सुमित्रानंदन पंत की काव्य भाषा सर्वाधिक संगठित है सुमित्रानंदन पंत की काव्य भाषा को सर्वाधिक सुगठित माना जाता है। उनकी भाषा में प्रवाहमयता, संगीतात्म
सुमित्रानंदन पंत की काव्य भाषा सर्वाधिक संगठित है
सुमित्रानंदन पंत की काव्य भाषा को सर्वाधिक सुगठित माना जाता है। उनकी भाषा में प्रवाहमयता, संगीतात्मकता और सौंदर्यबोध का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। उन्होंने खड़ी बोली को काव्य की भाषा के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।अनुभूति पक्ष की भाँति पंत जी के काव्य का अभिव्यक्तिपक्ष भी पूर्ण समर्थ एवं सफल है। कलापक्ष की दृष्टि से उनका काव्य सर्वथा सम्पन्न एवं नवीन है। यह नवीनता, भाषा अलंकार, छन्द, शब्द संगठन आदि सभी क्षेत्रों में दृष्टिगत होती है। भाषा की सार्थकता में तो पंत पूर्ण पटु है। उसकी अर्थ शक्ति का जैसा बोध उन्हें है वैसा किसी अन्य को नहीं। शब्द-चयन अथवा शब्द संगठन के क्षेत्र में वे अनोखे हैं। उनकी 'परिवर्तन' कविता में इस विशेषता के दर्शन सहज हैं। पन्त जी की भाषा में कोमलता और संगीत का माधुर्य है। उनकी अभिव्यक्ति पक्ष की निम्नलिखत विशेषताएँ हैं-
कल्पना की कोमलता
यह पन्त जी की काव्य-कला की प्रमुख विशेषता है। इस सम्बन्ध में कविवर श्री बच्चन जी का निम्नलिखित कथन बिल्कुल सटीक है- "पन्तजी कल्पना के गायक हैं, अनुभूति के नहीं, इच्छा के गायक हैं वासना, तीव्रतम इच्छा के नहीं।"
प्राकृतिक चित्रों के अंकन में अपनी कल्पना के सहारे उन्होंने जो चित्र खींचा है वह नितान्त मोहक एवं हृदयाकर्षक है। इसके लिए उनके द्वारा ग्रहीत प्राकृतिक उपादानों की कुशलता आँग्लकवि वर्डसवर्थ जैसे कवियों की तरह है 'पन्त जी की कोमल-कांत कल्पना की कमनीयता का एक उदाहरण द्रष्टव्य है ।
"उन्माद यौवन से उभर घटा-सी नव असाढ़ की सुन्दर,
अति श्यामचरण, श्लथ मन्द चरण,
इठलाती आती ग्राम युवति,
यह गजगति सर्प डगर पर ।। "
कला की चित्रमयता
पंत की कल्पना इतनी उर्वर तथा अनुभूति इतनी गहरी है कि उसके सम्मुख जाग्रत हुआ, भाव चित्रवत् प्रतीत होता है। वे भावों, मुद्राओं तथा वस्तु-चित्रण में इतनी सजीवता ला देते हैं कि जिससे उसका चित्र सम्मुख उपस्थित हो जाता है। यह उनकी चित्रमयता की परम विशेषता है। सुहाग की मधुमयी रात्रि में अपने प्रियतम के पास जाती हुई नायिका का चित्रण कितना रम्य एवं सजीव है-
" अरे वह प्रथम मिलन अज्ञात । विकम्पित उर मृदु पुलकित गात।
सशक्ति ज्योत्स्ना-सी चुपचाप, जड़ित पद नमित पलक हिमपात ।।
लाज की छुई-मुई-सी म्लान
प्रिये
प्राणों की प्राण । । "
पन्त की प्रतिभा सार बिन्दुओं के शीघ्र ग्रहण में अति सफल है। इसके अनन्तर 'संध्या' के सौंदर्य का चित्र भी अधोलिखित पंक्तियों में दर्शनीय है-
"बाँसों का झुरमुट
संध्या का झुरपुट
है चहक रही चिड़िया
यहाँ बाँसों का 'झुरमुट'
वैसा अन्यत्र नहीं मिलता।
