नीम के पेड़ की आत्मकथा निबंध Autobiography of Neem Tree in Hindi मैं नीम का वृक्ष हूँ। लोग मुझे 'औषधियों का पिटारा' भी कहते हैं। मेरे जैसे और भी लाखों
नीम के पेड़ की आत्मकथा निबंध | Autobiography of Neem Tree in Hindi
आपको अपना परिचय देना मुझे आवश्यक नहीं जान पड़ता। आप सभी मेरे नाम से भली-भाँति परिचित हैं। जी हाँ, आपने ठीक ही पहचाना, मैं नीम का वृक्ष हूँ। लोग मुझे 'औषधियों का पिटारा' भी कहते हैं। मेरे जैसे और भी लाखों वृक्ष हैं जो किसी-न-किसी रूप में प्राणी के लिए उपयोगी हैं। लेकिन फिर भी वे हमारी जान के दुश्मन हैं। अपने स्वार्थ के लिए वे हमारा समूल नाश करने पर तुले हैं। चलिए, मैं आपको अपनी जीवन गाथा के साथ-साथ उपयोगिता भी बताता चलता हूँ ।
मेरे नाम से तो आप परिचित हो गए हैं कि मैं नीम का पेड़ हूँ। अभी आप जिस दशा में मुझे देख रहे हैं मैं सदा ऐसा ही नहीं था। मुझमें भी जीवन है इसलिए मनुष्य की भाँति मेरे विकास की भी अलग-अलग दशाएँ हैं । तपती गर्मी के बाद आने वाली रिमझिम बरसात में नीम के बीजों में से अंकुर फूटने पर ही पौधों का जन्म होता है। हमारा बचपन बहुत कठिनाइयों से भरा होता है। यदि हमारी जड़ों को उचित मिट्टी, गहराई और उचित देखरेख मिल जाती है तो हम फल-फूल उठते हैं। बाल्यावस्था में नटखट एवं असावधान बालक और पशु अपने पैरों तले उन नन्हे पौधों को रौंद डालते हैं। मेरा जन्म भी एक विशाल नीम के पेड़ के नीचे हुआ। यह अच्छा हुआ कि मैं अपने वृक्ष की जड़ के पास उगा था इसलिए मैं धीरे-धीरे उसके संरक्षण में बढ़ता रहा। किंतु एक दिन एक लड़के की दृष्टि मुझ पर पड़ी जो अपने साथियों के साथ वहाँ खेलने आया था। उसने मुझे बड़ी सावधानी से खोदकर निकाल लिया और अपने घर ले आया।
मुझे उस शैतान बच्चे पर बहुत क्रोध आ रहा था पर मैं कुछ भी करने में असमर्थ था। मुझे उस समय बहुत आश्चर्य हुआ जब मेरे स्वागत में समस्त परिवार आँगन में उमड़ पड़ा था। सभी मुझे पाकर इतने प्रसन्न एवं संतुष्ट थे मानो मैं कोई कीमती खजाना हूँ जो उनके हाथ लगा हो। बड़े-से आँगन के एक और एक गहरा-सा गड्ढा खोदा गया। बाल्टी-भर पानी लाया गया। इसके पश्चात् घर की बूढ़ी दादी ने गंगा जल छिड़ककर, दीया जलाकर और कुछ श्लोक गाकर मुझे रोपा। मेरा हृदय उन बूढ़े हाथों का ममत्व भरा कोमल स्पर्श पाकर ही धन्य हो गया। मुझे रोपने के बाद सबने भविष्य में मेरे विशाल रूप की कल्पना में कई बातें कहीं, जिन्हें सुनकर में फूला नहीं समाया। उनके संरक्षण में मैं धीरे-धीरे फल-फूल रहा था, पर एक दिन अनहोनी होते-होते बची। हुआ यूंकि उनके घर उनका ममेरा भाई रहने आया था। वह बहुत शरारती स्वभाव का बिलबिला उठा और चीख-चीखकर रोने लगा, पर मानो उस पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा था। इससे पहले कि वह था। एक दिन सोकर उठने के बाद वह मेरे पास आया और मेरी एक कोमल शाखा को मोड़कर तोड़ने लगा। पीड़ा से मैं मुझे तोड़ पाता वह लड़का, जिसका नाम कमल था, आ गया और उसे ऐसा करने से रोका, तब उसने मुझे छोड़ा। मेरी मुड़ी शाखा को धीरे-धीरे सीधा करके कमल ने मुझसे क्षमा माँगी। मैंने कमल से उस नटखट लड़के को अपने पास बुला लाने को कहा। उस लड़के के साथ-साथ घर के सभी सदस्य मेरे चारों ओर जमा हो गए। मैंने उन्हें बताया कि प्रत्येक वृक्ष में कोई-न-कोई विशेषता अवश्य है। लेकिन मेरे अलावा शायद ही कोई ऐसा वृक्ष है जो साधारण लोगों के लिए इतना उपयोगी हो।
