आधुनिक जीवन की भागदौड़ में खोते रिश्ते और बदलते मानवीय मूल्य आजकल की भागदौड़ एवं प्रतिस्पर्धा से पूर्ण जिंदगी में रिश्ते-नाते की अहमियत खत्म होते जा
आधुनिक जीवन की भागदौड़ में खोते रिश्ते और बदलते मानवीय मूल्य
आजकल की भागदौड़ एवं प्रतिस्पर्धा से पूर्ण जिंदगी में रिश्ते-नाते की अहमियत खत्म होते जा रही है। यह एक ऐसा विषय है जो हमारे समाज की मौजूदा स्थिति को गहराई से दर्शाता है। आधुनिकता और विकास के इस दौर में जहाँ हमने तकनीकी और आर्थिक क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है, वहीं दूसरी ओर हमारे रिश्ते-नाते, पारिवारिक मूल्य और सामाजिक संबंध धीरे-धीरे कमजोर होते जा रहे हैं। यह स्थिति न केवल व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित कर रही है, बल्कि समाज के ताने-बाने को भी कमजोर बना रही है।
आजकल की अति व्यस्त एवं भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में आपसी रिश्ते-नातों की अहमियत ख़त्म होती जा रही है," यह कथन पूर्णतया सत्य है। दिन और रात के चौबीस घण्टे भी जैसे आज के मनुष्य के लिए कम पड़ जाते हैं। लगातार काम करने पर भी जैसे उसका काम पूरा नहीं होता। वह आराम करना चाहता है पर समय नहीं मिलता। ऐसे में मनुष्य को आपसी रिश्ते-नाते निभाने की कहाँ फुर्सत मिलती है? रिश्तेदार और सम्बन्धी सब नाम के होकर रह जाते हैं।
एक समय था, जब पारिवारिक सम्बन्धों के साथ-साथ हम अपने आपसी रिश्तों को निभाने का भी पूरा-पूरा ध्यान रखते थे। बच्चों को दादा-दादी, चाचा-चाची तथा अन्य सभी लोगों के पास रहने तथा उनके साथ समय बिताने का अवसर मिल जाता था। पर आज बढ़ी हुई व्यस्तता एवं भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी के कारण रिश्ते निभाना एक मुश्किल काम जैसा लगने लगा है। इस सबके पीछे अनेक कारण हैं। सर्वप्रथम, दूरदर्शन का तेज़ी से बढ़ता हुआ चलन। आज दूरदर्शन पर विभिन्न चैनलों के माध्यम से अनेक रोचक कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता है। बस, जैसे ही काम करके कुछ फुर्सत मिली, हम टी.वी. खोलकर बैठ जाना पसन्द करते हैं। केवल बटन दबाने की देर है, जिस प्रकार का मनोरंजन हम चाहते हैं हमें पलभर में मिल जाता है।
दूसरा कारण घर-घर में कम्प्यूटर की पहुँच है। आज कम्प्यूटर की सुविधा एवं लोक प्रियता का प्रभाव बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी पर समान रूप से पड़ा है। यदि माता-पिता छुट्टी अथवा अवकाश के क्षणों में बच्चों को लेकर रिश्तेदारों के पास जाना चाहते हैं तो बच्चे साफ़ मना कर देते हैं। बच्चों को कम्प्यूटर पर इन्टरनेट से जो जानकारी अथवा मनोरंजन मिलता है, भला क्या वह रिश्तेदारों के पास जाकर मिल सकता है?
