अपराधी | एंटन चेखव धारीदार क़मीज़ और पैबंद लगी पतलून पहने एक बहुत पतला-दुबला , छोटे क़द का किसान अदालत में न्यायाधीश के सामने खड़ा है । उसके चेहरे पर
अपराधी | एंटन चेखव
धारीदार क़मीज़ और पैबंद लगी पतलून पहने एक बहुत पतला-दुबला , छोटे क़द का किसान अदालत में न्यायाधीश के सामने खड़ा है । उसके चेहरे पर बहुत-से बाल और चेचक के दाग़ हैं , और उसकी घनी भँवों में छिपी उसकी मुश्किल से दिखने वाली आँखों में उदास मलिनता भरी हुई है । उसके सिर पर उलझे हुए , गंदे बालों के गुच्छे हैं जिनकी वजह से उसके चेहरे पर छाई मलिनता और प्रगाढ़ हो जाती है । वह वहाँ नंगे पैर खड़ा है ।
“ डेनिस ग्रेगोरयेव ! “ न्यायाधीश ने बोलना शुरू किया । “ पास आओ और मेरे प्रश्नों के जवाब दो ।जुलाई के इस महीने की सात तारीख़ के दिन रेलवे का चौकीदार ईवान सेम्योनोविच ऐकिनफ़ोव सुबह के समय रेल की पटरियों के पास गश्त लगा रहा था । तब उसने तुम्हें एक सौ चौदहवें मील पर स्लीपर को रेल की पटरियों से जोड़ने वाला एक पेंच खोलते हुए रंगे हाथों पकड़ा । यह रहा वह पेंच ! … उसने तुम्हें इस पेंच के साथ गिरफ़्तार कर लिया । क्या यही हुआ था ? “
“ क …क्या ? “
“ क्या जैसा ऐकिनफ़ोव ने कहा है , वैसा ही हुआ था ? “
“ जी , जनाब , यह सच है । “
“ ठीक है , तुम वह पेंच क्यों खोल रहे थे ? “
“ क…क्या ? “
“ ‘ क्या ‘ मत कहो और सवाल का जवाब दो । तुम वह पेंच क्यों खोल रहे थे ? “
“ अगर मैं नहीं चाहता तो मैं वह पेंच नहीं खोलता । “ छत की ओर देखते हुए डेनिस ने कर्कश आवाज़ में कहा ।
“ तुम्हें वह पेंच क्यों चाहिए था ? “
“ पेंच ? हम मछलियाँ पकड़ने वाली अपनी डोरी के लिए उससे वज़न बनाते हैं । “
“ ‘ हम ‘ कौन है ? “
“ हम … यानी सब लोग ; मतलब क्लिमोवो के किसान ! “
“ सुनो , मेरे सामने मूर्ख बनने का अभिनय मत करो । ढंग से बताओ । वज़न बनाने के बारे में यहाँ झूठ बोलने की ज़रूरत नहीं ! “
“ मैंने बचपन से ही कभी झूठ नहीं बोला है , और अब आप मुझ पर इल्ज़ाम लगा रहे हैं कि मैं झूठ बोल रहा हूँ … , “ पलकें झपकाते हुए डेनिस ने कहा । “ बिना वज़न के आप क्या करेंगे , श्रीमान जी ? अगर हम कीड़ा या अन्य जीवित चारा हुक में फँसाएँगे तो क्या वह बिना वज़न के नदी के तल पर पहुँच पाएगा ? … और आप कह रहे हैं , मैं झूठ बोल रहा हूँ , “ डेनिस खीसें निपोर कर
बोला ।
“ उस कीड़े का फ़ायदा ही क्या है जो पानी की सतह पर ही तैरता रहे ? सारी मछलियाँ तो समुद्र के तल के पास चारा ढूँढ़ती हैं । केवल शिलिस्पर नाम की मछली ही पानी की सतह पर तैरती है । और हमारी इस नदी में शिलिस्पर मछलियाँ नहीं पाई जाती हैं … मछलियों को बहुत सारी जगह चाहिए । “
“ तुम मुझे शिलिस्पर मछलियों के बारे में क्यों बता रहे हो ? “
