कुछ अजब सी कोशिशें रहीं इंसान को इंसान से दूर ले जाने की यह लेख मानवता के खिलाफ की गई कुछ अजीबोगरीब कोशिशों का विश्लेषण प्रस्तुत करता है। इन कोशिशों
कुछ अजब सी कोशिशें रहीं इंसान को इंसान से दूर ले जाने की
यह लेख मानवता के खिलाफ की गई कुछ अजीबोगरीब कोशिशों का विश्लेषण प्रस्तुत करता है। इन कोशिशों का उद्देश्य समाज में विभाजन पैदा करना, असहिष्णुता को बढ़ावा देना और अंततः मानवता को नष्ट करना ही है। लेख विभिन्न सामाजिक, क्षेत्रिक, राजनीतिक और धार्मिक कारणों की जांच करता है जो इन प्रयासों को बढ़ावा देते हैं। लेख में समाज, जाति, धर्म, लिंग, वर्ग और क्षेत्र जैसे आधारों पर समाज में विभाजन पैदा करने की कोशिशों को उजागर किया गया है। राजनीतिक ध्रुवीकरण और धार्मिक कट्टरता को भी गंभीर मुद्दों के रूप में देखा जा सकता है। लेख में ऐतिहासिक उदाहरणों के साथ-साथ वर्तमान में सामाजिक परिस्थितियों का भी उल्लेख किया गया है। लेख में इन चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक कदमों और मानवता को एकजुट करने के लिए आवश्यक तत्वों का भी उल्लेख है। इस लेख में शिक्षा, संवाद, सहयोग, सहिष्णुता और न्याय जैसे तत्वों को महत्वपूर्ण बताया गया है। लेख का उद्देश्य पाठकों को यह समझने में मदद करना है कि कैसे हम एक अधिक समावेशी और सौहार्दपूर्ण समाज का निर्माण कर सकते हैं। यह लेख हमें याद दिलाता है कि मानवता को एकजुट करने के लिए हमें एक साथ मिलकर काम करना होगा। हमें सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए प्रयास करने होंगे। हमें सभी धर्मों और जातियों के लोगों के बीच संवाद और सहयोग को बढ़ावा देना है हमें राजनीति को धर्म और जाति से अलग रखना होगा। हमें शिक्षा के माध्यम से लोगों को जागरूक करना पड़ेगा। हमें मानवता के मूल्यों को पुनर्जीवित करना होगा। अंत में, यह लेख हमें आशा देता है कि हम एक बेहतर दुनिया का निर्माण कर सकते हैं।
समाज में इंसानियत और सामाजिक संबंधों की अहम भूमिका है, और सदियों से इंसान ने मिलकर सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक प्रगति की है। लेकिन हाल के दशकों में कुछ अजीब प्रयास हुए हैं, जिनसे समाज में विभाजन, अविश्वास और भेदभाव की भावना बढ़ती जा रही है। समाज में एकजुटता, सहिष्णुता और सहयोग की भावना इंसानियत का आधार रही है, लेकिन आधुनिक समय में कई घटनाओं और कोशिशों ने इंसान को इंसान से दूर किया। मानव सभ्यता का इतिहास संघर्ष और सहयोग दोनों का मिश्रण है। जहां एक दूसरे के सहयोग ने प्रगति की राह दिखाई, वहीं संघर्ष और असहमति ने कई बार मानवता को खतरे में डाला। कुछ अजीबोगरीब कोशिशों ने मनुष्य को मनुष्य से अलग करने का प्रयास किया, जैसे सामाजिक विभाजन, राजनीतिक ध्रुवीकरण, धार्मिक कट्टरता, समाज में असहिष्णुता फैलाना और मानवता को नष्ट करना रहा है। इस लेख में इन कारणों का विश्लेषण किया जा रहा है और यह बताया गया है कि इन परिस्थितियों से कैसे उबरा जा सकता है। समाधान के रूप में संवाद, सहानुभूति, शिक्षा और समावेशन को बढ़ावा देने की आवश्यकता बताई जा रही है। इसके जरिए हम समाज में एकजुटता और समानता की भावना को मजबूत कर सकते हैं, जो इंसान को इंसान से दूर करने वाली परिस्थितियों को ठीक कर सकती है।
