पारिवारिक और सामाजिक मान्यताएँ ठेठ भारतीय हैं तथा उसमें चली आती पीढ़ी दर पीढ़ी की भारतीय संस्कृति निहित है। भारतीय माँ के हृदय में अपने बेटे या पोते के प्रति कितना ममत्व होता है इसका ज्ञान उन्हें था । यही कारण था कि ईदगाह कहानी का देश-काल तथा वातावरण अत्यन्त सजीव और प्रासंगिक है तथा सामाजिक चेतना एवं तद्विषयक बोध कहानी में अपनी सार्थकता उत्पन्न कर देता है। प्रेमचन्द ने इस कहानी में भारतीय परिवार की विवशता, लाचारी और भावनाओं को जिस सहजता के साथ यथार्थ रूप में प्रस्तुत किया है, वहीं कहानी के देश- काल और सरसता के साथ किया है। भारतीय गरीब परिवार की विशेषताओं, अभावों और अदम्य कामनाओं को उबारने में इस कहानी ने बड़ा योगदान किया है।
भाषा शैली
हिन्दी में आगमन प्रेमचन्द का उर्दू से हुआ था । उनकी कहानियों में प्रवाहमानता का यही कारण था। प्रेमचन्द की भाषा में शब्द प्रयोग और वाक्य विन्यास आदि विशेष भंगिमा के साथ मिलता है। उनकी भाषा प्रवाहशीलता में उर्दू और हिन्दी तद्भव शब्दावली का प्रयोग उपलब्ध होता है। प्रस्तुत कहानी की भाषा जनवादी तत्वों से परिपूर्ण भावाभिव्यक्ति लिए हुए है तथा मुहावरेदार और सूक्तिमय भी है।मुहावरों व कहावतों का प्रयोग प्रेमचन्द ने उदारतापूर्वक किया है, जिससे भाषा की प्रवाहमानता में वृद्धि हुई है।
उद्देश्य
प्रेमचन्द की कहानियाँ अपनी नियति में यथार्थ की भूमि पर आदर्श की स्थापना करती चलती हैं। इस कहानी से भी प्रेमचन्द की दृष्टि यथार्थ से चलकर आदर्श में समाहित होती हुई ईद की नमाज के माध्यम से एकता का संदेश देती है।
शीर्षक
नामकरण 'ईदगाह' कहानी का नामकरण कहानी की कथावस्तु की स्पष्टता और सार्थकता सिद्ध करता है।'ईदगाह' कहानी का शीर्षक मुंशी प्रेमचंद का एक सटीक चुनाव है। यह शीर्षक कहानी के कथानक, भावनाओं और प्रतीकों को बड़ी ही खूबसूरती से व्यक्त करता है। यह एक ऐसा शीर्षक है जो पाठकों के मन में लंबे समय तक रहता है।
निष्कर्ष
'ईदगाह' कहानी की भाषा सरल, सुबोध, उपयुक्त एवं पात्रोचित है । कहानीकार ने इस कहानी में आवश्यकतानुसार तत्सम, तद्भव तथा देशी-विदेशी हर प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया है । इसमें उर्दू, फारसी के शब्दों का भी प्रयोग मिलता है, जैसे - अल्लाह, जिन्नात रोजा इत्यादि । कहानीकार ने इस कहानी में कई मुहावरों का भी प्रयोग किया है, जैसे- काम से जी चुरानेवाले, तीन कौड़ी के, आँख बदल ले, ईद मुहर्रम हो जाए, राई का पर्वत बना लेती है, मुँह चुराएगी आदि । कहीं-कहीं कहानीकार ने अलंकारों का भी प्रयोग कर अपनी भाषा-शैली को मनोरम बना दिया है । लेकिन इससे भाषा में काव्यत्व का बोझ नहीं आ पड़ा है, जैसे - हामिद के पैरों में तो जैसे पर लग गए हों (उत्प्रेक्षा अलंकार), कितना मनोहर! कितना सुहावना प्रभात है ! (विस्मय अलंकार) ! इसके अतिरिक्त इनकी भाषा-शैली व्यंग्यपूर्ण, नाटकीय एवं सूक्तियों से भरी-पूरी है । छोटे-छोटे वाक्यों से गठित इनकी शैली प्रवाहपूर्ण है ।
इस प्रकार ईदगाह एक ऐसी कहानी है जो समय के साथ प्रासंगिक बनी रहती है। यह कहानी हमें मानवीय मूल्यों जैसे प्यार, त्याग और उम्मीद की याद दिलाती है। यह कहानी बच्चों के लिए एक बहुत ही अच्छी शिक्षा है। यह उन्हें त्याग, बलिदान और दूसरों की परवाह करने का महत्व सिखाती है।ईदगाह हिंदी साहित्य का एक अमूल्य रत्न है। इसे हिंदी साहित्य का एक उत्कृष्ट नमूना माना जाता है। यह कहानी हमें जीवन के मूल्यों को समझने में मदद करती है और हमें एक बेहतर इंसान बनने की प्रेरणा देती है।
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