“ क…क्या ? आपने खुद ही तो मुझसे पूछा है । हमारे इलाक़े में भी आम किसान ऐसे ही मछलियाँ पकड़ते हैं । सबसे बेवक़ूफ़ छोटा बच्चा भी बिना किसी वज़न के मछलियाँ नहीं पकड़ेगा । हाँ , जिसे मछलियाँ पकड़ना आता ही नहीं , वह ज़रूर ऐसा करेगा । बेवक़ूफ़ों के लिए कोई नियम थोड़े ही होता है । “
“ यानी तुम कह रहे हो कि तुमने अपनी मछली पकड़ने वाली डोरी में वज़न लगाने के लिए यह पेंच वहाँ से खोल कर निकाला ? “
“ और किस लिए ? मैंने उसे कोई खेल खेलने के लिए थोड़े ही वहाँ से निकाला ? “
“ पर तुम इसके बदले कोई कील , बंदूक़ की गोली या … सीसे का टुकड़ा भी तो ले सकते थे … “
“ सीसे का टुकड़ा सड़क पर गिरा हुआ थोड़े ही मिलता है , उसे ख़रीदना पड़ता है । कील का कोई फ़ायदा नहीं । पेंच से बढ़िया कोई और चीज़ नहीं होती … पेंच भारी होता है और इसमें छेद होता
है । “
“ यह आदमी लगातार बेवक़ूफ़ बनने का अभिनय कर रहा है ! जैसे यह कल ही पैदा हुआ हो या सीधे स्वर्ग से यहाँ आ गिरा
हो ! मूर्ख आदमी , क्या तुम्हें यह पता नहीं कि इन पेंचों को खोलने से क्या होता है ? यदि चौकीदार ने यह नहीं देखा होता तो वहाँ से गुजरने वाली कोई भी रेलगाड़ी पटरी से उतर सकती थी । बहुत सारे लोग इस दुर्घटना में मारे जाते । तुम्हारी वजह से लोगों की जान चली जाती । “
“ हे ईश्वर ! यह आप क्या कह रहे हैं , श्रीमान जी ? मैं उन लोगों को क्यों मारूँगा ? क्या मैं विधर्मी या शैतान हूँ ? ईश्वर का शुक्र है कि मैंने अपना सारा जीवन बिना ऐसी कोई बात सोचे हुए गुज़ार दिया … स्वर्ग की मलिका मुझ पर दया करें … यह आप क्या कह रहे हैं ? “
“ और तुम्हें क्या लगता है , रेलगाड़ियाँ कैसे दुर्घटना-ग्रस्त होती हैं ? तुम जोड़ों से दो-तीन पेंच निकाल लो और दुर्घटना हो जाती है । “
डेनिस अपनी खीसें निपोरता है और अपनी नज़रें छोटी करके न्यायाधीश की ओर ऐसे देखता है जैसे उसे उनकी बात पर यक़ीन नहीं हो ।
“ हे ईश्वर ! गाँव में हम सब तो बरसों से पटरियों के जोड़ों से पेंच निकालते रहे हैं । ईश्वर दयालु रहा है । आप दुर्घटनाओं और लोगों को मारने की बात करते हैं । अगर मैं पटरी का एक हिस्सा उखाड़ कर ले जाता या पटरी पर किसी पेड़ का मोटा तना रख देता , तब शायद रेल-गाड़ी दुर्घटना-ग्रस्त हो जाती । लेकिन , उफ़् … केवल एक पेंच से ! “
“ लेकिन तुम्हें समझना चाहिए कि पेंच ही स्लीपरों को रेल-लाइनों से जोड़े रखता है ! “
“ हम यह समझते हैं … हम सभी पेंचों को नहीं निकालते हैं … हम कुछ पेंचों को वहीं लगा हुआ छोड़ देते हैं … हम बिना सोचे-समझे यह काम नहीं करते हैं … हम समझते हैं …! “ डेनिस जम्हाई लेता है और हाथ से अपने मुँह के सामने हवा में सलीब का चिह्न बनाता है ।
“ पिछले साल रेलगाड़ी यहीं पर पटरियों से उतर गई थी ,” न्यायाधीश ने कहा ।“ अब मैं समझ सकता हूँ कि ऐसा क्यों हुआ
था ।”
“ यह आप क्या कह रहे हैं , श्रीमान जी ? “