समाज में सामाजिक विभाजन मानवता के खिलाफ कोशिशें एक गंभीर समस्या बनी हुई है। क्षेत्र, जाति, धर्म, लिंग, वर्ग आदि के आधार पर समाज को बांटने की कोशिशें सदियों से की जाती रही हैं। इन विभाजनों का परिणाम सामाजिक असमानता, भेदभाव और शोषण के रूप में सामने आता है। उदाहरण के लिए, भारत में जाति व्यवस्था सदियों से सामाजिक विभाजन का एक प्रमुख कारण रही है। दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों को समाज के मुख्यधारा से अलग रखा गया है और उन्हें भेदभाव का सामना आजादी के ७५ साल बाद भी करना पड़ रहा है। राजनीतिक ध्रुवीकरण भी मानवता को कमजोर करने का मानवता के खिलाफ कोशिशें एक प्रमुख कारक है। राजनीति को एक खेल के रूप में देखा जा रहा है, जहां विरोधियों को शत्रु के रूप में देखा जा रहा है। राजनीतिक दल अपने स्वार्थ के लिए समाज को ध्रुवीकृत करते रहते हैं और लोगों को आपस में लड़वाते हैं। नफरत और दुर्भावना की भावनाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे सामाजिक ताना-बाना कमजोर होता जा रहा है। धार्मिक कट्टरता भी मानवता के खिलाफ कोशिशें एक गंभीर समस्या की तरह है। धर्म को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जिसका उपयोग लोगों को एक-दूसरे के खिलाफ भड़काने के लिए किया जाता है। धार्मिक कट्टरपंथियों द्वारा हिंसा और आतंकवाद को बढ़ावा दिया जाता है, जिससे समाज में भय और असुरक्षा का माहौल बनता चला जाता है। जातिवाद मानवता के खिलाफ कोशिशें एक ऐसी सामाजिक बुराई है जो भारत में सदियों से चलती चली आ रही है। जाति व्यवस्था के कारण समाज में गहरी दरारें पड़तीं जा रहीं हैं। उच्च जातियों द्वारा निम्न जातियों का शोषण किया जा रहा है और उन्हें समाज की मुख्यधारा से अलग रखा जाता है। जातिवाद के कारण सामाजिक असमानता और भेदभाव बढ़ता जा रहा है।
वर्तमान में तकनीकी विकास ने इंसान को पहले से कहीं अधिक जोड़ा है, लेकिन इसके साथ ही तकनीक ने समाज पर कुछ नकारात्मक प्रभाव भी डाला है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे व्हाट्स एप, फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम ने लोगों के बीच संवाद तो बढ़ाता जा रहा है, लेकिन इन प्लेटफॉर्म्स के जरिये नफरत फैलाने, अफवाहें प्रसारित करने और समाज में अलगाव को बढ़ावा देने का भी काम किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर गलत जानकारी और "फेक न्यूज" का प्रसार, साथ ही ऑनलाइन ट्रोलिंग की घटनाएं, समाज में कटुता और भेदभाव की भावना को मजबूत करती जा रही है। एक अध्ययन के अनुसार, सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने वाली बातें और अफवाहें तेजी से प्रसारित होतीं हैं, जिसके कारण समाज में द्वारबंदी और सामूहिक अविश्वास की भावना बढ़ती जा रही है। इसके परिणामस्वरूप, तकनीक और सोशल मीडिया के सकारात्मक पहलू के बावजूद, उनके नकारात्मक प्रभावों से समाज में एकजुटता और सहिष्णुता की भावना में कमी आ रही है और इंसान को इंसान से दूर करने का कारण बना है। यह स्थिति यह दर्शाती है कि हमें तकनीक का इस्तेमाल करते समय उसके संभावित दुष्प्रभावों से भी बचने की आवश्यकता है।