करतीं टी बी टुट् टुट् ।”
और 'संध्या का 'झुरपुट' द्वारा जो चित्र अंकित किया गया है ।
भाषा
पन्त जी की भाषा अतिकोमल खड़ी बोली है। भाषा के सम्बन्ध में वे स्वयं कहते हैं- “भाषा संसार का नादमय चित्र है, ध्वनिमय स्वरूप है, यह विश्व की हृत् तन्त्री की झंकार है- जिसके स्वरूप में वह (कवि) अभिव्यक्ति पाता है।"
पन्त ने संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग अधिक किया है। अंजान, दीठि, दई, कारे, काजर जैसे ब्रजभाषा के प्रचलित शब्दों के प्रयोग भी यत्र-तत्र देखने को मिलते हैं। यद्यपि उनकी भाषा मधुर एवं कोमल है तथापि कहीं-कहीं विषयानुसार ओज तथा भयानक स्वरूप भी विद्यमान हैं- “शत्-शत् फेनोच्छवसित स्फीत फूत्कार भयंकर ।"
लाक्षणिकता, सांकेतिकता और मूर्तिमत्ता उनकी आज की प्रधान विशेषताएँ हैं। उनके काव्य में अंग्रेजी, फारसी, उर्दू आदि मुहावरों के प्रयोग भी एकाध स्थल पर हुए हैं- "अरे वे अपलक चार नयन आठ-आठ आँसू रोते निरुपाय ।"
पन्त जी की शैली में संगीतात्मकता, सरसता, मधुरता एवं व्यंजना शक्ति का प्राधान्य है। उनकी शैली अंग्रेजी, बंगला तथा संस्कृत के कवियों से अनुप्राणित है, जिसे गीतात्मक शैली के नाम से अभिहित किया जा सकता है। हिन्दी साहित्य जगत में यह शैली वस्तुतः एक नवीन शैली है।
अलंकार विधान
पन्त के काव्य में अलंकार अनिवार्य न होने पर भी आवश्यक होते हैं। उपमा, रूपक उनके प्रिय अलंकार हैं। उदाहरण हेतु 'छाया' कविता में अप्रस्तुत योजना का सौन्दर्य प्रस्तुत है-
'तरुवर के छायानुवाद-सी उपमा-सी भावुकता- सी
अविंदित भावाकुल भाषा-सी, कटी छटी नव कविता-सी।।'
यहाँ छाया को मूर्त रूप देने के लिए अप्रस्तुत योजना की गयी है, इसी प्रकार मूर्त के मूर्त उपमान के प्रयोग से उन्होंने उसमें सौन्दर्य लाने का प्रयत्न किया है- "उन्माद यौवन से उभर घटा-सी नव असाढ़ की सुन्दर।" कोई भी सहृदय व्यक्ति जिसने तन्मयता से नव आषाढ़ की काली घटा को देखा होगा वही कवि पंत की ग्राम तरुणि के उभरते यौवन की वास्तविक अनुभूति कर सकता है। अनुप्रास पर पन्त जी का पूर्ण अधिकार है। 'सहयोग सेवा शक्ति जग को, शासन का दुर्बल हरा भरा।' 'पशु पक्षी पुष्पों से प्रेरित......... 'शुभ शान्त में समाधिस्थ है, शाश्वत सुन्दरता की विभूति इसके अतिरिक्त साँगरूपक, उल्लेख, स्मरण, सदैव सम्मिलित अन्योक्ति, उत्तेजना, मानवीकरण, विशेषण, विपर्यय आदि अलंकार के व्यापक प्रयोग उनके काव्य में देखने को मिलते हैं।
शब्द संगठन