मैं जिस घर में होता हूँ उस घर की धरती को मजबूती प्रदान करता हूँ। मेरी घनी शाखाएँ चारों ओर फैलकर उस घर को सरदी, गरमी, बरसात, आँधी आदि से सुरक्षा प्रदान करती हैं। गरमी से तप्त मनुष्य मेरी छाया में विश्रामकर पुनः आगे बढ़ने की शक्ति संचित करता है। मेरी जड़ से लेकर फल तक अत्यंत उपयोगी हैं। वैज्ञानिकों ने भी मेरी उपयोगिता को स्वीकार किया है । मेरा तना बहुत मजबूत होता है। मेरे तने की छाल को घिसकर यदि मनुष्य कटे-फटे एवं रिसते घाव पर उसका लेप लगा ले तो उसे भरने में अधिक समय नहीं लगता। मेरी कोमल टहनियों से दातुन बनाई जाती है जो वैज्ञानिक तकनीक से बनाए गए ब्रश व पेस्ट से कहीं अधिक लाभदायक एवं सहज सुलभ है।
मेरी कोमल पत्तियाँ तो गुणों की खान है। भिन्न-भिन्न चर्म रोगों में इनका लेप अत्यधिक लाभदायक है। इन्हें सुखाकर अनाजों में, कपड़ों में रखा जाए तो कीड़ों से उनकी रक्षा होती है। पत्तियों को जलाकर धुआँ करने से मक्खी-मच्छर भाग जाते हैं। मेरा फल जिसे तुम निबौरी, निबौली आदि नाम से जानते हो, वह भी बहुत उपयोगी है। कारखानों में उससे तेल निकाला जाता है, जिसे अनेक रोगों को दूर करने के काम में लाया जाता है। उसका साबुन में भी प्रयोग किया जाता है, जो चर्म रोग में लाभदायक है। कोमल पत्तियों को पीसकर, गोलियाँ बनाकर प्रतिदिन प्रातः खाली पेट सेवन किया जाए तो हर प्रकार के उदरकृमि से छुटकारा पाया जा सकता है। मधुमेह के रोगी इसकी पत्तियों का नियमित सेवन कर रोग को दूर रख सकते हैं। इस प्रकार मेरा सर्वांग मानव के लिए अत्यंत उपयोगी है। चारों ओर फैली मेरी हरी-हरी शाखाओं पर तरह-तरह के प्राणी शरण पाते हैं।
पक्षी आकर अपना घोंसला बनाते और अपना परिवार बसाते हैं। उनकी चहचहाट और उनकी कुलेंले मेरे मन को संजीवनी प्रदान करती हैं। छोटे-छोटे बच्चों को चुग्गा खिलाते देख मेरी ममता भी जाग उठती है तब मैं एक सजग प्रहरी की तरह हर शत्रु से उनकी रक्षा करने को तत्पर हो जाता हूँ। गिलहरियाँ, गिरगिट, चीटियाँ आदि भी मुझ पर ही आश्रित हैं। अपना भरा-पूरा विशाल कुटुम्ब देखकर मेरा जीवन सार्थक हो जाता है। मेरी निबौरी जब पक जाती हैं तो वह हरे से पीले रंग की हो जाती हैं। बच्चे-बूढ़े सभी इसका छिलका उतार चूस कर खा सकते हैं। इसका स्वाद कड़वाहट लिए मीठा होता है।
मुझे यदि कोई दुख है तो केवल इसी बात का कि मनुष्य ने हमारा महत्त्व नहीं जाना। वह बड़ी निर्दयता से हमारा विनाश कर रहा है। वह यह नहीं सोचता यदि हम ही नहीं रहेंगे तो यह सृष्टि कैसे रहेगी। हमारे जीवन में ही सबका जीवन है और हमारे विनाश में ही सृष्टि का विनाश निश्चित है। मेरी दुखभरी आवाज यदि आप सब तक पहुँचा सकें तो मैं समझँगा कि आपको अपनी आत्मकथा सुनाना सार्थक रहा -
"मैं माँ स्वरूपा प्रकृति
सृष्टि को जीवन देती हूँ।
स्वागत में पुष्प-सी मुस्कान लिए
पलक पाँवड़े बिछाए रहती हूँ।
स्वार्थ, लोभ में डूबे मानव
मत काटो मेरे अंगों को
हत्भागिनी मैं ऐसी जननी
निज पुत्र भय से हर पल काँपा करती हूँ।"
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