धार्मिक और सांस्कृतिक विभाजन भी इंसान को इंसान से दूर करने के कारणों में से समाज में दरार उत्पन्न करने का एक प्रमुख कारण बनता जा रहा है। धार्मिक मतभेदों और सांस्कृतिक भिन्नताओं के कारण नफरत और अविश्वास की भावना उत्पन्न होती जा रही है। उदाहरण के तौर पर, भारत में हिंदू-मुस्लिम के आपसी संघर्ष ने समाज के विभिन्न वर्गों को एक-दूसरे से अलग किया है। इस विभाजन के परिणामस्वरूप सामूहिक हिंसा और दंगों की घटनाएं बढ़तीं जा रहीं हैं, जिससे लोगों के बीच भावनात्मक दूरी और तनाव बढ़ता जा रहा है। दुनिया भर में विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के बीच संघर्ष और भेदभाव का लंबा इतिहास रहा है, जो समाज में शत्रुता और संदेह की भावना को बढ़ावा देता है। भारत में हिंदू-मुस्लिम विभाजन इसका स्पष्ट उदाहरण है, जो समाज में सामूहिक हिंसा और सामाजिक असहमति की स्थिति उत्पन्न करता है। इस तरह के संघर्षों ने समाज के भीतर असुरक्षा और अविश्वास की भावना को प्रबल किया है, जिससे सामाजिक समरसता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता जा रहा जा रहा है।
धार्मिक और सांस्कृतिक भिन्नताएं समाज में दूरी और भेदभाव की भावना को बढ़ाती हैं, और यह आवश्यक है कि इन मतभेदों को समझने और सहिष्णुता को बढ़ावा देने के उपायों पर ध्यान दिया जाए, ताकि समाज में शांति और एकजुटता बनी रहे।
आर्थिक असमानता भी इंसान को इंसान से दूर करने के कारण समाज में एक बड़ा कारण बन चुकी है। समाज में अमीरी और गरीबी के बीच की खाई दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है, जिसके परिणामस्वरूप समाज में गहरी दरारें उत्पन्न होतीं जा रही हैं। अमीरी और गरीबी के बीच बढ़ती दूरी ने न केवल सामाजिक स्तर पर बल्कि व्यक्तिगत संबंधों में भी अविश्वास और संकोच की भावना को जन्म दिया है।
उदाहरण के तौर पर, शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच आर्थिक अंतर बढ़ने से दोनों समुदायों के बीच समझ और सहयोग की भवना की कमी हो रही है। शहरी क्षेत्रों में रहने वालों के पास बेहतर संसाधन और सुविधाएं उपलब्ध हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में लोग बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित रह जाते हैं। यह अंतर दोनों समुदायों के बीच सामाजिक दूरी और भेदभाव को बढ़ाता जा रहा है।
आर्थिक असमानता के कारण लोग एक दूसरे से अलग-थलग से पड़ते जा रहे हैं, जिससे सामाजिक सहयोग और परस्पर समझ में कमी आई है। यह असमानता न केवल सामाजिक संबंधों को प्रभावित करती है, बल्कि समाज में असंतोष और असुरक्षा की भावना भी बढ़ाती जा रही है। इस स्थिति को सुधारने के लिए समान अवसरों और संसाधनों के वितरण में सुधार की निरंतर आवश्यकता है, ताकि समाज में एकता और सहयोग को बढ़ावा दिया जा सके।
राजनीतिक असहमति और विरोधाभास भी इंसान को इंसान से दूर करने के कारणों में से एक हैं। राजनीति में मतभेद, भाषायी संघर्ष और विचारधारा की टकराव से समाज में गहरी दरारें उत्पन्न होतीं जा रहीं हैं। जैसे कि, अमेरिका में रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स के बीच की गहरी खाई है, भारत में विपक्ष और सत्ताधारी दल के बीच का संघर्ष इन सब ने समाज में अलगाव और असहमति की भावना को भी जन्म दिया है। राजनीतिक दृष्टिकोण में भिन्नताएं भी समाज में विभाजन का कारण बनती हैं। विचारधारा की टकराहट और राजनीतिक दलों के बीच के मतभेदों ने समाज में अलगाव की भावना को जन्म दिया है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स के बीच की गहरी खाई और भारत में विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच के संघर्षों ने समाज में विश्वास की कमी पैदा की है।