“ मैं तुम्हें यह बता रहा हूँ कि अब मैं जानता हूँ कि वहाँ रेल-गाड़ी के डब्बे पटरियों से कैसे उतरे … अब मैं समझ सकता हूँ ! “
“ आप पढ़े-लिखे लोग इसी लिए तो हैं कि आप सब कुछ समझ सकें , श्रीमान जी ! ईश्वर जानता है कि समझ किसे देनी चाहिए … अब यहाँ आपने कैसे और क्या के बारे दलील दे दी है , लेकिन यह चौकीदार , या हमारे जैसे किसानों को बिल्कुल समझ नहीं है । हम लोग बिना कुछ समझे दूसरों को कॉलर से पकड़ कर क़ैद कर लेते हैं । आपको पहले अपने पक्ष में दलील देनी चाहिए , मुझे कारण बताना चाहिए । इसके बाद मुझे पकड़ना चाहिए । हमारे यहाँ एक कहावत है कि एक किसान के पास किसान जितनी ही अक़्ल होती है … लिखिए श्रीमान जी , इस चौकीदार ने मुझे दो बार जबड़े और छाती पर मारा । “
“ जब तुम्हारी झोंपड़ी की तलाशी ली गई तो वहाँ से पटरियों और स्लीपरों के जोड़ से खोली गई एक और पेंच बरामद की गई… ।
यह पेंच तुमने रेल की पटरी और स्लीपर के जोड़ से किस जगह से खोली और यह काम तुमने कब किया ? “
“ क्या आप उस पेंच की बात कर रहे हैं जो लाल बक्से के नीचे पड़ी हुई थी ? “
“ मुझे नहीं पता , यह पेंच कहाँ पड़ी हुई थी पर यह तुम्हारी झोंपड़ी से बरामद हुई । यह पेंच तुमने पटरी और स्लीपर के जोड़ से कब खोली ? “
“ मैंने यह पेंच नहीं निकाला था । एक आँख वाले सेम्योन के बेटे इग्नाश्का ने मुझे यह पेंच दिया था । मैं उस पेंच की बात कर रहा हूँ जो बक्से के नीचे पड़ा हुआ था । लेकिन बरामदे में हथौड़े के पास पड़े पेंच को तो मित्रोफ़ैन और मैंने मिल कर पटरियों से खोला था ।”
“ कौन मित्रोफ़ैन ? “
“ मित्रोफ़ैन पेत्रोव … आपने उसके बारे में नहीं सुना ? वह हमारे गाँव में जाल बनाता है , और लोगों को बेचता है । उसे ऐसे बहुत सारे पेंचों की ज़रूरत होती है । मुझे लगता है , हर जाल के लिए उसे दस पेंचों की ज़रूरत होती ही होगी । “
“ सुनो , दंड संहिता के अनुच्छेद 1081 के अनुसार स्वेच्छा से और जानबूझकर रेल की पटरियों और लोगों के जीवन को नुक़सान पहुँचाने वाले किसी भी कृत्य को करने वाले व्यक्ति को कठोर कारावास की सज़ा दी जाएगी । ऐसे व्यक्ति को पता होता है कि ऐसा करने से रेलगाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो सकती है … तुम समझ रहे हो न , ‘ पता होता है ‘ ! “
“ जी , श्रीमान जी , आप बेहतर समझते हैं … हम तो अज्ञानी हैं … हमें भला क्या समझ है ? “
“ तुम इसके बारे में सब कुछ समझते हो ! तुम झूठ बोल रहे हो , बेशर्म आदमी ! “
“ मैं झूठ क्यों बोलूँगा ? अगर आपको मेरी बात पर भरोसा नहीं है तो आप गाँव में किसी से भी पूछ लीजिए । गाँव में तक़रीबन सभी के पास पेंच होती है । कोई भी मछली बिना पेंच के भार के चारा नहीं खाती । “
“ अब तुम मुझे शिलिस्पर मछली के बारे में बताओगे । “ न्यायाधीश ने मुस्कुराते हुए कहा ।
“ हमारे इलाक़े में शिलिस्पर मछलियाँ नहीं पाई जाती हैं …