एक अन्य वजह यह भी है कि आज माता-पिता अक्सर दोनों ही कामकाजी होते हैं। सप्ताह भर व्यस्त रहकर उन्हें एक रविवार ही तो मिलता है, अतिरिक्त काम अथवा आराम करने के लिए, अतः छुट्टी के दिन रिश्ते-नाते निभाने की बात सोचना उनके लिए, सम्भव ही नहीं हो पाता।बच्चों के लिए पढ़ाई का बढ़ता हुआ बोझ, माता-पिता की दोहरी जिम्मेदारी, बढ़ता हुआ फ़ैशन, दूरदर्शन, इन्टरनेट तथा बदलती हुई सोच ने रिश्तेदारों को हमसे दूर कर दिया है। सुरसा की तरह मुँह फाड़ती मँहगाई ने आम आदमी के लिए दाल-रोटी जुटाना भी मुश्किल कर दिया है। ऐसे में रिश्तेदारों को घर पर बुलाना अथवा उनके घर जाना समय और धन दोनों की बरबादी लगती है। अतः रिश्ते-नाते अपनी अहमियत खोते ही जा रहे हैं।
कारण चाहे कुछ भी हों, रिश्ते-नातों के महत्त्व को अनदेखा नहीं किया जा सकता। मानव समाज का एक अभिन्न अंग है। अतः सामाजिक रिश्तों को दरकिनार कर या फिर उनसे कटकर वह नहीं रह सकता। रिश्ते-नाते हमारे जीवन को मधुर बनाते हैं, सुख-दुःख में हमारा सहारा बनते हैं। अतः इन रिश्तों को संजोने के लिए हमें कुछ न कुछ प्रयास तो करने ही पड़ेंगे, अपनी व्यस्तता से कुछ समय हमें निकालना ही होगा। सप्ताह या महीने में एक दिन रिश्तेदारों के साथ बैठकर भोजन किया जा सकता है। छुट्टी के दिन सभी लोग आपस में मिलकर पिकनिक पर जाने का कार्यक्रम बना सकते हैं लम्बी छुट्टियों में किसी यात्रा अथवा भ्रमण का आयोजन किया जा सकता है। यदि रिश्तों को बचाने और रिश्तेदारी निभाने में हमने देर कर दी तो एक वक्त ऐसा भी आएगा कि एकल परिवारों के बच्चे पूछेंगे कि चाचा, मामा, मौसी या बुआ कहते किसे हैं? अतः हमें इन रिश्ते-नातों को थोड़े बहुत प्रयास करके संजोना ही होगा।
रिश्तों की अहमियत खत्म होने का असर सिर्फ व्यक्तिगत जीवन पर ही नहीं, बल्कि समाज पर भी पड़ रहा है। रिश्ते-नाते ही समाज की नींव होते हैं। जब रिश्ते कमजोर होते हैं तो समाज भी कमजोर होता है। आज के समय में हम देख रहे हैं कि समाज में अकेलापन, तनाव और डिप्रेशन बढ़ता जा रहा है। लोगों के बीच सहयोग और भाईचारे की भावना कम होती जा रही है। इससे समाज में नकारात्मकता बढ़ रही है और अपराधों में वृद्धि हो रही है।
हालांकि, यह स्थिति बदली जा सकती है। अगर हम चाहें तो अपने रिश्तों को मजबूत बना सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले हमें अपनी प्राथमिकताएं बदलनी होंगी। हमें यह समझना होगा कि पैसा और सफलता जरूरी हैं, लेकिन रिश्ते उससे भी ज्यादा जरूरी हैं। हमें अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताना चाहिए। उनकी भावनाओं का सम्मान करना चाहिए और उनकी जरूरतों का ध्यान रखना चाहिए। इसके अलावा, हमें तकनीक का सही इस्तेमाल करना चाहिए। सोशल मीडिया और मोबाइल फोन का इस्तेमाल सीमित करना चाहिए और असल जिंदगी में लोगों से जुड़ना चाहिए।
सरकार और समाज को भी इस दिशा में कदम उठाने चाहिए। पारिवारिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए। स्कूल और कॉलेजों में बच्चों को रिश्तों की अहमियत के बारे में शिक्षा दी जानी चाहिए। इसके साथ ही, कामकाजी लोगों के लिए वर्क-लाइफ बैलेंस को बेहतर बनाने के लिए नीतियां बनाई जानी चाहिए ताकि वे अपने परिवार के साथ समय बिता सकें।
अंत में, यह कहा जा सकता है कि रिश्ते-नाते हमारे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये हमें खुशी, सहारा और सुरक्षा प्रदान करते हैं। आधुनिकता और विकास के इस दौर में हमें अपने रिश्तों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। हमें अपने जीवन में संतुलन बनाना चाहिए और रिश्तों को महत्व देना चाहिए। क्योंकि अगर रिश्ते ही नहीं रहेंगे तो यह सफलता और पैसा भी बेमानी हो जाएगा।
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