गुजरात में 2002 में हुए सांप्रदायिक दंगे एक ऐसा उदाहरण है जहां धर्म का इस्तेमाल लोगों को एक-दूसरे के खिलाफ भड़काने के लिए किया गया था। इन दंगों में हजारों लोग मारे गए और लाखों लोग अपनी जगह से विस्थापित हुए। फ्रांस में धर्मनिरपेक्षता को लेकर हुआ विवाद एक अच्छा उदाहरण है, जो इस्लाम और ईसाई धर्म के बीच के तनाव को दर्शाया है। 2004 में फ्रांस ने स्कूलों में इस्लामी हेडस्कार्फ़ पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था, जो इस्लामिक समुदाय के लिए अत्यधिक विवादास्पद रहा था। यह निर्णय धार्मिक और सांस्कृतिक भेदभाव की भावना को बढ़ावा देने का कारण बना था। इसके परिणामस्वरूप, फ्रांस में इस्लामिक समुदाय और अन्य समुदायों के बीच अविश्वास और तनाव बढ़ता चला गया था।
धर्मनिरपेक्षता के इस मुद्दे ने फ्रांस में एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया था, विशेष रूप से जब सरकारी निर्णय ने धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक पहचान पर सवाल उठाए थे। यह कदम इस्लामिक समुदाय के लिए अपमानजनक रहा था और इसके कारण समाज में धार्मिक भेदभाव की भावना और अधिक प्रबल होती गई थी। यह उदाहरण यह सिद्ध करता है कि कैसे राजनीतिक और सामाजिक निर्णय धार्मिक समुदायों के बीच तनाव और विभाजन का कारण बन सकते हैं, जिससे समाज में सामूहिक अविश्वास और अलगाव बढ़ता है।
रोहिंग्या मुसलमानों का संकट म्यांमार में वर्ष 2017 के भेदभाव और हिंसा का भयावह उदाहरण रहा है। म्यांमार सरकार ने इस अल्पसंख्यक समुदाय को नागरिकता से वंचित करके और उनके खिलाफ अत्याचार किए, जिससे लाखों लोग शरणार्थी बन गए। इस उत्पीड़न के परिणामस्वरूप, रोहिंग्या मुसलमानों को अपने घरों से पलायन करना पड़ा था, और यह वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों का उल्लंघन और धार्मिक भेदभाव को उजागर करने वाला एक बड़ा संकट बन गया ।
म्यांमार में यह घटनाएं दर्शाती हैं कि धार्मिक भेदभाव और राज्य द्वारा उत्पन्न असमानता समाज में गहरी खाईयाँ उत्पन्न करती हैं। इस संकट ने यह सिद्ध किया कि धर्म और जातीयता के आधार पर उत्पीड़न से समाज में विभाजन और हिंसा बढ़ती है। रोहिंग्या मुसलमानों का उत्पीड़न और उनका सामूहिक पलायन एक स्पष्ट उदाहरण है कि कैसे सामाजिक और धार्मिक भेदभाव मानवता को प्रभावित कर सकते हैं।
कोविड-19 महामारी ने दुनिया भर में सामाजिक और व्यक्तिगत दूरी को बढ़ाया था। लॉकडाउन, यात्रा प्रतिबंध और सामाजिक संपर्क की कमी ने लोगों के बीच शारीरिक और मानसिक दूरी बढ़ाई थी। महामारी के दौरान कई देशों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ीं और लोग अकेलेपन और निराशा का सामना करने लगे थे। यह एक अजीब स्थिति थी, जिसने लोगों को एक-दूसरे से शारीरिक और मानसिक रूप से दूर कर दिया था। कोविड-19 ने वैश्विक स्तर पर एक नया विभाजन उत्पन्न किया, जिससे व्यक्तिगत और सामाजिक रिश्तों में दूरी आई। इसके नकारात्मक प्रभावों ने लाखों लोगों को अकेलापन महसूस कराया था। यह उदाहरण दिखाता है कि वैश्विक संकट भी समाज में एकजुटता के बजाय विभाजन का कारण बन सकता है।
