कन्या भ्रूण हत्या एक सामाजिक मानवीय अपराध है कन्या भ्रूण हत्या, एक ऐसा घाव है जो समाज के मानवीय मूल्यों को गहराई से चोट पहुंचाता है। यह एक ऐसा कृत्य
कन्या भ्रूण हत्या एक सामाजिक मानवीय अपराध है
कन्या भ्रूण हत्या, एक ऐसा घाव है जो समाज के मानवीय मूल्यों को गहराई से चोट पहुंचाता है। यह एक ऐसा कृत्य है जिसमें गर्भ में पल रही एक निर्दोष कन्या को सिर्फ इसलिए मार दिया जाता है क्योंकि वह लड़की है। यह न केवल एक कानूनी अपराध है, बल्कि मानवता के खिलाफ एक गंभीर अपराध भी है।
हमारे समाज में लड़के और लड़की के बीच का भेदभाव इस समस्या की जड़ में है। लड़कों को परिवार का उत्तराधिकारी माना जाता है, जबकि लड़कियों को पराया धन। यह मानसिकता दहेज प्रथा को जन्म देती है, जिसके कारण कई परिवार लड़कियों के जन्म से डरते हैं। इसके अलावा, लिंगानुपात में असंतुलन और सामाजिक दबाव भी इस समस्या को बढ़ावा देते हैं।
"अबला जीवन हाय! तुम्हारी यही कहानी,
आँचल में है दूध और आँखों मे पानी ।"
मैथिलीशरण गुप्त की ये पंक्तियों अक्षरशः सही जान पड़ती हैं। नारी आज भी अबला ही है, सबला नहीं। उसे अपने जीवन में अनेक बार खून का घूँट पीकर रहना पड़ता है और आँखों में आँसू के अतिरिक्त कुछ नहीं होता। भारत के लिए बड़े-बड़े विद्वानों ने सदैव यही माना है- 'यंत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता' अर्थात् जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। हमारे वेदों में भी नारी के कन्या रूप को अत्यंत पवित्र माना गया है और उसे पूजा जाता रहा है। उसे देवी के समान माना जाता है। उसके बिना सृष्टि की कल्पना ही असंभव है। नारी ने ही इस सृष्टि की रचना की है।
आज कन्या भ्रूण-हत्या हमारे समाज में एक अभिशाप के रूप में प्रकट हुआ है। यह एक ज्वलंत समस्या बनकर समूचे समाज को काल का ग्रास बना रही है। यदि हमने कन्या भ्रूण-हत्या पर रोक न लगाया तो ऐसा दिन न आ जाए कि सृष्टि से नारी जाति ही लुप्त हो जाए और सृष्टि का विकास ही रुक जाए। पुरुषों को जन्म देनेवाली नारी ही सृष्टि में न होगी तो पुरुषों का भी जन्म कैसे होगा। समाज एक ऐसे मोड़ पर खड़ा हो जाएगा, जहाँ केवल विनाशलीला ही दिखाई देगी। काश! मानव इस विडंबना को समझ पाता ।
जैसा कि आप जानते हैं कि आज हमारे समाज में कन्या भ्रूण हत्या का सामान्य प्रचलन हो गया है। माता के गर्भ में ही संतान का लिंग पता करके, यदि वह कन्या भ्रूण है तो गर्भ में ही उसे समाप्त कर दिया जा रहा है। उसे जन्म लेने से पहले ही मार दिया जाता है। यही नहीं समाज में यह प्रथा सामान्य रूप लेती जा रही है। हमारे समाज में कुछेक स्थानों पर तो ऐसी प्रथा है कि कन्या के जन्म लेते ही शोक व मातम छा जाता है और लड़के के जन्म लेने पर खुशियाँ मनाईं जाती हैं। भ्रूण-हत्या ने तो लिंग अनुपात को भी असंतुलित कर दिया है। यह असंतुलित लिंग अनुपात भविष्य में अनेक समस्याएँ उत्पन्न करेगा और कर भी रहा है।
यदि गहन दृष्टि से अवलोकन किया जाए तो हम इसी निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि यदि कन्या भ्रूण-हत्या जैसे नृशंस अपराध को कानूनी तौर पर नहीं रोका गया तो समाज का रूप विकृत हो जाएगा। यह कानूनन अपराध है। इस अपराध को रोकने के लिए सरकार को ठोस-से-ठोस कदम उठाने पड़ेंगे। सरकार ने इस अपराध को रोकने के लिए कदम उठाए हैं, परंतु भारत के हर क्षेत्र में इस अपराध की रोक-थाम नहीं हो पाई है। इस अपराध को देश के कोने-कोने से दूर भगाना होगा तभी एक संतुलित एवं स्वस्थ समाज की परिकल्पना साकार हो पाएगी। कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं। सबसे पहले, लोगों को इस समस्या के बारे में जागरूक करना बहुत जरूरी है। हमें लोगों को समझाना होगा कि लड़के और लड़की दोनों ही समान हैं और दोनों का समाज में बराबर का महत्व है। इसके अलावा, कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ कानून को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए। शिक्षा का प्रसार भी इस समस्या का समाधान है। शिक्षित समाज ही इस तरह की कुरीतियों को खत्म कर सकता है।
महिलाओं को सशक्त बनाना भी बहुत जरूरी है। जब महिलाएं आत्मनिर्भर होंगी, तो वे अपने अधिकारों के लिए लड़ सकेंगी और समाज में सम्मानजनक जीवन जी सकेंगी। सरकार को भी महिलाओं के लिए कल्याणकारी योजनाएं बनानी चाहिए ताकि वे समाज में आगे बढ़ सकें।
कन्या भ्रूण हत्या एक ऐसा सामाजिक बुराई है जिसे जड़ से उखाड़ फेंकना होगा। यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर सभी को एक साथ मिलकर काम करना होगा। हमें अपनी बेटियों को बचाने के लिए आगे आना होगा और एक ऐसा समाज बनाना होगा जहां हर बच्चे को समान अवसर मिले।
यह एक ऐसी लड़ाई है जिसे हमें जीतना है। आइए हम सभी मिलकर कन्या भ्रूण हत्या को रोकने का संकल्प लें और एक ऐसा समाज बनाएं जहां हर बच्चे का स्वागत हो।कन्या भ्रूण हत्या का विरोध करना सिर्फ एक कानूनी लड़ाई नहीं है, बल्कि मानवीय मूल्यों की रक्षा की लड़ाई है।हमारा समाज इस अभिशाप से तभी मुक्त हो सकाता है, जब हम स्त्री को पुरुषों के बराबर महत्त्व देंगे और एक सुखद व खुशहाल भविष्य की कामना करेंगे। यह तभी संभव है जब हम सृष्टि की निर्माता स्त्री का सम्मान करें उसे जीने का अधिकार दें और अपना भी भविष्य उज्ज्वल करें, क्योंकि जब नारी जीवित है तो परिवार जीवित है और जब परिवार जीवित है तो सामज जीवित है और जब समाज जीवित है तभी राष्ट्र भी जीवित है।
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