जब हम चारे में तितली पकड़ कर लगाते हैं और बिना भार के उसे पानी की सतह पर डालते हैं तो उससे हम केवल पाँच कोने वाले तारे के आकार का जीव ही पकड़ सकते हैं । वह भी कभी-कभी ही । “
“ चुप रहो ! “
अदालत में चुप्पी छा जाती है । डेनिस कभी एक पैर पर अपनी देह का भार डालता है , कभी दूसरे पैर पर । वह हरे कपड़े वाली मेज की ओर देखता है और बहुत तेज़ी से अपनी पलकें झपकाता है । ऐसा लगता है कि उसने हरे कपड़े को नहीं , चमकते हुए सूरज को ही देख लिया हो । न्यायाधीश तेज़ी से काग़ज़ पर कुछ लिखता है ।
एक लम्बी चुप्पी के बाद डेनिस पूछता है , “ क्या अब मैं जा सकता हूँ ? “
“ नहीं । मैं तुम्हें जेल भेज रहा हूँ । “
डेनिस अपनी पलकें झपकाना बंद करके सवालिया निगाहों से न्यायाधीश को देखता है ।
“ जेल से आपका क्या मतलब है ? श्रीमान जी , मेरे पास ख़ाली बैठने का समय नहीं है । मेरा मेले में जाना ज़रूरी है । मुझे येगोर से तीन रूबल लेने हैं ताकि मैं तेल ख़रीद सकूँ ! … “
“ चुप रहो । मुझे सज़ा निर्धारित करने दो । “
“ जेल में … अगर मैंने वाक़ई कुछ ग़लत किया होता तो मैं वहाँ ज़रूर चला जाता । बिना किसी ग़लती के वहाँ जाना ! किसलिए ? मुझे पूरा विश्वास है कि मैंने कोई चोरी नहीं की है । मैं किसी से झगड़ा नहीं कर रहा था … अगर आपको बकाया रूबल के बारे में शक है तो , श्रीमान जी , आप उस बुज़ुर्ग की बातों में नहीं आएँ … आप गुमाश्ते से पूछिए … वह बुज़ुर्ग तो पूरा विधर्मी है ।”
“ चुप रहो “ ।
“ मैं तो चुप ही हूँ ,” डेनिस बुदबुदाया , “ लेकिन उस बुज़ुर्ग ने खाते के बारे में आपसे झूठ बोला है । मैं क़सम खा कर यह कह सकता हूँ … हम तीन भाई हैं — कुज़्मा ग्रिगोरयेव , येगोर ग्रिगोरयेव और मैं , डेनिस ग्रिगोरयेव । “
“ तुम मेरे काम में बाधा डाल रहे हो …” न्यायाधीश चिल्ला कर कहता है , “ सेम्योन , इसे कारागार में ले जाओ ! “
“ हम तीन भाई हैं , “ डेनिस बुदबुदाता है जबकि दो तगड़े सिपाही उसे पकड़ कर कमरे से बाहर ले जाते हैं । “ एक भाई दूसरे भाई की ग़लती के लिए ज़िम्मेदार नहीं हो सकता है । कुज़्मा ने रूबल नहीं दिए तो क्या मैं , डेनिस , इसके लिए कारागार में डाला जाऊँगा … ? वाह , न्यायाधीश ! हमारे मालिक सेनापति जी की मौत हो चुकी है — ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे । वे आज ज़िंदा होते तो आप न्यायाधीशों को बताते … न्याय बहुत सोच-समझ कर करना चाहिए , बेतरतीब ढंग से नहीं … अगर आप कोड़े मारना चाहते हैं तो उसे मारिए जो ग़लती करता है । अंतरात्मा की आवाज़ सुन कर कोड़े मारिए … । “
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- सुशांत सुप्रिय
A-5001 ,गौड़ ग्रीन सिटी,
वैभव खंड,इंदिरापुरम् ,
ग़ाज़ियाबाद- 201014( उ.प्र. )
मो : 8512070086 ई-मेल : sushant1968@gmail.com
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