इन परिस्थितियों से उबरने के लिए हमें एकजुट होकर काम करना होगा। हमें सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए प्रयास करने ही होंगे। हमें सभी धर्मों और जातियों के लोगों के बीच संवाद और सहयोग को बढ़ावा देना होगा। हमें राजनीति को धर्म और जाति से अलग रखना होगा। हमें समय-समय पर शिक्षा के माध्यम से लोगों को जागरूक करना होगा। हमें मानवता के मूल्यों को पुनर्जीवित करना होगा।
समाज में अलगाव को कम करने का सबसे प्रभावी तरीका संवाद और सहानुभूति को बढ़ावा देना है। अगर लोग खुलकर बातचीत करें और एक-दूसरे के दृष्टिकोण को समझने की कोशिश करें, तो भेदभाव और असहमति को कम किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, अंतर-धार्मिक संवाद और सांस्कृतिक आदान-प्रदान से सामाजिक एकता को बढ़वा मिल सकता है। जब-जब लोग एक-दूसरे के दृष्टिकोण को समझने की कोशिश करते हैं, तो नफरत और भेदभाव की भावना कम होती है। यह संवाद समाज में सहिष्णुता और समझ को बढ़ाता है और समाज में समावेशन की भावना को प्रोत्साहित करता है। संवाद एक महत्वपूर्ण उपकरण है जो लोगों को एकजुट कर सकता है। हमें सभी धर्मों और जातियों के बीच संवाद को बढ़ावा देना चाहिए और एक-दूसरे को समझने और सम्मान करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इस तरह, समाज में एकजुटता और सहयोग की भावना बढ़ सकती है।
शिक्षा और जागरूकता समाज में भेदभाव को समाप्त करने का सबसे प्रभावी उपाय साबित हो सकते हैं। यह आवश्यक है कि लोगों को यह समझाया जाए कि विविधताएं समाज को समृद्ध करती हैं, न कि बांटती हैं। स्कूलों और विश्वविद्यालयों में सहिष्णुता और समावेशिता पर पाठ्यक्रम लागू किए जा सकते हैं, जो भविष्य में इन समस्याओं से निपटने के लिए लोगों को तैयार करेंगे। शिक्षा समाज के हर वर्ग में समानता और समझ की भावना को बढ़ावा देती है। जागरूकता अभियानों के माध्यम से यह बताया जा सकता है कि सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को स्वीकारना समाज के लिए लाभकारी साबित होता है। इसके अलावा, समावेशिता और सहिष्णुता से संबंधित पाठ्यक्रमों को शिक्षा में शामिल किया जा सकता है। शिक्षा सबसे प्रभावी हथियार है जो समाज में बदलाव ला सकती है, और हमें इसे लोगों को जागरूक करने और मानवता के मूल्यों को सिखाने के लिए इस्तेमाल करना चाहिए।
सोशल मीडिया और तकनीक ने समाज में विभाजन को बढ़ावा दिया है, लेकिन उनका सही उपयोग समाज को जोड़ने में भी सहायक हो सकता है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर सकारात्मक संदेशों को बढ़ावा देना और नफरत फैलाने वाली सामग्री को नियंत्रित करना बहुत जरूरी है। उदाहरण के तौर पर, फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर जैसी कंपनियों को गलत सूचनाओं को रोकने के लिए सख्त नियम और नीतियां लागू करनी चाहिए। जबकि तकनीकी प्लेटफॉर्म्स ने समाज में दूरी बढ़ाई है, उनका सही उपयोग सामाजिक एकता को बढ़ावा देने में सहायक साबित हो सकता है। सोशल मीडिया पर सकारात्मक सूचनाओं और संदेशों का प्रसार और घृणा फैलाने वाले पोस्ट्स की रोकथाम से समाज में समझ और एकजुटता को बढ़ाया जाना चाहिए।
