फैशन और समाज पर हिंदी निबंध फैशन और समाज का आपस में गहरा संबंध है। फैशन केवल कपड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का
फैशन और समाज पर हिंदी निबंध
फैशन और समाज का आपस में गहरा संबंध है। फैशन केवल कपड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का माध्यम है। यह समाज में व्यक्ति की पहचान, स्थिति और विचारधारा को दर्शाता है। फैशन के माध्यम से लोग अपनी व्यक्तिगत शैली, रुचि और सामाजिक संदर्भों को प्रदर्शित करते हैं। समाज के विभिन्न वर्गों और समुदायों में फैशन का स्वरूप अलग-अलग होता है, जो उनकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, आर्थिक स्थिति और सामाजिक मान्यताओं पर निर्भर करता है।
फैशन की अंधी दौड़
आधुनिक समाज में फैशन की प्रवृत्ति निरंतर बढ़ती जा रही है। आधुनिक नवयुवक और नवयुवतियाँ फैशन की अंधी दौड़ में समान रूप से भाग रहे हैं। स्त्रियाँ स्वभाव से ही श्रृंगारप्रिय होती हैं, परंतु आधुनिक समाज में स्त्रियों के साथ पुरुष भी इस क्षेत्र में अग्रसर हो रहे हैं। इसका कारण क्या है ? इसका कारण है कि प्रत्येक व्यक्ति के मन में स्वयं को दूसरों के समक्ष सुंदर एवं आकर्षक रूप में प्रस्तुत करने की भावना विद्यमान रहती है। फैशन से मनुष्य का व्यक्तित्व तराशे हुए हीरे के टुकड़े की तरह निखर उठता है। इसके अतिरिक्त व्यक्ति के मन में नवीनता के प्रति एक विशेष आकर्षण रहता है। फैशन के द्वारा व्यक्ति के मन को संतुष्टि मिलती है। समाज में जो व्यक्ति परंपरा प्रिय होने के कारण फैशन से घृणा करते हैं, उन्हें सामाजिक सम्मान से वंचित रहना पड़ता है। समाज ऐसे व्यक्तियों को लकीर का फकीर की संज्ञा देता है। सर्वगुण संपन्न होने पर भी ऐसे व्यक्तियों को उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाता है।
फैशन का संबंध संपूर्ण मानव समाज से है। विश्व के सभी देशों के लोग प्रचलित फैशन के अनुसार स्वयं को आकर्षक रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं। संस्कृति और जलवायु का भी आपस में गहरा संबंध है। पाश्चात्य देशों में फैशन की होड़ बहुत तीव्र है। फ्रांस में स्त्रियाँ नित्य ही नवीन फैशन के वस्त्र धारण करती हैं। पाश्चात्य देशों में आजकल हल्के परिधानों की परंपरा का नया फैशन चल रहा है जिसे स्ट्रिंग कहा जाता है।
फैशन का संबंध केवल आधुनिक युग से नहीं है बल्कि आदिकाल से मानव का झुकाव इस ओर रहा है। प्राचीन काल की मूर्तियों को देखकर कहा जा सकता है कि हज़ारों वर्ष पहले भी भारतीय नारियाँ विभिन्न प्रकार से केश विन्यास करती थीं। आज भी अजंता-एलोरा की गुफाओं में बने भित्तिचित्र देखकर, उनमें बनी रमणियों के बने जूड़े देखकर कला-पारखी मंत्र- मुग्ध हो जाते हैं। प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है कि स्त्रियाँ अपने पति को रिझाने के लिए सोलह शृंगार करती थीं। भारत में बने वस्त्र विदेशों में भी निर्यात होते थे।
भारतीय संस्कृति के लिए घातक
आधुनिक युग में नवयुवक और नवयुवतियाँ पश्चिमी देशों में प्रचलित फैशन की नकल करना गौरव की बात समझते हैं। विदेशी फैशन की बढ़ती हुई होड़ भारतीय संस्कृति के लिए घातक सिद्ध हो रही है। नवयुवतियाँ फैशन का अर्थ अंग- प्रदर्शन समझने लगी हैं। पाश्चात्य सभ्यता की चकाचौंध में अंधी हो चुकीं भारतीय रमणियाँ विदेशी परिधानों को धारण करना गौरव की बात समझने लगी हैं। पाश्चात्य देशों के फैशन का भारतीयों के मानस पर गहरा प्रभाव पड़ चुका है। अमेरिका और माक इंग्लैंड में आयोजित होने वाले फैशन शो अब भारत में आयोजित होने लगे हैं। पाश्चात्य पहनावे स्कर्ट, स्लैक्स, मिडी आदि भारतीय पहनावों; जैसे—साड़ी, सलवार कमीज़ों आदि पर हावी हो चुके हैं। शहर हो या गाँव, नवयुवक एवं नवयुवतियाँ मैं दोनों ही जींस को समान रूप से अपनाए हुए हैं। वर्तमान युग में नवयुवतियाँ युवकों जैसे केश रखती हैं और युवक युवतियों की तरह बाल बढ़ाकर अपने अहम् को संतुष्ट करते हैं। आजकल फैशन पर चलचित्रों का भी बहुत प्रभाव पड़ता है। आजकल युवक और युवतियाँ फिल्मी सितारों की नकल करते हैं। उनके जैसे केश विन्यास, पहनावा आदि अपनाते हैं।
इस फैशन का स्वास्थ्य पर भी कुप्रभाव पड़ता है। अधिक चुस्त कपड़े पहनने से शरीर में विभिन्न प्रकार के रोग हो सकते हैं। लोग अप्राकृतिक तरीकों से प्राकृतिक चीज़ों का नाश कर रहे हैं। सबसे बड़ा नुकसान यह है कि आधुनिकता के वशीभूत होकर धूम्रपान एवं मदिरापान करने को भी हम फैशन के अंतर्गत समझते हैं। यदि हम आज भी अपनी प्राचीनतम परंपरा और सुसंस्कृति को अपनाएँ तो हम जीवन में कभी भी हार नहीं मान सकते हैं।
समाज और फैशन का यह संबंध हमेशा से गतिशील रहा है। फैशन न केवल समाज को प्रभावित करता है, बल्कि समाज के बदलते हुए मूल्य और मानदंड भी फैशन को नई दिशा देते हैं। इस प्रकार, फैशन और समाज एक-दूसरे के पूरक हैं और दोनों का विकास एक-दूसरे के साथ जुड़ा हुआ है।
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