उपवन की आत्मकथा Autobiography of a Garden मैं उपवन हूँ और इस रूप में ढले मुझे अधिक समय नहीं हुआ है। इससे पहले मैं एक सघन वृक्षों वाला एक छोटे से जं
उपवन की आत्मकथा Autobiography of a Garden
मैं उपवन हूँ और इस रूप में ढले मुझे अधिक समय नहीं हुआ है। इससे पहले मैं एक सघन वृक्षों वाला एक छोटे से जंगल के रूप में था, पर मेरे सुंदर और मजबूत वृक्षों को देखकर कुछ लोगों को लालच आया और धीरे-धीरे रात में मेरे वृक्षों को काटकर वे ले जाने लगे। मैं बहुत रोया-गिड़गिड़ाया, पर किसी का हृदय नहीं पसीजा। फिर एक समय ऐसा आया जब मैं वृक्षहीन भूमि रह गया। पशुओं के साथ-साथ पक्षियों ने भी मेरे पास आना छोड़ दिया। मुझ पर दोहरी मार तब पड़ी जब कुछ लोगों ने गाय-भैंसों एवं बकरियों का रेवड़ मेरे ऊपर छोड़ा और उन्होंने मुझे वनस्पति विहीन बनाकर रख दिया। अनेक वर्षों तक मैं बंजर पड़ा अपनी किस्मत को कोसता रहा। कभी-कभार बच्चे आते, खेलते उस समय मुझे परमानंद की अनुभूति होती।
मेरी किस्मत का फैसला तब हुआ जब एक दल के रूप में लोग मेरे यहाँ आए और मुझे एक बगीचे के रूप में बदलने का प्रस्ताव पास हुआ। उस दिन तो मेरी प्रसन्नता का पारावार ही नहीं रहा। मैं सारी रात सपने में देखता रहा कि मेरे चारों ओर बड़े-बड़े सघन वृक्ष उग आए हैं उन पर फल-फूल लदे हैं और पक्षी उनकी टहनियों में घौंसला बनाकर अपने बच्चों को चुग्गा खिला रहे हैं। आस-पास के बच्चे आकर खेल रहे हैं और रसीले फल खा रहे हैं यह सब देखकर मैं स्वयं पर गर्व का अनुभव कर रहा था कि अचानक मेरा सपना तब टूटा जब मैंने लोगों के साथ बच्चों को भी देखा। कुछ लोगों के हाथों में फावड़े, तसले, बाल्टियाँ आदि देख मैं घबरा गया, पर कुछ ठेलों में हरे-भरे पौधे देख लगा मेरा सपना सच होने जा रहा था।
धीरे-धीरे लोगों ने मिट्टी खोदकर भूमि को समतल बनाया, सूखी जड़ों और पत्थरों को निकाल फेंका। फिर क्यारियाँ बनाई और पंक्तियों में गड्ढे खोदे। सभी काम बड़े सुचारू रूप से और निरंतर चल रहा था। संध्या होने तक उपवन के रूप में मेरा नक्शा तैयार हो गया था। इस प्रकार वह सारा दिन बीत गया। अगला दिन मेरे जीवन का चिरस्मरणीय दिन था। सुबह से ही लोग धीरे-धीरे एकत्र हो रहे थे। स्त्री-पुरुष तथा बच्चों के सुंदर एवं रंग-बिरंगे परिधान देख मैं कितना खुश था कहना मुश्किल है। कुछ सम्मानित व्यक्तियों ने एक-एक करके मेरी उपयोगिता पर प्रकाश डाला। सच कहूँ तो मुझे भी अपने बारे में अनेक बातें उसी दिन पता चलीं। तब उन व्यक्तियों के साथ-साथ बच्चे भी एक-एक करके पहले से बनाए गए गड्ढ़ों में पौधों को रोपते जा रहे थे और साथ-ही-साथ मेरी उपयोगिता पर समवेत स्वर में गीत भी गा रहे थे। उनके मधुर गान और किलकारियाँ मुझमें नवजीवन का संचार कर रहे थे। आज तो मुझे ऐसा लग रहा था मानो मैंने भी बच्चों के रूप में जन्म लिया हो।
मेरी देखभाल के लिए एक दयावान माली को रखा गया जो माता- मेरी देखभाल करता, समय पर सिंचाई करता, गुड़ाई एवं निराई का विशेष ध्यान रखता। इस प्रकार उचित देखभाल के चलते माता-पिता के समान शीघ्र ही मेरा रूप निखर आया और मैं शरीर से हृष्ट-पुष्ट नजर आने लगा। रंग-बिरंगे पक्षियों ने भी मेरे वृक्षों की मजबूत शाखाओं में अपनी शरणस्थली बना ली। भोर को उनके मधुर चहचहाने के साथ ही मेरी भी नींद खुल जाती, मैं भी आलस छोड़कर जाग जाता। वे दिनभर मधुर स्वर में चहचहाते । प्रातः के मृदु समीर के साथ मेरी शाखाएँ मृदुल वीणा बजाना आरंभ कर देती । उस पावन बेला में लगता मानो मैं स्वर्गीय आनंद का रसास्वादन कर रहा हूँ। धीरे-धीरे लोगों ने मेरी हरी-भरी, कोमल घास पर चहलकदमी करनी आरंभ दी, बच्चे आते वे मेरी पत्तियों, फूलों का विशेष ध्यान रखते जिससे मुझे तनिक भी हानि न पहुचे।
अब तो हालत यह है कि मैं अपने आस-पास के इलाके का फेफड़ा समझा जाने लगा। लोग मेरे पास आकर स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करते, सारे दिन के कार्यों की थकावट मिटाते एवं अपने मानसिक तनावों को दूर करते। बच्चे भी आते और खेलकर अपना मनोरंजन करते। इस प्रकार मैं उनके सुख-दुख, हंसी-खेल का साथी बन गया। अब तो जहाँ लोगों का जीवन मेरे बिना अधूरा है वहीं मेरा तो अस्तित्व ही उनके बिना अपूर्ण है। मानव और प्रकृति ही इस सृष्टि के पूरक हैं।
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