समाज में समानता और समावेशन की भावना बढ़ाना जरूरी है। जब हर व्यक्ति को समान अधिकार और अवसर मिलते हैं, तो अलगाव की भावना कम होती है। आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए सरकारों को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए, जो सभी वर्गों के लिए समान अवसर प्रदान करें। समान अवसरों और अधिकारों की व्यवस्था को बढ़ावा देना अलगाव को कम करने का प्रभावी उपाय है। यह समाज के विभिन्न वर्गों के बीच व्यक्तिगत और सामाजिक संबंधों को सुधारता है। इसके लिए सरकारों को अपनी नीतियों में सुधार करते हुए कमजोर वर्गों को सशक्त बनाना चाहिए। सहयोग भी एक महत्वपूर्ण उपकरण है जो समाज को मजबूत बना सकता है। हमें सभी धर्मों और जातियों के लोगों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना होगा। हमें उन्हें एक-दूसरे की मदद करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। सहिष्णुता भी एक महत्वपूर्ण गुण है जो समाज को मजबूत बना सकता है। हमें सभी धर्मों और जातियों के लोगों के प्रति सहिष्णुता का भाव विकसित करना ही होगा। हमें उनके विचारों और विश्वासों का सम्मान करना चाहिए। न्याय भी एक महत्वपूर्ण तत्व है जो समाज को मजबूत बना सकता है। हमें सभी के लिए समान न्याय सुनिश्चित करना चाहिए। हमें किसी के साथ भी भेदभाव नहीं करना चाहिए।
आवश्यक तत्व- मानवता सबसे महत्वपूर्ण तत्व है जो समाज को मजबूत बना सकता है। हमें मानवता के मूल्यों को पुनर्जीवित करना होगा। हमें सभी मनुष्यों को समान मानना चाहिए। सद्भावना भी एक महत्वपूर्ण तत्व है जो समाज को मजबूत बना सकता है। हमें सभी धर्मों और जातियों के लोगों के बीच सद्भावना को बढ़ावा देना चाहिए। एकता भी एक महत्वपूर्ण तत्व है जो समाज को मजबूत बना सकता है। हमें सभी धर्मों और जातियों के लोगों को एकजुट करने के लिए प्रयास करना चाहिए। सद्भाव भी एक महत्वपूर्ण तत्व है जो समाज को मजबूत बना सकता है। हमें सभी धर्मों और जातियों के लोगों के बीच सद्भाव को बढ़ावा देना चाहिए। शांति भी एक महत्वपूर्ण तत्व है जो समाज को मजबूत बना सकता है। हमें हिंसा और आतंकवाद का विरोध करना होगा। हमें शांतिपूर्ण और अहिंसक तरीकों से समस्याओं का समाधान करना चाहिए।
समाज में इंसानियत और सामाजिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए हमें कई अजीब कोशिशों का सामना करना पड़ रहा है, जो इंसान को इंसान से दूर कर रही हैं। इन समस्याओं का समाधान शिक्षा, संवाद, सहानुभूति और समानता में छिपा हुआ है। समाज में विश्वास और एकता की भावना को बढ़ावा देकर हम इन चुनौतियों का सामना कर सकते हैं और एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकते हैं। हालांकि, कुछ अप्रत्याशित प्रयासों ने समाज में विभाजन और असहिष्णुता को बढ़ाया है, लेकिन संवाद, सहानुभूति और समानता के माध्यम से हम इन समस्याओं का समाधान निरंतर कर सकते हैं। यह लेख यह सिद्ध करता है कि कठिन परिस्थितियों के बावजूद, सही दिशा में प्रयासों से हम एक समावेशी और बेहतर समाज बना सकते हैं। समाज में विभाजन और भेदभाव की कोशिशें हमें एकजुट होने की बजाय अलग कर रही हैं, लेकिन अगर हम शिक्षा और सहिष्णुता को बढ़ावा दें, तो हम इन खतरों से उबर सकते हैं।
डॉ.(प्रोफ़ेसर) कमलेश संजीदा गाज़ियाबाद , उत्तर प्रदेश
पता- बी-१७७ , गली नंबर. 04, महेन्द्रा एन्क्लेव , शास्त्री नगर, गाज़ियाबाद , उत्तर प्रदेश, भारत(इंडिया)
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