पन्त जी बहुत बड़े शब्द शिल्पी हैं। अपनी कविताओं में वे शब्दों का इस तरह व्यवहार करते हैं कि एक-एक शब्द मूर्त चित्र को व्यक्त करता है, किस भाव के लिए किस शब्द का औचित्य है, यह वे पूर्णतः जानते हैं। शब्दों की अन्तरात्मा और शरीर का जितना बोध पन्त को है उतना अन्य किसी को नहीं। अपने शब्द चयन की कुशलता के ही कारण वे एक कुशल चित्रकार की भाँति रंग, छाया तथा प्रकाश का चित्रण करने में सफल हैं। और कहीं-कहीं तो रूप, रस, गंध आदि का भी परिचय दे देते हैं। उनकी नक्षत्र, कविता सचित्र विशेषणों से युक्त है जहाँ वे एक ही शब्द से पूर्ण चित्र अंकित करने में सफल हो गये हैं। उदाहरण के लिए, स्तब्ध विश्व के अपलक विस्मय से अधिक व्यंजक नक्षत्र का चित्र क्या हो सकता है। इसी प्रकार अपनी बादल कविता में वे 'बादल' को मेघदूत की सफल कल्पना कहकर एक करुण भाव की सृष्टि करते हैं।
ध्वन्यात्मक चित्रण में भी कवि ने अद्भुत सफलता प्राप्त की है। सावन वर्णन की अधोलिखित पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं-
झम-झम, झम-झम मेघ बरसते हैं सावन के छम छम छम गिरती बूँदै तरुओं में छन के ।
चम चम बिजली चमक रही है उर में घन के थम-थम दिन के तम में सपने जगते मन के ।
यहाँ कवि सावन की अजस्र वर्षा का सजीव चित्र प्रस्तुत करता है । अत: बिम्ब विधान है।
छन्द विधान
कोमलता पन्त जी के छन्दों की प्रमुख विशेषता है। उनके छन्दों में शब्दों का मधुर स्पन्दन है, उनकी छन्द-योजना अत्यन्त व्यापक है। उन्होंने मात्र मात्रिक छन्दों का ही प्रयोग किया है। छन्द के सम्बन्ध में पन्त जी स्वयं लिखते हैं- "कविता हमारे प्राणों का संगीत है, छन्द हृदय कम्पन है, कविता का स्वभाव भी छन्द में लयमान होता है। जिस प्रकार नदी के तट अपने बन्धन में धारा की गति को सुरक्षित रखते हैं, जिसके बिना वह अपनी बन्धनहीनता में प्रभाव खो बैठती है, उसी प्रकार छन्द भी अपने नियन्त्रण से शब्द को स्पन्दन, कम्पन प्रदानकर निर्जीव शब्दों के रोड़ों में एक कोमलता लाकर उन्हें सजीव बना "देते हैं।" प्रचलित छन्दों में कवि पन्त को पीयूष वर्णन, रूपमाला, रोला आदि ही विशेष प्रिय हैं। उनके छन्द भाव की गति के अनुसार चलते हैं। उच्छ्वास नामक कविता में कवि कुछ ही पंक्तियों में अनेक छन्दों की रचना कर देता है।
"सिसकते स्थिर गान से
बाल- बादल-सा उठकर आज
सरल अस्फुट उच्छ्वास,
अपने छाया के पंखों में
नीरव घोष भरे शब्दों में
मेरे आँसू गूँथ, फैल गम्भीर मेघ
आच्छादित कर ले सारा आकाश ।।
सारांश यह कि पन्त के छन्दों में चित्रोपमता एवं कोमलता सर्वत्र बिखरी है। उनके छन्दों के सम्बन्ध में डॉ० द्वारिकाप्रसाद सक्सेना की धारणा है- कवि के सभी छन्द अपनी स्वच्छन्दता में थिरकते-कूदते हैं और उनमें कोमल संगीत की तीन स्वरों को रिमझिम में बरसती छनती छनकती बुद-बुदों में उबलती छोटे-छोटे झरनों के कलाप में उछलती- किलकती हुई-सी प्रवाहित हो रही है।'
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि पन्त जी हिन्दी काव्य जगत् के अन्यतम कलाकार हैं। भाव और कला दोनों की दृष्टि से उनका काव्य-वैभव सम्पन्न है। कोमल, कल्पना, भाव-सौन्दर्य तथा अभिव्यक्ति पक्ष के सौन्दर्य की दृष्टि से वे इस युग के सर्वश्रेष्ठ कवि कहे जा सकते हैं।
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