ऋतुराज बसंत पर निबंध बसन्त ऋतु की मादकता कवियों के मन-मानस को आदिकाल से आकर्षित करती रही है। प्रकृति की मनोहारी गोद में कवियों के हृदय में विभिन्न प्
ऋतुराज बसंत पर निबंध
बसन्त ऋतु की मादकता कवियों के मन-मानस को आदिकाल से आकर्षित करती रही है। प्रकृति की मनोहारी गोद में कवियों के हृदय में विभिन्न प्रकार की कल्पनाएँ तथा भावनाएँ प्रस्फुटित होती हैं। कवियों ने प्रकृति के विभिन्न रूपों का बड़ा ही आकर्षक तथा भव्य चित्र अंकित किया है। बसन्त ऋतु में कवियों के मन-मस्तिष्क में ऐसी मोहक मादकता एवं चेतना जाग्रत होती है कि उनकी कविता में बसन्त सुषमा का स्वाभाविक चित्रण अपने आप उपस्थित हो जाता है।
बसन्त का आगमन
कोयल की मधुर कूक मन हृदय को हरने वाली है।अमराइयों का बौर मधुर-मधुर सुगन्ध बिखेर रहा है। धरती ने सरसों के पीले पुष्पों के रूप में पीली चादर ओढ़ ली है। मोर आनन्द में भरकर पंख फैलाकर नृत्य कर रहे हैं। पक्षियों की मीठी तान हृदय वीणा के तारों को झंकृत कर रही है। वृक्षों ने सुन्दर पल्लवों से अपने शरीर को आच्छादित कर लिया है। ऐसा प्रतीत होता है कि जड़ एवं चेतन सभी बसन्त के आगमन से मदमस्त होकर आनन्द का अनुभव कर रहे हैं। वायु मधुर सुगन्ध को चारों ओर बिखेरकर वातावरण को सरस तथा सुगन्धमय बना रही है। कितना मादक तथा सुहावना मौसम है यह! न अधिक गर्मी का प्रकोप है और न अधिक शीत!
"बदल गयी है प्रकृति, समय ने,
भी अब पलटा खाया है।
फिर से सभी वनस्पतियों में,
नवजीवन-सा आया है।
फूलों के मिस लतिकाएँ सब,
मन्द मन्द मुसकाती हैं।
पल्लव रूपी पाणि हिलाकर,
मन के भाव बताती हैं ॥"
बसन्त की छटा
प्रकृति का अंग-अंग इस ऋतु में दमक उठा है। जड़ एवं चेतन एक नई चेतना तथा स्फूर्ति का अनुभव कर रहे हैं। प्रकृति ने मनमोहक रूप धारण कर लिया है, उसकी छवि नेत्रों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। कोयल का राग वातावरण में सरसता तथा मधुरता घोल रहा है। चन्द्रमा की शीतल किरणें अमृत की वर्षा कर रही हैं समस्त वातावरण मनोरम हो गया है। ऐसे वातावरण में सांसारिक चिन्ताओं तथा समस्याओं से तनावपूर्ण मानव कुछ क्षण के लिए विश्राम तथा शान्ति का अनुभव करता है। चिरकाल से प्रकृति मानव के सुख-दुःख की सहचरी रही है।
बसन्त की आभा मानवों को अपार प्रसन्नता प्रदान करने वाली है। अपने परिश्रम को साकार रूप में देखकर किसान फूले नहीं समा रहे हैं। स्त्रियाँ तथा बालिकायें आम तथा जामुन के बगीचों में आनन्द विभोर होकर लोकगीत गा रही हैं। शीतल पवन का स्पर्श पाकर वृक्ष भी झूम-झूमकर अपनी प्रसन्नता का परिचय दे रहे हैं। शीत तथा गर्मी के प्रकोप से मानव को कुछ समय के लिए छुटकारा मिल गया है। धरती का कण-कण पुलकित होकर रोमांचित हो उठा है। ऐसा प्रतीत होता है मानो बसन्त ऋतु मानव के बोझिल तथा उदासीन जीवन को सरस बनाने के लिए ही इस धरती पर अवतरित हुई है।आकाश से पृथ्वी पर एक नई आभा झलक रही हैं। तालाब, नदी, पर्वत तथा वृक्ष शोभा का भण्डार प्रतीत हो रहे हैं।
बसन्त का महत्व
बसन्त का महत्व इसलिए भी अधिक है कि इस ऋतु में ही हिन्दुओं का पावन पर्व होली सम्पन्न होता है। होली के अवसर पर लोकगीतों की स्वर लहरी वातावरण को सरस तथा मनोरम बना देती है। गाँव के लोग होली के गीत गाते हैं इसका श्रेय बसन्त की मादक छटा को जाता है जो उनको गुनगुनाने के लिए विवश कर देती है।मानव स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद इस पावन वातावरण में भ्रमण करने से शरीर के अनेक रोगों का निवारण होता है। इसकी शुद्ध वायु मन तथा मस्तिष्क में नवीन चेतना का संचार करने वाली है। रक्त का परिभ्रमण भी उचित मात्रा में होता है जिससे रक्तचाप से सम्बन्धित अनेक रोगों का अन्त होता है। उदर की बहुत-सी बीमारियों से छुटकारा मिल जाता है। जिस और दृष्टि जाए उधर नवीन आभा तथा सरसता इठलाती हुई नजर आती है। जनसामान्य सांसारिक चिन्ताओं से कुछ समय के लिए विराम पा जाता है।
मानव स्वभाव से उत्सव प्रेमी है। भारत में जितने उत्सव सम्पन्न होते हैं, उतने शायद ही किसी देश में मनाये जाते हों ।बसन्त के आगमन के साथ ही शीत का प्रकोप शान्त हो जाता है। बसन्त के शुभागमन के उपलक्ष्य में लोग पीले वस्त्र धारण करते हैं। इस समय रबी की फसल पककर तैयार हो जाती है। अपने श्रम की फसल के रूप में साकार देखकर किसान फूले नहीं समाते हैं। बंगाल तथा असम के लोग बसन्त पंचमी के दिन सरस्वती पूजन करते हैं। बसन्त ऋतु में हाथ पैर ठिठुरा देने वाले शीत का अन्त हो जाता है ।
उपसंहार
बसन्त मानव-जाति में प्रेम तथा उल्लास का संचार करता है। सबके मन में स्फूर्ति तथा उत्साह का संचार होता है। कुछ समय के लिए मानव चिन्ता एवं संघर्षों से मुक्त होकर सुख तथा शान्ति का अनुभव करता हैं। आइए हम सब मिलकर इस हर्ष, उत्साह एवं आशा की त्रिवेणी प्रवाहित करने वाले इस पावन पर्व को मनाकर जीवन को सफल बनाएँ।
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